Wednesday, January 10, 2024

"श्रीमठ काशी वाले रामानंदाचार्य और चारो शंकराचार्यों को राममंदिर लोकार्पण में खुद आमंत्रित करें पीएम मोदी"

 



* देवकुमार पुखराज

अयोध्या, 10 जनवरी। 

अयोध्या में राममंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की तिथि जैसे जैसे नजदीक आ रही है, मंदिर को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह के साथ ही विशिष्ट संतों को आमंत्रित नहीं किये जाने को लेकर विवाद भी बढ़ते जा रहा है। अभी तक जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य और चारों पीठ के शंकराचार्य द्वारा मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा उत्सव से दूरी बनाने की बात सामने आयी है। इसे लेकर अयोध्या के संत समाज भी मुखर होने लगा है।

अयोध्या के कनक भवन रोड स्थित श्रीराम आश्रम के महंत जयराम दास ने सोशल मीडिया के जरिये विशेष आग्रह किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की है कि वे स्वयं ही श्रीमठ, काशी वाले जगदगुरु रामानंदाचार्य और चारों शंकराचार्यों को आमंत्रित करें। महंत जयराम दास, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अयोध्या नगर संघचालक भी हैं, ने लिखा है-

“श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का उद्घाटन समारोह इस सदी का सबसे बड़ा ऐतिहासिक शुभ अवसर है। इस पावन समारोह के अवसर पर रामानंद संप्रदाय के मूल पीठ श्रीमठ, पंचगंगा घाट, काशी एवं चारों जगद्गुरु शंकराचार्यों की अनुपस्थिति शास्त्रोक्त व लौकिक दृष्टि से उचित नहीं”।

वे आगे लिखते हैं- जब कोई आचार्यपीठ पूज्य-जन किसी वेदोक्त, शास्त्रोक्त नियमानुकूल अप्रसन्न होकर आपके अनुष्ठान का निषेध करें तब यजमान का कर्तव्य है कि वह कैसे भी अनुनय विनय कर अपने पूज्य जगद्गुरु पद प्रतिष्ठित श्रेष्ठ जनों को संतुष्ट करे, तभी राम मंदिर राष्ट्रीय मंदिर होकर देश और विश्व में अलख जगाएगा, शुभ फल प्राप्त होगा । 

महंत जयराम दास की अपील है- श्रीराम मंदिर उद्घाटन के प्रधान-यजमान माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी स्वयं चारों पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्यों और श्रीमठ वाले रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज से प्रार्थना-पूर्वक संवाद करके आमंत्रित करें और समारोह स्थल पर उनके लिए विशेष प्रोटोकॉल का प्रबंध करें। इससे देश में बहुत अच्छा संदेश जायेगा। यह धार्मिक रूप से भी उचित होगा ओर राजनीतिक रूप से भी। सनातन के सर्वोच्च धर्माचार्यों का सम्मान हम सबका कर्तव्य है। वे आगे लिखते हैं- केवल श्रीराम मंदिर ही नहीं, काशी-मथुरा में भी कुछ अच्छा करना है, तो सबको अपना अहंकार संतुलित रखना होगा। शंकराचार्यों का सम्मान कर मोदी जी छोटे नहीं हो जायेंगे, प्रत्युत उनका यश और कीर्ति भी अभिवर्धित होगा। यही धर्मानुशासन है। लौकिक सामाजिक व्यवहार भी।

इस बीच जगदगुरु रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल भी खुलकर शीर्ष संतों के समर्थन में खड़ा हो गया है। रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल से जुड़े गजानन अग्रवाल (जयपुर) और सत्येन्द्र पांडेय (आरा, बिहार) ने कहा है कि जब श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र समिति के महासचिव चम्पत राय कहते हैं कि अयोध्या जन्मभूमि का मंदिर रामानंद संप्रदाय का है, तो फिर अभीतक रामानंद संप्रदाय के मूल आचार्यपीठ श्रीमठ, पंचगंगा घाट, काशी को इस पूरे आयोजन से दूर क्यों रखा है। चम्पत राय को याद होना चाहिए कि जब पहली बार श्रीरामजन्मभूमि के लिए विहिप ने राष्ट्रीय समिति गठित की थी, तो श्रीमठ के तत्कालीन पीठाधीशवर जगदगुरु शिवारामाचार्य जी को उसका प्रथम अध्यक्ष बनाया गया था। जब 90 के दशक में केन्द्र सरकार ने पीएम नरसिम्हा राव के समय अय़ोध्या विवाद का हल निकालने हेतु रामालय ट्रस्ट गठित किया था, तो श्रीमठ वाले जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज को उसका संयोजक नियुक्त किया था। उस समिति में द्वारकापुरी के जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद जी महाराज, श्रृंगेरीपीठ के जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी भारतीतीर्थ जी महाराज और उडप्पी के पेजावर स्वामी मध्वाचार्य स्वामी विश्वेषतीर्थ जी महाराज भी शामिल थे।  

बताते चलें कि दो दिन पहले ही ज्योतिषपीठ, बदरीकाश्रम के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बयान जारी कर कहा था कि अयोध्या का श्रीराम मंदिर रामानंद संप्रदाय को सौंपा जाए। इस विषय पर किसी शंकराचार्य को आपत्ति नहीं होगी। रामानंद संप्रदाय के संतों को ही मंदिर निर्माण से लेकर उसके प्रबंध की जिम्मेदारी सौंपी जाए।