Friday, December 27, 2013

आज देश संकट के दौर से गुजर रहा है- स्वामी रामनरेशाचार्य

डा. राधिका नागरथ महाराज श्री को गंगाजलि भेंट करते हुए
हरिद्वार 21 सितंबर। रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य महाराज ने कहा कि आज देश संकट के दौर से गुजर रहा है। देश के सामने आज धर्म, राजनीतिक और सामाजिक जीवन में चारों ओर संकट ही संकट दिखार्इ दे रहा है। हर क्षेत्र में गिरावट आर्इ है। पूरे देश में आज नैतिकता और चरित्र का पतन होता दिखाई दे रहा है।
वे कनखल में हरिगंगा सभागार में हरिद्वार के नागरिकों की ओर से जनअधिकार अभियान और गाँधी जागृति मिशन द्वारा आयोजित नागरिक अभिनन्दन समारोह में बोल रहे थे। यह अभिनन्दन समारोह स्वामी रामनरेशाचार्य महाराज के चातुर्मास के समापन के अवसर पर आयोजित किया गया था। उन्होंने कहा कि रामानंदा सम्प्रदाय ने सामाजिक जनजागरण के लिए सराहनीय कार्य किया। रामानंदाचार्य जी की वजह से समाज में फैली सामाजिक विषमताओं को दूर किया गया। उन्होंने कहा कि भक्त रैदास से बड़ा कोर्इ भक्त नहीं था। मीराबाई समेत क बड़े विद्वानों और संतों ने रैदास महाराज से दीक्षा ली। जो भारत की सामाजिक एकता का सबसे बड़ा उदाहरण है। कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार प्राध्यापक डा. कमलकांत बुधकर ने कहा कि महाराज श्री ने चातुर्मास के माध्यम से वैदिक अनुष्ठानों के द्वारा तीर्थनगरी हरिद्वार को ऊर्जावान बनाने का कार्य किया है। उन्होंने रामानंद सम्प्रदाय को सनातन धर्म की उच्च मर्यादाओं को साबित करते हुए जाति- पाति का भेद मिटाकर समाज को एक सूत्र में बांधने कार्य किया है।
कार्यक्रम के मुख्य संयोजक सुधीर कुमार गुप्ता ने कहा कि महाराज श्री के हरिद्वार आगमन से ऐसा लग रहा है कि मानों शिव की नगरी में राम और शिव का मिलन हो रहा है। गुप्ता ने कहा कि राम शिव में और शिव राम में रमन करते है। कार्यक्रम की आयोजिका डा. राधिका नागरथ ने महाराज श्री को गंगाजलि भेंट करते हुए कहा कि जिस तरह माँ गंगा अपने पावन जल से हमें शीतलता प्रदान करती है वैसे ही महाराज श्री के उपदेश हमें हमेशा शीतलता प्रदान करते रहेंगे। कार्यक्रम के संचालक पुरूषोतम शर्मा गांधीवादी ने कहा कि रामानंद सम्प्रदाय के निष्काम सिद्धि का मार्ग ही नहीं बलिक दरिद्रनारायण की सेवा के लिए लोक संग्रह का मार्ग भी तय करता है। उन्होंने कहा कि स्वामी रामनरेशाचार्य वेदान्त एवं सनातन धर्म का आदर्श स्थापित कर रहे हैं। जनअधिकार अभियान के प्रदेश अध्यक्ष सुनील दत्त पांडेय ने कहा कि स्वामी रामनरेशाचार्य ने चातुर्मास के दौरान बौद्धिक गोष्ठियां करवाकर देश की ज्वलन्त समस्याओं को समाज के सामने रखा और उनके निराकरण का रास्ता भी बताया। प्रेस क्लब के अध्यक्ष संजय आर्य ने कहा कि चातुर्मास संतों के लिए आत्मचिंतन का अवसर प्रदान करता है। आज संत समाज में चातुर्मास की परम्परा धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। परन्तु स्वामी रामनरेशाचार्य महाराज ने इस परम्परा को पुनस्र्थापित करने का एक सराहनीय कार्य किया है। कथावाचक पंडित जयप्रकाश कौशिक ने कहा कि रामानंद सम्प्रदाय ने देश की एकता और अखण्डता के लिए अत्यंत सराहनीय कार्य किया है। इस अवसर पर महामंडलेश्वर डा. श्यामसुन्दर दास शास्त्री ने रामानंद सम्प्रदाय को सामाजिक एकता का प्रतीक बताया। उत्तराखंड संस्कृत विश्वविधालय के कुलपति डा. महावीर अग्रवाल ने कहा कि रामानंद सम्प्रदाय ने जाति बंधनों को तोड़कर समाज को न दिशा दी। इस अवसर पर हरिद्वार नगर निगम के मेयर मनोज गर्ग, रामकुमार एडवोकेट, भगवत शरण अग्रवाल, इंडस्ट्रीयल एसोसिएशन हरिद्वार के अध्यक्ष प्रभात कुमार, महामंत्री विनीत धीमान, प्रेस क्लब के महामंत्री रामचंद्र कन्नौजिया, वरिष्ठ उपाध्यक्ष मुदित अग्रवाल, सचिव विकास चौहान, दीपक नोटियाल, महावीर नेगी, शैलेन्द्र सिंह, ललितेंद्र नाथ, मनोज रावत, अम्बरीश कुमार, नीरज छाछर, अमित कुमार, महन्त महेन्द्र सिंह, महन्त शिवशंकर गिरि, महन्त भगवानदास, महन्त रघुवीरदास, भरत शर्मा, कोमल शर्मा आदि ने रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य महाराज का स्मृति चिन्ह भेंट कर और माला पहनाकर स्वागत किया। निर्मल संस्कृत महाविधालय के छात्रों ने स्वसितवाचन कर महाराज श्री का स्वागत किया।
(साभार एक्सप्रेस इंडियन)

Thursday, December 5, 2013

श्रीराम महायज्ञ का आमंत्रण पत्र

ऐतिहासिक और पौराणिक शहर बक्सर में सात दिसंबर से 15 दिसंबर,2013 तक होने जा रहे शतमुख कोटिहोमात्मक श्रीराम महायज्ञ के लिए प्रकाशित आमंत्रण पत्र आपकी सेवा में समर्पित है.

Sriram Yagya invitation card




Sriram Yagya Program

Wednesday, December 4, 2013

पापों के प्रायश्चित को आध्यात्म की शरण में बंदी





क्सर के चरित्रवन में आयोजित शतमुख कोटिहोमात्मक श्रीराम महायज्ञ स्थल पर ओपेन जेल के बंदी पापों के प्रायश्चित को श्रम दान में लगे हैं। आयोजन समिति के निर्देश पर वे कार्य कर रहे हैं। इनका कार्य पूरे इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है। यज्ञ स्थल पर कार्य करने से बंदियों को आत्मिक शांति प्राप्त हो रही है। इस अाध्यात्मिक कार्य से जुड़कर वे अपने को स्वच्छ समाज के नागरिक के रुप में ढालने का प्रयास कर रहे हैं। बंदियों की मानें तो सरकार के पहल से उन्हे मुक्त कारागार में रहने की आजादी मिली है। इसी से वे कैद में होते हुए भी सामाजिक परिवेश में अपने में हुए बदलाव को सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं । इस संबंध में अनिल सिंह एवं नारायण सिंह ने बताया कि बाहर कार्य करने के दौरान संतो का प्रवचन सुनने को मिला इससे हमारी बुद्धि में बदलाव हुआ है। यज्ञकार्य में श्रम करने में हमें काफी आनंद आ रहा है। इससे पहले किसी के चढ़ाने-बढ़ाने व जाने-अनजाने में जो अपराध हमलोगों ने किया है। वह माफी के काबिल नहीं था। हमलोग समाज व कानून दोनों के अपराधी थे। इस यज्ञ से हमें समाज के मुख्य धारा में जुड़ने का मौका मिला है। सभी हमें अपराधी के नजर से देख रहे थे। जिससे समाज हमें स्वीकार नही कर पा रहा था। ऐसे में आयोजक व सरकार के हमलोग अभारी है। श्रमदान करने वालों में ओम प्रकाश पासवान, मनोज पासवान, बिहारी महतो, महानंद यादव, गजलवा हलवाई, मुकुंददेव राउत व बड़ों बिल्दार आदि शामिल थे- सौजन्य- दैनिक जागरण,दिनांक- 5-12-2013

श्रीराम महायज्ञ की तैयारी में जुटे बक्सर ओपेन कारा के कैदी

महर्षि विश्वमित्र की पावन तपोभूमि बक्सर में पतित-पावनी गंगा के तट पर होने जा रहे शतमुख कोटिहोमात्मक श्रीराम महायज्ञ की तैयारियां अब अपने अंतिम चरण में है। सात मंजिले यज्ञशाला और मुख्य़ पंडाल का निर्माणकार्य लगभग पूरा हो गया है। सौ हवनकुंडों के निर्माण में भी कारीगर दिन-रात लगे हुए हैं।सबसे खास बात ये है कि यज्ञ की तैयारियों में बक्सर ओपेन जेल के दो दर्जन से ज्यादा कैदी भी लगे हैं जो विभिन्न अपराधों में सजायाफ्ता हैं। ऐसे कैदियों का मानना है कि धर्मकार्य में भाग लेने से उनके पाप कम होंगे और जीवन में शांति और सदभाव कायम होगा। जेल प्रशासन ने उन्हें पू्र्व के अपराधों के प्रायश्चित के लिए इस काम में लगाया है ताकि वे समाज जीवन की मुख्यधारा से अपने को जोड़ सकें।


Yagya Mandap
 महायज्ञ में सौ हवनकुंड बनेंगे जिसमें एक करोड़ आहुतियां दी जानी है। संत-महात्माओं के प्रवचन से पूरे नौ दिनों तक भक्ति की रसधारा मां गंगा के समानांतर बहने वाली है। इसके अलावे रामलीला और रासलीला की प्रसिद्ध मंडलियों की प्रस्तुति भी श्रद्धालुओं को देखने-सुनने को मिलेगी।


रामभक्ति की सगुण एवम् निर्गुण धारा के मूल पीठ और रामानंदी वैष्णवों के आचार्यपीठ-श्रीमठ, पंचगंगा घाट,काशी के इस आयोजन में देश भर के जाने-माने संत-महात्मा और धर्माचार्य भाग लेेने वाले हैं।

Swami Ramnareshacharya in Buxar

 श्रीराम महायज्ञ के संकल्पक जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज स्वयं भी बक्सर पहुंच गये हैं। उनका कहना है कि इस यज्ञ से बक्सर सहित आसपास के इलाके में धार्मिक वातावरण बनेगा और आम लोगों में कृतज्ञता ज्ञापन का भाव बढ़ेगा जिसका आजकल भारी अभाव हो गया है। उन्होंने कहा कि यज्ञ में देवताओं और प्रकृति को आहुतियों के माध्यम से हम कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। जो भगवान वायु, आकाश और अग्नि के रुप में हमारी सहायता करते हैं और जीवन को आधार प्रदान करते हैं, हम उनके लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन इस यज्ञ के माध्यम से करते हैं।
Swami Ramnareshacharya near Yagya Mandap



Monday, December 2, 2013

बक्सर में परवान चढ़ी श्रीराम महायज्ञ की तैयारियां

पौराणिक शहर बक्सर के चरित्रवन स्थित सोमेश्वर स्थान पर गंगा किनारे 7 दिसंबर से होने वाले शतमुख कोटिहोमात्मक श्रीराम महायज्ञ की तैयारियां परवान पर है। इसके लिए वहां करीब सौ कारीगरों व स्वयं सेवकों के दल को तैनात किया गया है, जो दिन-रात निर्माण कार्य में जुटे हैं। इनके द्वारा काफी मेहनत-मशक्कत कर यज्ञशाला म् प्रवचन मंडप के अलावा अन्य कार्यो को अंतिम रूप दिया जा रहा है। यज्ञ स्थल पर रविवार को इसकी जानकारी देते हुए आयोजन समिति के अध्यक्ष आर के राय और सचिव राजवंश तिवारी ने बताया कि नौ दिवसीय श्रीराम महायज्ञ का शुभारंभ वाराणसी स्थित श्रीमठ पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशचार्य जी महराज के सान्निध्य में 7 दिसंबर को भव्य कलश यात्र के साथ होगा। जिसका समापन समष्टि भंडारे के साथ 15 दिसंबर को होगा। उन्होंने बताया कि सौ कुंडीय महर्षि विश्वामित्र नामक यज्ञशाला का निर्माण चौदह कट्ठा भूमि पर कराया जा रहा है। यज्ञ मंडप पांच मंजिला बना है। यज्ञशाला के समीप ही वशिष्ठ मुनि के नाम पर विशाल सभागार बनाया जा रहा है। जिसमें संत समागम के अलावा रासलीला, रामलीला म् अन्य विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे। इस मौके पर समिति के प्रवक्ता राकेश कुमार राय ‘कल्लू’, योगेश राय, सोमेश्वरनाथ मंदिर के महंत संजय दास, सिद्धनाथ राय, प्रमोद पांडेय, जितेन्द्र गिरी, प्रचार प्रभारी डा.रमेश कुमार, मनोज पांडेय, जितेन्द्र पांडेय, नंदू पांडेय, अनिल पांडेय, हरेन्द्र यादव व विजय तिवारी आदि लोग मौजूद थे
बक्सर की ऐतिहासिक धरती पर होने वाला ये अपने तरह का पहला यज्ञ है जिसमें देश के जाने-माने संत-महात्मा और धर्माचार्य सम्मिलित होंगे। प्रभु श्रीरा्म की शिक्षाभूमि पर इस बार रामानंद संप्रदाय के मूल आचार्यपीठ की ओर से ये आयोजन हो रहा है, जिसे लेकर इलाके में भारी उत्साह है।

Wednesday, November 27, 2013

जगदगुरु ने लिया महायज्ञ की तैयारियों का जायजा

बक्सर के चरित्रवन स्थित सोमेश्वर स्थान पर 7 दिसंबर से शुरू होने वाले नौ दिवसीय शतमुख कोटिहोमात्मक श्रीराम महायज्ञ की तैयारियां शुरू कर दी गई है। जिसके तहत यज्ञ मंडप व प्रवचन पंडाल आदि निर्माण का काम जोर पकड़ने लगा है। यज्ञ का आयोजन जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज के सान्निध्य में हो रहा है। गुरुवार को श्री पीठ काशी से पधारे महाराज श्री ने तैयारियों का जायजा लिया तथा आयोजक मंडल को आवश्यक दिशा निर्देश दिया। गत 21 नवम्बर को बक्सर पधारे महाराज श्री ने कहा कि यज्ञ का उद्देश्य वैदिक सनातन धर्म के माध्यम से सामाजिक सद्भाव बनाते हुए जन कल्याण करना है। यज्ञ के बारे में पत्रकारों को जानकारी देते हुए स्वामी जी ने कहा कि वैदिक शास्त्रीय विधान के अनुसार एक सौ कुंडीय यज्ञ का ही महत्व है। उन्होंने बताया कि सभी कुंडों पर चार-चार जोड़े दंपति एक-एक आचार्य के निर्देशन में एक करोड़ आहूतियां देंगे। उन्होंने बताया कि वैदिक प्रवर विनायक मंगलेश्वर बादल ‘घनपाठी’ व दत्तात्रये नारायण रहाटे के आचार्यत्व में महायज्ञ संपन्न होगा। इस मौके पर समिति के अध्यक्ष आर.के.राय, उपाध्यक्ष प्रभु प्रसाद गुप्ता, सुरेन्द्र राय व दिनेश राय के अलावा सचिव राजवंश तिवारी, हरेन्द्र कुमार सिंह, मीडिया प्रभारी डा.रमेश कुमार, सह सचिव योगेश राय व चंद्रश्वेर पांडेय, कोषाध्यक्ष सत्येन्द्र पांडेय के अलावा जवाहर पासवान, काशीनाथ प्रसाद, संजय दास, रामव्रत सिंह, विभूति नारायण राय, शिव नायक सिंह, सिद्धनाथ राय, देव नारायण शर्मा, राजाराम शास्त्री, जितेन्द्र गिरी, भालचंद्र बादल, लाल दास, आचार्य फूलेन्द्र सिंह, प्रदीप पाठक व उपेन्द्र पाठक आदि मौजूद थे।

श्रीराम महायज्ञ में बहेगी भक्ति की धारा

बक्सर के चरित्रवन स्थित सोमेश्वर स्थान पर पावन गंगा के तट पर 7 दिसंबर से प्रस्तावित शतमुख कोटिहोमात्मक श्रीराम महायज्ञ में देश के दर्जनों विद्वान, धर्माचार्य और मठाधीश पहुंचेंगे और अपने श्रीमुख से ज्ञान की गंगा प्रवाहित करेंगे। साथ ही नौ दिवसीय धर्म के इस विराट आयोजन में शिरकत करते हुए वैदिक सनातन धर्म के गूढ़ रहस्यों को बताएंगे।श्रीराम भक्ति परंपरा और रामानंद संप्रदाय के मूल आचार्यपीठ श्रीमठ, पंचगंगा, काशी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज के सान्निध्य में इस महायज्ञ का आयोजन किया गया है। जिसमें देश के कोने-कोने से संतोंतों तोोतों विद्वानो के आने की अनुमति मिल चुकी है। महायज्ञ आयोजन समिति के अध्यक्ष आर.के.राय, सचिव राजवंश तिवारी म् मीडिया प्रभारी डा.रमेश कुमार ने बताया कि यज्ञ के दौरान गोवर्धनपीठ, पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज, वृंदावन के मलूक पीठाधीश्वर द्वाराचार्य डा.राजेन्द्र दास जी महाराज, पंजाब के पिंडोरीधाम से रघुवीर दास जी महाराज, जोधपुर के स्वामी अचलानंद जी महाराज, मैहर के सिया शरण जी, सूरत (गुजरात) के जगन्नाथ दास, अयोध्या के दिगंबर अखाडा़ के श्रीमहंत सुरेश दास जी , स्वामी गयामनंद दास, वृंदावन के रामस्वरूप व महामंडलेश्वर बलरामदास, प्रेमदास जी महाराज, हरिद्वार के रामानंद आश्रम के महामंडलेश्वर श्रीभगवान दास समेत कई अन्य जाने-माने संत-महंतों के यज्ञ में पधारने स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है।

Wednesday, July 31, 2013

हरिद्वार में स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज का चातुर्मास महोत्सव आरंभ

पतित पावनी गंगा के तट पर देवभूमि हरिद्वार में इस वर्ष श्रीमठ, काशी के वर्तमान आचार्य एवम् जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज का  'दिव्य चातुर्मास महोत्सव' श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। भूपतवाला स्थित निर्माणाधीन अद्वितीय श्रीराम मंदिर परिसर चातुर्मास महोत्सव की विविध प्रवृत्तियों का समायोजन किया जा रहा है। नित्य कार्यक्रमों के साथ ही सावन मास की प्रत्येक सोमवारी को भगवान भोलेनाथ का महाभिषेक पूर्ण-विधि विधान से संपन्न हो रहा है। जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज ने चातुर्मास के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इसे आत्मशुद्धि का पर्व बताया।
उन्होंने कहा कि चातुर्मास में संत-महात्माओं को आत्मचिंतन का अवसर प्राप्त होता है। इसमें हमें सनातन धर्म की रक्षा को लेकर चिंतन करने के साथ व्यक्तिगत खामियों को दूर करने का अवसर मिलता है। उन्होंने कहा कि संत का उद्देश्य सनातन धर्म एवं मानव कल्याण को गति देना है।
वैसे गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर ही देश भर से आए भक्तों की उपस्थिति में गुरु पूजन के साथ महोत्सव का आरंभ हो गया। 

Saturday, July 13, 2013

जगदगुरु स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज ने किया हनुमान मंदिर का उदघाटन

भोजपुर जिले के सिकरहटा थाना के नोनाडीह मोड़ पर बने हनुमानजी के भव्य मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा आज दिनांक 14 जुलाई दिन रविवार को पूर्ण विदि-विधान और वैदिक रीति से संपन्न हुआ। वैरागी वैष्णव संप्रदाय (रामावत या श्रीसंप्रदाय) के प्रधान आचार्य और श्रीमठ,काशी पीठाधीश्वर जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज के कर कमलों द्वारा मंदिर के श्रीविग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा संपन्न हुई। इस मौके पर दक्षिणी भोजपुर के पचासो गांवों से आए श्रद्धालु हजारों की संख्या में मौजूद थे।
स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य ने अपने संबोधन में कहा कि सनातन धर्म के देवताओं में हनुमान जी का स्थान अद्वितीय है। उन्हें प्रजा पालक प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त होने के चलते भक्त शिरोमणि का दर्जा हासिल हैं। वे भगवान के वरदान स्वरुप आज भी धरा धाम पर विराज रहे हैं और अपने भक्तों से निर्भयता का वरदान देते हैं।
चार दिनों तक चले प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के दौरान रामभक्ति परंपरा से जुड़े बड़ी संख्या में संतो-महंतों के दर्शन एवम पूजन का लाभ स्थानीय श्रद्धालुओं का प्राप्त हुआ। ये पहला मौका था जब दो दशक तक उग्रवाद और हिंसा से संतप्त रहे दक्षिण भोजपुर के इस अति पिछड़े  इलाके में जगदगुरु जैसे धर्माचार्य  का पदार्पण हुआ था।
प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव को गरिमा प्रदान करने में रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल के सदस्यों ने भी पूरी ताकत लगा दी थी। महाराजश्री को विदा देने के भक्त श्रद्धालुओं की आँखे नम हो गयी थी।
 महाराजश्री सुबह 10 बजे सड़क मार्ग से पटना के लिए रवाना हो गये। आज ही उन्हें वायुमार्ग से पटना से भाया दिल्ली सूरत पहुंचना है, जहां अगले कुछ दिनों तक वे विविध धार्मिक आयोजनों में शामिल होंगे।
 

Sunday, June 30, 2013

कलियुग के सुरदास, जिन्हें कंठस्थ है पूरा रामायण

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में दोनों आंखों की रोशनी खो चुके मदनदास को गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरित मानस, दोहावली, कवितावली, हनुमान बाहुक और विनय पत्रिका सहित हनुमान चालीसा पूरी तरह कंठस्थ हो गयी है। इसके साथ ही श्रीमद्भागवत गीता का प्रथम, द्वितीय और तृतीय अध्याय भी पूरी तरह याद हो गया है। इसे पूरा याद करने के बाद वह महाकवि सूरदास के महाकाव्य सूरसागर को पूरा याद करेंगे।

जौनपुर जिले की मडियाहूं तहसील एवं राम नगर विकास खण्ड के बलभद्रपुर गांव के निवासी श्रीराम मौर्य के पुत्र के रुप में वर्ष 1954 में मंगरु राम उर्फ मदनदास का जन्म हुआ था। मगरु राम जब लगभग तीन साल के थे तब उन्हें चेचक निकला और दोनों आंखों की रोशनी चली गयी। मंगरु राम के पिता श्री राम मौर्य की तबीयत भी उसी समय खराब हुई और वह दुनिया से चल बसे। पिता की मृत्यु के बाद उनका लालन-पालन चाचा ने किया। मंगरु राम ने 22 वर्ष की अवस्था में ही अपना मन भगवान के चरणों में लगा लिया और उसी समय से अपना नाम मंगरुराम से बदल कर मदनदास रख लिया अब ये मदनदास उर्फ सूरदास के नाम से जाने जाते हैं।

मदनदास उर्फ सूरदास ने बताया कि वर्ष 1975 में उन्होंने श्री रामचरित मानस को कंठस्थ करने की बात अपने मन में ठान ली थी यह काम बड़ा कठिन था मगर दृढ़ इच्छा शक्ति से संभव था। उन्होंने अपने गांव के एक बालक से कहा, तुम रामचरित मानस की चौपाई, दोहे तथा श्लोक कम से कम तीन बार पढ़ कर मुझे सुनाओ तो मैं उसे याद कर लूंगा।

पांच वर्ष के कठिन परिश्रम के पश्चात 1980 में इन्हें श्री रामचरित मानस सम्पूर्ण कंठस्थ हो गया। उन्होंने कहा कि श्री रामचरित मानस में कुल चार हजार छह सौ बाइस चौपाई, एक सौ अस्सी छन्द, एक हजार चौहत्तर दोहे तथा नौ श्लोक हैं। सूरदास को पूरी उम्मीद है कि अब वह जो भी धार्मिक ग्रंथ याद करना चाहेंगे उन्हें याद हो जाएगा।

इस समय वह श्रीमद्भागवत गीता याद करने में जुटे है अब तक उन्हें इसका प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय अध्याय पूरी तरह याद हो गया है। सूरदास ने दावा किया है कि दो वर्ष के अन्दर वह पूरी श्रीमद्भागवत गीता याद कर लेंगे और इसके बाद वह महाकवि सूरदास रचित महाकाव्य, सूर सागर को याद करेंगे। उन्होंने बताया कि इस समय वह जिले में स्थित अनेक विद्यालयों में जाते है और विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा के बारे में जानकारी देते है इसके बदले उन्हें कुछ धन मिल जाता है उसी से इनका भरण पोषण होता है।

चावल के दाने पर लिखी रामायण

जमशेदपुर के लाल का कमाल
प्रतिभाएं परिस्थितियों की मोहताज नहीं होतीं. कठिन से कठिन परिस्थितियों के बीच से भी वह उभर कर सामने आती हैं. अगर उचित अवसर और मंच मिले तो उनमें तेजी से निखार आता है. ऐसी ही प्रतिभा के धनी हैं, झारखंड के जमशेदपुर के कीताडीह निवासी 17 वर्षीय नवीन कुमार. ये चावल के दाने पर पेंटिंग बनाते हैं.

पेंटिंग बनाते समय ये किसी तरह के सिग्नीफिकेंट ग्लास का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि चिमटा के सहारे चावल के दाने को पकड़ कर अपनी पेंटिंग तैयार करते हैं. अब तक चावल के दाने पर उन्होंने रामायण, बाइबल, महाभारत व कुरान लिखा है. वे रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, भगत सिंह का पोट्रेट व भगवान गणोश की पेंटिंग बना चुके हैं.

चावल पेंटिंग में गहरी दिलचस्पी

पिछले चार सालों से आर्टिस्ट मानिक साव के निर्देशन में नवीन पेंटिंग सीख रहे हैं, लेकिन चावल में पेंटिंग बनाने की कला उनकी अपनी है. इसे उन्होंने अपनी कोशिश से उभारा है.

नवीन माइक्रो आर्टिस्ट बनना चाहते हैं. इनके पिता आदित्यपुर की एक कंपनी में प्राइवेट जॉब में हैं. नवीन को-ऑपरेटिव कॉलेज से इंटर की पढ़ाई कर रहे हैं. छोटा भाई कक्षा नौ में पढ़ता है. मां गृहिणी हैं.

नवीन के अनुसार घर की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं है. हर महीने वे पेंटिंग में दो पोट्रेट बनाते हैं. उसमें काफी खर्च आता है. कलर भी बहुत महंगे आते हैं. प्रैक्टिस में ही इतने खर्च हो जाते हैं कि आगे अन्य चित्रकारों की तरह पेंटिंग की इच्छा होते हुए भी बना नहीं पाते. चावल के दाने में पेंटिंग बनाने में कम खर्च होता है और माइक्रो पेंटिंग भी हो जाती है.

Friday, June 14, 2013

अयोध्या में जगदगुरु स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज की प्रेसवार्ता

श्रीमठ,काशी पीठाधीश्वर जगदगुरु स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज तीन दिवसीय श्रीराम रामानंद भावाभिसिक्त यात्रा के क्रम में वर्ष 2008 के मार्च महीने में अयोध्याजी पहुंचे थे। रामलला के दर्शन, सरयू जी  का पूजन और स्नान, विभिन्न संत-श्रीमहंतों द्वारा अभिनंदन और आश्रमों में पधरावणियों के बीच ही उन्होंने सम-समायिक राजनीतिक परिस्थियों और धार्मिक ज्वलंत विषयों पर अपनी बेबाक राय रखी। उसी का एक वीडियो क्लिप आप सबके लिए यहां पेश है।

Wednesday, June 12, 2013

जगदगुरु स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी का श्रीअयोध्या यात्रा

रामभक्ति परंपरा के मूल आचार्यपीठ, श्रीमठ,काशी पीठाधीश्वर जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज, साल 2008 में तीन दिनों के लिए अयोध्याजी की यात्रा पर गये थे। अयोध्या में रामानंद संप्रदाय के संतो, श्रीमहंतों और अखाड़े के संतो ने अपने आचार्य का जोरदार स्वागत किया था। अयोध्या यात्रा के पहले दिन महाराजश्री ने सरयू स्नान और पूजन किया था। उसी श्रीराम रामानंद भावाभिसिक्त यात्रा के दौरान का एक वीडियो चित्र जो 30 मार्च,2008 को लिया गया था।

बक्सर में श्रीमठ करेगा शतमुख कोटि होमात्मक श्रीराम महायज्ञ

महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि बक्सर में एक विराट श्रीराम महायज्ञ करने का संकल्प जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज ने लिया। आगामी सात दिसम्बर से 15 दिसम्बर,2013 तक चलने वाले यज्ञ में देश भर से शीर्ष संत-महात्मा, श्रीमहंत, भजन गायक और सुख्यात लीला मंडली के कलाकार भाग लेंगे। कई शताब्दी बाद धर्मनगरी बक्सर में इस तरह का भव्य यज्ञ देखने और उसमें भाग लेने का सुअवसर सनातन धर्मावलम्बियों को प्राप्त होगा। इस यज्ञ का नाम शतमुख कोटि होमात्मक श्रीराम महायज्ञ होगा। इसमें सौ हवन कुंड बनेंगे जिसमें एक करोड़ आहुतियां डाली जाएंगी। सबसे बड़ी बात ये है कि यह यज्ञ उस पीठ की ओर से हो रहा है जिसे देश में रामभक्ति परंपरा और रामानंद संप्रदाय का मूल आचार्यपीठ का गौरव हासिल है। यज्ञ के संकल्पक स्वयं वर्तमान जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज हैं, जो रामावत संप्रदाय के जगदगुरु हैं। यज्ञ को ऐतिहासिक स्वरुप देने के लिए महाराज श्री ने 11 जून को बक्सर का दौरा किया और वहां यज्ञ तैयारी समिति से जुड़े स्थानीय लोगों के साथ बैठक की। ईटीवी से बातचीत के दौरान महाराज श्री ने यज्ञ के स्वरुप और तैयारियों के बाबत जो जानकारी दी ,उसे उन्हीं की भाषा में यहां आप सुन सकते हैं।

Tuesday, June 11, 2013

बक्सर में श्रीमठ की ओर से विराट श्रीराम महायज्ञ दिसम्बर में

महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि बक्सर में एक विराट श्रीराम महायज्ञ करने का संकल्प जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज ने लिया। आगामी सात दिसम्बर से 15 दिसम्बर,2013 तक चलने वाले यज्ञ में देश भर से शीर्ष संत-महात्मा, श्रीमहंत, भजन गायक और सुख्यात लीला मंडली के कलाकार भाग लेंगे। कई शताब्दी बाद धर्मनगरी बक्सर में इस तरह का भव्य यज्ञ देखने और उसमें भाग लेने का सुअवसर सनातन धर्मावलम्बियों को प्राप्त होगा। इस यज्ञ का नाम शतमुख कोटि होमात्मक श्रीराम महायज्ञ होगा। इसमें सौ हवन कुंड बनेंगे जिसमें एक करोड़ आहुतियां डाली जाएंगी। सबसे बड़ी बात ये है कि यह यज्ञ उस पीठ की ओर से हो रहा है जिसे देश में रामभक्ति परंपरा और रामानंद संप्रदाय का मूल आचार्यपीठ का गौरव हासिल है। यज्ञ के संकल्पक स्वयं वर्तमान जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज हैं, जो रामावत संप्रदाय के जगदगुरु हैं। यज्ञ को ऐतिहासिक स्वरुप देने के लिए महाराज श्री ने 11 जून को बक्सर का दौरा किया और वहां यज्ञ तैयारी समिति से जुड़े स्थानीय लोगों के साथ बैठक की। ईटीवी से बातचीत के दौरान महाराज श्री ने यज्ञ के स्वरुप और तैयारियों के बाबत जो जानकारी दी ,उसे उन्हीं की भाषा में यहां आप सुन सकते हैं।

जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्यजी महाराज का अयोध्या प्रवास


रामभक्ति परंपरा के मूल पीठ, श्रीमठ,काशी के वर्तमान आचार्य जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्यजी महाराज ने पिछले दिनों अयोध्याजी जाकर भगवान श्रीरामलला का दर्शन किया था,.उसी मौके का वीडियो क्लिप यहां प्रस्तुत है।

प्रेस क्लब इंदौर में महाराजश्री का संबोधन

Swami Ramnareshacharya ji Maharaj in Indore Press Club.

जगदगुरु स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य ने किया अयोध्या में श्रीरामलला का दर्शन

रामभक्ति परंपरा के मूलपीठ,श्रीमठ,काशी के जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज ने पिछले दिनों अयोध्या में भगवान श्रीरामलला का दर्शन किया था। उसी का वीडियो क्लिप
 जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज का इंदौर प्रेस क्लब में संबोधन

Sunday, June 9, 2013

मंगलगीतम्

मंगलगीतम—-जय जय देव हरे
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श्रितकमलाकुचमण्डल धृतकुण्डल ए।
कलितललितवनमाल जय जय देव हरे।।
दिनमणिमण्डलमण्डन भवखण्डन ए।
मुनिजनमानसहंस जय जय देव हरे।। श्रित ..।।
कालियविषधरगंजन जनरंजन ए।
यदुकुलनलिनदिनेश जय जय देव हरे।। श्रित ..।।
मधुमुरनरकविनाशन गरुडासन ए।
सुरकुलकेलिनिदान जय जय देव हरे।। श्रित .. ।।
अमलकमलदललोचन भवमोचन ए।
त्रिभुवनभवननिधान जय जय देव हरे।। श्रित .. ।।
जनकसुताकृतभूषण जितदूषण ए।
समरशमितदशकण्ठ जय जय देव हरे।। श्रित ..।।
अभिनवजलधरसुन्दर धृतमन्दर ए।
श्रीमुखचन्द्रचकोर जय जय देव हरे।। श्रित ..।।
तव चरणे प्रणता वयमिति भावय ए।
कुरु कुशलं प्रणतेषु जय जय देव हरे। श्रित.. ।।
श्रीजयदेवकवेरुदितमिदं कुरुते मृदम्।
मंगलमंजुलगीतं जय जय देव हरे।। श्रित .. ।।
(श्री जयदेव रचित आरती जो जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी को अत्यंत प्रिय है। विशेष पूजा के अवसर पर वे इसी आरती को बड़ी भक्ति भाव से गाते हैं।)

उज्जैन में गुजराती सेन समाज के समारोह में स्वामी रामनरेशाचार्य




पिछले 3 जून को महाकाल की नगरी उज्जैन में गुजराती सेन समाज के समारोह में जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज शामिल हुए। उनके कर कमलों द्वारा 8 एकड़ भूमि पर एक करोड़ की लागत से बनने वाले विधालय, छात्रावास और वृद्धाश्रम का शिलान्यास हुआ.। उसी समारोह का वीडियो यहां उपलब्ध है.

बिहार के आठ दिवसीय प्रवास पर आरा पहुंचे स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य

बिहार की आठ दिवसीय धर्म यात्रा पर आरा पहुंचे जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज ने कहा है कि देश में ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनना चाहिए जिसमें पूरे देश को एक साथ लेकर चलने की क्षमता हो। आरा में ईटीवी के साथ खास बातचीत में उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी से आरएसएस औऱ उसके दूसरे संगठन के लोग खुश नहीं है, इसीलिए उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में विलंब हो रहा है।
आरा प्रवास के दौरान महाराजश्री आज यानि 9 जून 2013 को भोजपुर जिले के शाहपुर और बिहियां के कई गांवों का दौरा किया। सबसे पहले वे गंगा तट पर बसे बहोरनपुर गांव में गये और भक्तों को आशीर्वाद दिया। फिर गौरा और बारा आदि गांवों में भी महाराजश्री के प्रवचन हुए। अगले दो दिनों तक स्वामी जी बक्सर जिले के कई गांवों में प्रवास करेंगे। दरअसल बक्सर में आगामी दिसम्बर माह में श्रीमठ की ओर से प्रस्तावित कोटि होमात्मक श्रीराम महायज्ञ की तैयारियां भी शुरू हो गयी हैं। महाराज श्री अपने प्रवास के क्रम में श्रीराम महायज्ञ को लेकर भी भक्तों को निमंत्रित कर रहे हैं।

Monday, June 3, 2013

उज्जैन में गुजराती सेन समाज के छात्रावास-वृद्धाश्रम का भूमिपूजन सम्पन्न



Swami Ramnareshacharya in Ujjain

महाकाल की नगरी उज्जैन में 3 जून,2013 सोमवार को सुबह 10 बजे गढ़कालिका मंदिर के पास गुजराती-सेन समाज की भूमि पर छात्रावास एवं वृद्धाश्रम का भूमिपूजन किया गया। श्रीमठ,काशी पीठाधीश्वर जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्यजी महाराज के पावन सान्निध्य और सेनाचार्य स्वामी अचलानंद जी महाराज की उपस्थिति में भूमि पूजन की रस्म विधि-विधान से पूर्ण हुई।
Swami Ramnareshacharya ,kashi
स्वामी रामनरेशाचार्यजी महाराज ने खुद फावड़ा चलाकर निर्माण कार्य का श्रीगणेश किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि पहले सेन समाज को महाकाल का आशीर्वाद मिला करता था अब उन्हें रहने के लिए आवास, बच्चों के लिए छात्रावास और बुढ़ापे में विश्राम के लिए मकान भी मिल रहा है। इससे समाज के लोगों का गौरव बढ़ेगा।

Swami Ramnareshacharya and Kailash Vijayvargia
स्वामी रामनरेशाचार्यजी महाराज ने खुद फावड़ा चलाकर निर्माण कार्य का श्रीगणेश किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि पहले सेन समाज को महाकाल का आशीर्वाद मिला करता था अब उन्हें रहने के लिए आवास, बच्चों के लिए छात्रावास और बुढ़ापे में विश्राम के लिए मकान भी मिल रहा है। इससे समाज के लोगों का गौरव बढ़ेगा।


Swami Ramnareshacharya and Kailash Vijayvargia
मप्र गुजराती-सेन समाज के अध्यक्ष नंदकिशोर वर्मा, ट्रस्ट अध्यक्ष अशोक राठौर व भरत भाटी ने बताया कि कार्यक्रम को जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य महाराज, काशी, सेनाचार्य स्वामी अचलानंदाचार्य महाराज, जोधपुर,मध्यप्रदेश के  उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, थावरचंद गेहलोत, खाद्य मंत्री पारस जैन, सांसद प्रेमचंद गुड्डू, डॉ. सत्यनारायण जटिया, विधायक सुदर्शन गुप्ता आदि ने संबोधित किया।करीब आठ एकड़ जमीन में एक करोड़ रुपये की लागत से हॉस्टल और वृद्धाश्रम बनेगा और 2016 में होने वाले सिंहस्थ कुंभ से पहले इसका निर्माण पूरा हो जाने का दावा ट्रस्ट से जुड़े लोग कर रहे हैं।


Swami Ramnareshacharya ji Maharaj,Srimath,Kashi

Wednesday, May 8, 2013

भगवान परशुराम मंदिर, हैदराबाद का होर्डिंग

Swami Ramnreshacharya ji Maharaj, Kashi

परशुराम मंदिर, हैदराबाद प्राण-प्रतिष्ठा समारोह आमंत्रण पत्र

Prashuram Mandir Hyderabad

जगदगुरु स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज का हैदराबाद दौरा

रामानंद संप्रदाय के प्रधान आचार्य और सगुण एवम् निर्गुण रामभक्ति परंपरा के मूल आचार्यपीठ श्रीमठ, काशी के वर्तमान पीठाधीश्वर जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज पांच दिवसीय प्रवास पर आज हैदराबाद पहुंच रहे हैं। शाम सवा पांच बजे वे बैंगलोर से वायुमार्ग द्वारा हैदराबाद के शमशाबाद स्थित राजीव गांधी अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचेंगे। हैदराबाद के भक्तगण और ब्रह्मर्षि समाज के पदाधिकारी बड़ी संख्या में उनकी आगवानी कर उन्हें कुक्कटपल्ली ले जाएंगे, जहां अगले पांच दिनों तक उनका आवास रहेगा। ब्रह्मर्षि सेवा समाज, हैदराबाद के अध्यक्ष श्रीराम गोपाल चौधरी का आवास इस दौरान आचार्यश्री का अस्थायी आवास होगा। महाराजश्री हैदराबाद के जगतगिरीगुट्टा में बने भगवान परशुराम के नवनिर्मित मंदिर के तीन दिवसीय प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के मुख्य अतिथि हैं। अक्षय तृतीया यानि परशुराम जयंती के मौके पर मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा होना सुनिश्चित हुआ है। वैसे धार्मिक कार्यक्रमों की शुरुआत 11 मई को प्रातः सात बजे गणपति पूजा और देवताओं के आवाहन  के साथ हो जाएगी। अक्षय तृतीया के दिन 13 मई को प्रातः 10 बजकर 26 मिनट पर प्राण-प्रतिष्ठा का मुहुर्त्त है। इसके निमित्त मंदिर परिसर में यज्ञ मंडप का निर्माण हो चुका है। महाराजश्री के सान्निध्य में होने वाली समस्त मंगलप्रवृत्तियों का संचालन हैदराबाद के नल्लकुंटा स्थित प्राचीन रामालयम के प्रधान यज्ञरत्न आचार्य के.ए.चारी करेंगे। आचार्यश्री के हैदराबाद प्रवास के दौरान कई तरह के अन्य समारोह भी आयोजित हैं, जहां भक्त और श्रद्धालु उनके दर्शन-पूजन और आशीर्वचन के लाभ उठा सकेंगे। रामानंदी वैष्णव समाज के संत-महात्माओं में भी अपने आचार्य के आगमन को लेकर खासा उत्साह है।

Monday, April 15, 2013

भगवान परशुराम : देश की पहली बड़ी लड़ाई के महानायक

parashuram-सूर्यकांत बाली
हमें महाभारत के नाम से प्रसिद्ध एक भयानक संग्राम की याद है जो आज से करीब पांच हजार साल पहले (अर्थात् पांच हजार साल से भी पचास-साठ साल पहले) लड़ा गया था, जिसमें सारे देश के राजाओं ने किसी न किसी रूप में हिस्सा लिया था। पर हमें यह भी याद रखना चाहिए कि महाराज मनु से मिलने वाले अपने देश के ज्ञात इतिहास में महाभारत से भी पहले महासंग्राम लड़े गए थे।
दाशराज युद्ध नामक एक अन्य महासंग्राम का जिक्र हम कर चुके हैं जो पुरुवंशी सुदास और दस विरोधी राजाओं के महासंघ के बीच सरस्वती, परुष्णी और दृषद्वती नदियों के बीच महाभारत के करीब साढ़े आठ सौ वर्ष पहले लड़ा गया था जिसमें सुदास जीते और दस  राजाओं का महासंघ हारा।
हम जानते हैं कि दाशराज युद्ध से भी करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले (यानी आज से करीब छह हजार वर्ष पहले) राम ने दक्षिण भारत की वनवासी जातियों की एक विराट सेना का नेतृत्व कर रावण से भयानक संग्राम किया था और जीते थे। ऐतिहासिक राम-रावण युद्ध से भी करीब (एक हजार साल पहले) भगवान परशुराम ने उत्तर और पूर्व के राजाओं का एक महासंघ बनाकर आधुनिक गुजरात के हैहय राजाओं के खिलाफ एक महासंग्राम को नेतृत्व प्रदान किया था।
यानी महाभारत युद्ध आज से 5000 वर्ष पूर्व, राम रावण युद्ध आज से 6000 वर्ष पूर्व और हैहृय-परशुराम युद्ध आज से करीब 7000 वर्ष पूर्व लड़े गए। अगर महाभारत युद्ध द्वापर युग के अंत में, राम-रावण युद्ध और दाशराज युद्ध त्रेतायुग के अंत में लडे ग़ए तो परशुराम के नेतृत्व में हैहयों के विरुद्ध यह युद्ध सत्ययुग अर्थात् कृतयुग के अंत में लड़ा गया। भारत के आठ हजार वर्षों के मनुपरवर्ती ज्ञात इतिहास का यह पहला महासंग्राम था, जिसके विजेता महानायक परशुराम को इस देश का बच्चा-बच्चा जानता है तो उस युद्ध के कारण नहीं बल्कि अन्य कारणों से और इस युद्ध की एक अजीबोगरीब बना दी गई व्याख्या के कारण से।
तो कौन थे परशुराम जिन्हें हमारा पुराना साहित्य भगवान परशुराम के नाम से पूरी इज्जत और श्रद्धा के साथ याद करता है तो इस देश के ब्राह्मण जाति के लोगों ने इधर उन्हें अपना लक्कड़दादा मानकर उनकी जयंती मनानी शुरू कर दी है? हालत करीब-करीब वही है जो वसिष्ठों और विश्वामित्रों के सन्दर्भ में देख आए हैं। परशुराम जिस भार्गव वंश के थे, इसकी पूरी एक वंशपरम्परा है जिसके सभी महापुरुष भार्गव या परशुराम स्वाभाविक रूप से कहलाए, लेकिन वसिष्ठों और विश्वामित्रों की तरह हमने सभी परशुरामों को भी एक कर दिया है।
एक परशुराम वे थे, जिन्होंने भीष्म (पितामह) के साथ इसलिए युद्ध किया था ताकि भीष्म खुद उनके (भीष्म के) द्वारा अपहरण करके लाई गई अम्बा (अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका वाली अम्बा) के साथ विवाह करें, पर वे भीष्म को आजीवन विवाह न करने की प्रतिज्ञा से डिगा नहीं सके। इन्हीं परशुराम से आगे चलकर कुन्तीपुत्र कर्ण ने अस्त्र विद्या सीखी थी।
इनसे एक हजार साल पहले के एक परशुराम वे थे जिन्होंने शिव धानुष तोड़ने वाले राम के साथ विवाद किया, उसके शौर्य को चुनौती दी और राम से अपना मद-दलन करवा कर लौटे। हैहयों से लड़ने वाले परशुराम इससे भी करीब एक हजार साल पहले हुए। हैहयों से हुए इस महासंग्राम में परशुराम ने हैहयों को एक के बाद एक इक्कीस बार पराजित किया। पर तब से हमारी स्मृतियों के इतिहास में दर्ज यह हो गया कि परशुराम ने भारत भूमि को इक्कीस बार क्षत्रियों से रहित कर दिया। क्या क्षत्रियों का इक्कीस बार विनाश कोई एक ही योद्धा कर सकता है? क्या यह संभव है? नहीं। इसलिए हमारा कहना है कि हैहयों के साथ हुए इस महायुद्ध की इस अजीबोगरीब व्याख्या के कारण देश का बच्चा-बच्चा परशुराम के बारे में जितना जानता है, उसके अलावा भी परशुराम के बारे में कुछ और जरूरी बातें जान लेनी चाहिए।
परशुराम जिस कुल में जन्मे उसके आदिपुरुष का नाम भृगु था। ये वही भृगु हैं जिनके किसी वंशज के प्रयासों से वह भृगुसंहिता रची गई, जिसे पढ़कर लोग अपना भविष्य जानने को उत्सुक रहते हैं। इसी भृगु के कारण उनके सभी वंशज भार्गव कहलाए। परशुराम भार्गव के पिता का नाम जमदग्नि था, इसलिए हमारी इस गाथा के कथानक के नायक को परशुराम भार्गव के अलावा परशुराम जागदग्न्य भी कह दिया जाता है।
इनकी माता का नाम रेणुका था और हम भारतीयों को गाथा याद है कि किसी बात पर रुष्ट अपने पिता जन्मदग्नि के आदेश का पालन करते हुए परशुराम ने अपने परशु (फरसा) से मां का वध कर दिया। जब प्रसन्न पिता ने वर मांगने को कहा तो उन्होंने अपनी मां का ही पुनर्जीवन मांग कर मां को फिर से पा लिया। भार्गवों को अगर (कौशिकों और कश्यपों की तरह) प्रामाणिक ब्राह्मण कुल न मानने की परम्परा चल पड़ी है तो इसका कारण परशुराम द्वारा किया गया मातृ-वध ही नजर आता है।
परम्परा के भार्गव लोग नर्मदा के किनारे रहा करते थे और आनर्त (गुजरात) के हैहय राजवंश के कुलगुरु थे। परशुराम भी अपने पिता जगदग्नि के साथ नर्मदा नदी के तट पर बने अपने आश्रम में रहा करते थे। अब तो परशुराम नाम का रिश्ता ही फरसे और दूसरे कई तरह के शस्त्रों से तथा हैहयों के साथ लड़े गए युद्ध के साथ बन गया है। पर मूलत: भार्गव आयुधजीवी ब्राह्मण नहीं थे और जमदग्नि का नाम भी शस्त्र के बजाय ज्ञान और विद्या के साथ ही जोड़ा जाता है।
एक विचारधारा यह भी है कि भार्गव और आंगिरस कुल के परवर्ती आचार्यो ने ही रामायण, महाभारत और पुराणों का संपूर्ण नव-संस्कार किया था और कई बाद की परम्पराओं को पुराणों में जोड़कर इन्हें लगातार नवीनतम बनाने का प्रयास किया था। भार्गव कुल इस हद तक विद्यानुरागी था कि हैहयों से मनमुटाव हो जाने के कारण अपने तिरस्कर्ता राजाओं से झगड़ने की बजाय वे लोग कान्यकुब्ज में जाकर रहने लग गए थे।
पर जमदग्नि के साथ हुए अपमान को उनके पुत्र परशुराम सहन नहीं कर पाए और शस्त्र विद्या पर परमज्ञान प्राप्त कर वे कई राजाओं का महासंघ बनाकर हैहयों से उलझ पड़े और एक महासमर को नेतृत्व दिया जिसमें हैहय जगह-जगह हारे। उसके बाद तो कुछ ऐसा हुआ कि भार्गव की बजाय परशुराम ही मानो कुल नाम पड़ गया और वह हर वंशज, जो युद्धविद्या में प्रवीण हो गया, खुद को परशुराम कहलाना ही पसंद करने लगा। इसलिए जो राम से उलझे वे भी परशुराम, और जो भीष्म से लड़े वे भी परशुराम।
जैसे किसी बहुत बूढ़े आदमी के भूतकाल के जीवन के बारे में कई तरह की अतिशय से भरी उक्तियां कह दी जाती हैं, किसी पुराने जीर्णशीर्ण मकान या उद्यान को लेकर कई तरह की कहानियां गढ़ दी जाती हैं या उससे जुड़ी कई घटनाओं की कई तरह से व्याख्याएं चलन में आ जाती हैं, वैसे ही भारत जैसे अतिप्राचीन देश के इतिहास की कई घटनाओं की विचित्र व्याख्याएं कर दी गई हैं। हैहयों को एक लम्बी चली लड़ाई में इक्कीस जगहों पर पराजय देने वाले परशुराम के बारे में यह फैल गया है कि उन्होंने इक्कीस बार इस धरती पर क्षत्रियों का समूलोन्मूलन कर दिया।
वैसे तो एक बार के समूलोन्मूलन के बाद दोबारा क्षत्रियों के पैदा होने का सवाल ही नहीं उठना चाहिए। इक्कीस बार तो संभव ही नहीं है। पर इतना ही नहीं, परशुराम के हाथों इतने ज्यादा बड़े भू-भाग पर, इतने ज्यादा राजवंशों के इतने बड़े पैमाने पर विनाश की कथाएं पुराणों में मिल जाती है कि पढ़ते-पढ़ते कुछ कोफ्त होने लगती है कि पुराणकार आखिर अपने पाठकों को समझते क्या हैं। इन विवरणों को जितना चाहे बढ़ा सकते हैं।
पर भारत के इतिहास में आज करीब सात हजार साल पहले परशुराम ने यकीनन एक बड़ी निर्णायक लड़ाई हैहयों से लड़ी थी। लड़ाई का कारण क्या था, सहसा समझ में नहीं आ रहा। दो बातें मिलती हैं। एक यह कि एक हैहय राजा कृतवीर्य ने अपने कुलगुरु औचीक और्व भार्गव को प्रभूत धन दिया था। जब कुछ समय बाद राजा ने पैसा वापिस मांगा तो औचीक ने आनाकानी की। राजा ने उनका अपमान कर दिया और औचीक अपना आश्रम छोड़ कान्यकुब्ज चले गये। लेकिन, उनके पुत्र जमदग्नि अपने आश्रम में वापिस आ गए। परशुराम के साथ एक और पुराण कथा जुड़ी है।
ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार कृतवीर्य के पुत्र कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन ने जमदग्नि से उनकी कामधेनु गाय मांगी। गुरु ने मना कर दिया तो कार्तवीर्य ने उनका तिरस्कार कर दिया। बल्कि कहानी यहां तक कहती है कि एक बार जब जमदग्नि के पुत्र परशुराम तप के लिए आश्रम से बाहर गए हुए थे तो कार्तवीर्य के पुत्रों ने जमदग्नि का वध कर दिया। तप से लौटे परशुराम ने इससे कुपित होकर हैहयों के नाश की प्रतिज्ञा कर डाली।
क्या आपको कहीं कोई खास बात मिलती नजर आ रही है? कृतवीर्य-औचीक तथा कीर्तवीर्य-जमदग्नि के बीच विरोध का ऐसा कोई बड़ा कारण इन दोनों कथाओं में से उभरता नजर नहीं आ रहा। जाहिर है कि कोई बड़ा कारण था जिसकी वजह से परशुराम ने हैहयों को सबक सिखाने की ठान ली। बस लग गए वे अपनी धुन के पीछे। अयोध्या, विदेह, काशी, कान्यकुब्ज और वैशाली के राजाओं का एक महासंघ बनाकर खुद वे उसके नेता बने।
उधर हैहयों ने भी आज के सिन्ध और राजस्थान के कुछ राजाओं को अपने साथ मिलाया। परशुराम ने हैहयों को इक्कीस जगह पराजय दी। जाहिर है कि युद्ध लंबा और भयानक चला होगा। यह अनुमान भी लगा सकते हैं कि महाभारत की तरह यह युद्ध भी कई दिन यानी इक्कीस दिन चला और इसमें हैहयों को भारी हार का सामना करना पड़ा हो। जहां युद्ध का कोई बड़ा कारण हमारे इतिहास के स्मृतिपटल से लगभग पुंछ चुका है, वैसे ही इक्कीस संख्या के असली अर्थ से भी हम करीब-करीब वंचित हो चुके हैं।
पर मनुपरवर्ती भारत के इस पहले महासमर को लेकर दो बातें जरूर ध्यान में आ जाती हैं। एक, परशुराम हमारे इतिहास के पहले ब्राह्मण पात्र हैं जिन्होंने किसी राजा को दंड देने के लिए राजाओं को ही एक जुट कर लिया। इसके पहले पुरुरवा, वेन, नहुष, शशाद जैसे राजाओं की दुष्टताओं या लापरवाहियों को दंडित करने के लिए ऋषि या ब्राह्मण अपने ही स्तर पर आगे आए थे।
पहली बार सारे मामले को एक ऐसी राजनीतिक शक्ल मिली कि संघर्ष का स्वरूप ही बदल गया। इसका असर क्या पड़ा, यह आकलन इसलिए कठिन है क्योंकि घटनाचक्र का पूरा रूप हमारे सामने नहीं है। दूसरी महत्वपूर्ण बात उस युग के स्वरूप के बारे में है। कैसा रहा होगा वह युग? एक ओर उत्तर में वसिष्ठ और विश्वामित्र के बीच संघर्ष चल रहा था तो पश्चिम में हैहयों और भार्गवों के बीच युद्ध की स्थिति बनी हुई थी।
अयोध्या में सत्यव्रत त्रिशुंक नाम से एक उद्धत राजा राज कर रहा था तो आनर्त में बराबर के उद्धत कार्तवीर्य की दुन्दुभि बज रही थी। और इन सबसे ऊपर विश्वामित्र और परशुराम नाम के दो विराट मस्तिष्क सारी राजनीति को आंदोलित किए हुए थे। कैसा रहा होगा वह युग जो सत्ययुग की छवि के हिसाब से बहुत ही शांत होना चाहिए, पर कितनी हलचल और कितनी गतिविधि से सराबोर था?

Friday, February 22, 2013

महाकुंभ में मना स्वामी रामनरेशाचार्य का जन्मदिन

प्रयाग महाकुंभ के दौरान यूं तो विविध प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान समायोजित हुए ,लेकिन श्रीमठ,काशी पीठाधीश्वर और रामानंद संप्रदाय के प्रधान आचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज का जन्मदिन समारोह अपने आप में अनूठा और यादगार बन गया। जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज का जन्मदिन वसंत पंचमी (यानि 15 फरवरी ) के दिन ही हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया गया। भक्तों के विशेष आग्रह पर स्वामीजी जन्मदिन के उपलक्ष्य में आयोजित विविध कार्यक्रमों में शामिल होने को तैयार हुए। इस निमित्त विशेष पूजा,आरती और गीत-संगीत का भी आयोजन किया गया । सुरूचिपूर्ण भंडारे के साथ भक्तजनों ने अपने पूज्य गुरुवर के जन्मदिन को यादगार बनाया। 

जगदगुरु रामानंदाचार्य पुरस्कार वितरित

प्रयाग महाकुंभ के दौरान वसंत पंचमी के दिन (15 फरवरी,2013 को) दारागंज स्थित हरित माधव मंदिर ,जो जगदगुरु रामानंदाचार्य की प्राकटय स्थली के नाम से विख्यात है,में विशेष सारस्वत समारोह का समायोजन किया गया। इस मौके पर वर्तमान जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज के पावन सानिध्य में श्रीमठ,पंचगंगा घाट,काशी की ओर से प्रतिवर्ष दिये जाने वाले एक लाख रुपये का जगदगुरु रामानंदाचार्य पुरस्कार प्रदान किया गया। वर्ष 2013 का ये पुरस्कार हिन्दी,संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य के उदभट विद्वान और काशी निवासी प्रोफेसर प्रभुनाथ द्विवेदी को सौंपा गया। इस मौके पर राजस्थान भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. महेश शर्मा सहित बड़ी संख्या में संत,श्रीमहंत,विद्नान और श्रद्धालु मौजूद थे।
  जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज का जन्मदिन भी वसंत पंचमी के दिन ही हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया गया। भक्तों के विशेष आग्रह पर स्वामीजी जन्मदिन के उपलक्ष्य में आयोजित विविध कार्यक्रमों में शामिल होने को तैयार हुए। इस निमित्त विशेष पूजा,आरती और गीत-संगीत का भी आयोजन किया गया । सुरूचिपूर्ण भंडारे के साथ भक्तजनों ने अपने पूज्य गुरुवर के जन्मदिन को यादगार बनाया।