वाराणसी। जगदगुरु रामानंदाचार्य जयंती के उपलक्ष्य में तीन दिवसीय समारोह का श्रीगणेश शनिवार को धर्माचार्यों के सानिध्य में हुआ। प्रथम दिन पियरी स्थित श्रीमठ की शाखा श्रीविहारम परिसर में आयोजित सम्मान समारोह में हिंदी और भोजपुरी की स्वनामधन्य साहित्यकार डा. विवेकी राय को रामानंदाचार्य सम्मान से विभूषित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें एक लाख रुपये की धनराशि प्रदान की गई।
जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य एवं गोपाल मंदिर के षष्ठपीठाधीश्वर श्याम मनोहर महाराज के सानिध्य में साहित्यसेवी डा. विवेकी राय को सम्मानित किया गया। स्वामी रामनरेशाचार्य ने उनका तिलक कर एक लाख की राशि का चेक प्रदान किया तो श्याममनोहर महाराज ने उन्हें प्रशस्तिपत्र प्रदान किया।
जगद्गुरु रामानंदाचार्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर कार्य करने वाले नगर के 22 साहित्यसेवियों का भी समारोह में अभिनंदन किया गया। इनमें प्रो. बलराम पांडेय, डा. राममूर्ति चतुर्वेदी, प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी, प्रो. सुधाकर मिश्र, डा. जितेंद्रनाथ मिश्र, डा. रणजीत सिंह, डा. जगदीश त्रिपाठी, डा. जगदीश प्रसाद मिश्र, परमानंद आनंद, प्रो. अरविंद पांडेय, प्रो. प्रभुनाथ द्विवेदी, डा. पवनकुमार शास्त्री, डा. बलबीर सिंह, डा. समुन जैन, डा. ऋचा सिंह, बृजेश पांडेय के अलावा इटैलियन युवती दानिएला बेवीलाकुवा शामिल हैं। समारोह में संतद्वय के आशीर्वचन से पूर्व प्रो. युगेश्वर, प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी, प्रो. बंशीधर त्रिपाठी ने विचार व्यक्त किए।समारोह का संचालन डा. यूपी सिंह ने किया।
साहित्यकार होने का अहंकार है मुझे
वाराणसी। मैं गरीब साहित्यकार हूं। मेरे पास कार नहीं है लेकिन साहित्यकार होने का अहंकार जरूर है। किंतु आज इस सभा में उस अहंकार को भी गाजीपुर में ही छोड़ कर आया हूं। यह बातें सम्मान से अभिभूत डा. विवेकी राय ने शनिवार को श्रीविहारम में आयोजित समारोह में कहीं। उन्होंने पुराने संस्मरण भी सुनाए। बताया, मुझे याद आता है दिल्ली का वह समारोह जब श्रीरामनरेशाचार्य महाराज के सानिध्य मेें समारोह हो रहा था। उनके आदेश पर पहले मुझे रामनामी ओढ़ाई गई। कुछ देर बाद ही रामनामी की जगह एक कीमती शाल ओढ़ा दी गई। मुझे लगा, शायद अभी मैं वैराग्य के योग्य नहीं हुआ हूं। पूरी तरह संसारी हूं इसलिए रामनामी लेकर शाल दी गई है। अब आप फिर मुझे माया सौंप रहे हैं। कम से कम अब तो मुझे राम नाम का महामंत्र दे ही दीजिए।
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