उत्तर
प्रदेश के जौनपुर में दोनों
आंखों की रोशनी खो चुके मदनदास
को गोस्वामी तुलसीदास द्वारा
रचित श्री रामचरित मानस,
दोहावली,
कवितावली,
हनुमान
बाहुक और विनय पत्रिका सहित
हनुमान चालीसा पूरी तरह कंठस्थ
हो गयी है। इसके साथ ही श्रीमद्भागवत
गीता का प्रथम,
द्वितीय
और तृतीय अध्याय भी पूरी तरह
याद हो गया है। इसे पूरा याद
करने के बाद वह महाकवि सूरदास
के महाकाव्य सूरसागर को पूरा
याद करेंगे।
जौनपुर
जिले की मडियाहूं तहसील एवं
राम नगर विकास खण्ड के बलभद्रपुर
गांव के निवासी श्रीराम मौर्य
के पुत्र के रुप में वर्ष 1954
में
मंगरु राम उर्फ मदनदास का जन्म
हुआ था। मगरु राम जब लगभग तीन
साल के थे तब उन्हें चेचक निकला
और दोनों आंखों की रोशनी चली
गयी। मंगरु राम के पिता श्री
राम मौर्य की तबीयत भी उसी समय
खराब हुई और वह दुनिया से चल
बसे। पिता की मृत्यु के बाद
उनका लालन-पालन
चाचा ने किया। मंगरु राम ने
22
वर्ष
की अवस्था में ही अपना मन भगवान
के चरणों में लगा लिया और उसी
समय से अपना नाम मंगरुराम से
बदल कर मदनदास रख लिया अब ये
मदनदास उर्फ सूरदास के नाम
से जाने जाते हैं।
मदनदास
उर्फ सूरदास ने बताया कि वर्ष
1975
में
उन्होंने श्री रामचरित मानस
को कंठस्थ करने की बात अपने
मन में ठान ली थी यह काम बड़ा
कठिन था मगर दृढ़ इच्छा शक्ति
से संभव था। उन्होंने अपने
गांव के एक बालक से कहा,
तुम
रामचरित मानस की चौपाई,
दोहे
तथा श्लोक कम से कम तीन बार
पढ़ कर मुझे सुनाओ तो मैं उसे
याद कर लूंगा।
पांच
वर्ष के कठिन परिश्रम के पश्चात
1980
में
इन्हें श्री रामचरित मानस
सम्पूर्ण कंठस्थ हो गया।
उन्होंने कहा कि श्री रामचरित
मानस में कुल चार हजार छह सौ
बाइस चौपाई,
एक
सौ अस्सी छन्द,
एक
हजार चौहत्तर दोहे तथा नौ
श्लोक हैं। सूरदास को पूरी
उम्मीद है कि अब वह जो भी धार्मिक
ग्रंथ याद करना चाहेंगे उन्हें
याद हो जाएगा।
इस
समय वह श्रीमद्भागवत गीता
याद करने में जुटे है अब तक
उन्हें इसका प्रथम,
द्वितीय
तथा तृतीय अध्याय पूरी तरह
याद हो गया है। सूरदास ने दावा
किया है कि दो वर्ष के अन्दर
वह पूरी श्रीमद्भागवत गीता
याद कर लेंगे और इसके बाद वह
महाकवि सूरदास रचित महाकाव्य,
सूर
सागर को याद करेंगे। उन्होंने
बताया कि इस समय वह जिले में
स्थित अनेक विद्यालयों में
जाते है और विद्यार्थियों को
नैतिक शिक्षा के बारे में
जानकारी देते है इसके बदले
उन्हें कुछ धन मिल जाता है उसी
से इनका भरण पोषण होता है।
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