जमशेदपुर के लाल का कमाल
प्रतिभाएं परिस्थितियों की मोहताज नहीं होतीं. कठिन से कठिन परिस्थितियों के बीच से भी वह उभर कर सामने आती हैं. अगर उचित अवसर और मंच मिले तो उनमें तेजी से निखार आता है. ऐसी ही प्रतिभा के धनी हैं, झारखंड के जमशेदपुर के कीताडीह निवासी 17 वर्षीय नवीन कुमार. ये चावल के दाने पर पेंटिंग बनाते हैं.
पेंटिंग बनाते समय ये किसी तरह के सिग्नीफिकेंट ग्लास का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि चिमटा के सहारे चावल के दाने को पकड़ कर अपनी पेंटिंग तैयार करते हैं. अब तक चावल के दाने पर उन्होंने रामायण, बाइबल, महाभारत व कुरान लिखा है. वे रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, भगत सिंह का पोट्रेट व भगवान गणोश की पेंटिंग बना चुके हैं.
चावल पेंटिंग में गहरी दिलचस्पी
पिछले चार सालों से आर्टिस्ट मानिक साव के निर्देशन में नवीन पेंटिंग सीख रहे हैं, लेकिन चावल में पेंटिंग बनाने की कला उनकी अपनी है. इसे उन्होंने अपनी कोशिश से उभारा है.
नवीन माइक्रो आर्टिस्ट बनना चाहते हैं. इनके पिता आदित्यपुर की एक कंपनी में प्राइवेट जॉब में हैं. नवीन को-ऑपरेटिव कॉलेज से इंटर की पढ़ाई कर रहे हैं. छोटा भाई कक्षा नौ में पढ़ता है. मां गृहिणी हैं.
नवीन के अनुसार घर की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं है. हर महीने वे पेंटिंग में दो पोट्रेट बनाते हैं. उसमें काफी खर्च आता है. कलर भी बहुत महंगे आते हैं. प्रैक्टिस में ही इतने खर्च हो जाते हैं कि आगे अन्य चित्रकारों की तरह पेंटिंग की इच्छा होते हुए भी बना नहीं पाते. चावल के दाने में पेंटिंग बनाने में कम खर्च होता है और माइक्रो पेंटिंग भी हो जाती है.
प्रतिभाएं परिस्थितियों की मोहताज नहीं होतीं. कठिन से कठिन परिस्थितियों के बीच से भी वह उभर कर सामने आती हैं. अगर उचित अवसर और मंच मिले तो उनमें तेजी से निखार आता है. ऐसी ही प्रतिभा के धनी हैं, झारखंड के जमशेदपुर के कीताडीह निवासी 17 वर्षीय नवीन कुमार. ये चावल के दाने पर पेंटिंग बनाते हैं.
पेंटिंग बनाते समय ये किसी तरह के सिग्नीफिकेंट ग्लास का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि चिमटा के सहारे चावल के दाने को पकड़ कर अपनी पेंटिंग तैयार करते हैं. अब तक चावल के दाने पर उन्होंने रामायण, बाइबल, महाभारत व कुरान लिखा है. वे रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, भगत सिंह का पोट्रेट व भगवान गणोश की पेंटिंग बना चुके हैं.
चावल पेंटिंग में गहरी दिलचस्पी
पिछले चार सालों से आर्टिस्ट मानिक साव के निर्देशन में नवीन पेंटिंग सीख रहे हैं, लेकिन चावल में पेंटिंग बनाने की कला उनकी अपनी है. इसे उन्होंने अपनी कोशिश से उभारा है.
नवीन माइक्रो आर्टिस्ट बनना चाहते हैं. इनके पिता आदित्यपुर की एक कंपनी में प्राइवेट जॉब में हैं. नवीन को-ऑपरेटिव कॉलेज से इंटर की पढ़ाई कर रहे हैं. छोटा भाई कक्षा नौ में पढ़ता है. मां गृहिणी हैं.
नवीन के अनुसार घर की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं है. हर महीने वे पेंटिंग में दो पोट्रेट बनाते हैं. उसमें काफी खर्च आता है. कलर भी बहुत महंगे आते हैं. प्रैक्टिस में ही इतने खर्च हो जाते हैं कि आगे अन्य चित्रकारों की तरह पेंटिंग की इच्छा होते हुए भी बना नहीं पाते. चावल के दाने में पेंटिंग बनाने में कम खर्च होता है और माइक्रो पेंटिंग भी हो जाती है.
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