जबलपुर में शतमुख कोटिहोमात्मक श्रीराम महायज्ञ
* डॉ. देवकुमार पुखराज
--------------------------------------------------------------------------------------
परमेश्वर के द्वारा उत्पादित एवम् पालित सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ उत्पादन मानव जीवन है, ऐसी दृढ़भावना वैदिकों तथा वेद ब्रह्मों की भी है। ब्रह्मा का अंश होने के कारण जीव विशेषकर मानव सतत विकास के लिए प्रयासरत है। विकास की चरम परिणति विकसित भोजन,मकान तथा वस्त्रादि हीं नहीं हैं अपितु श्रीराम भाव की प्राप्ति है, इससे रहित विकास की आंधी ने मानव जीवन को राक्षसी जीवन के निर्माण तक पहुंचा दिया है। विकास वरदान के बदले अभिशाप बन गया है।
सृष्टिकर्ता प्रभु ने वेदों तथा वेदानुकूल शास्त्रों को मानव विकास के लिए प्रदान किया था। हम सभी वेदानुमोदित मार्ग से अपने विकास को चरण बिन्दु तक पहुंचायें। सम्पूर्ण शास्त्रों का सार सर्वस्व है-धर्म। यहीं मानव जीवन की सर्वश्रेष्ठता को वस्तुतः सार्थकता प्रदान करता है। यह धर्म हीं अभ्युदय (लौकिक उन्नति) एवं निः श्रेयस( मोक्ष) का परम साधन है। उसी धर्म की संस्थापना के लिए परम प्रभु श्रीराम जीवन धारण करते हैं । वे अपनी प्रथम यात्रा विश्वामित्र के साथ धर्म रक्षा के लिए हीं करते हैं। वैसे भी धर्म का सर्वश्रेष्ठ स्वरुप यज्ञ है। भगवान वेद ने भी मानवों के लिए यज्ञ का विधान किया था। जो अतुलनीय तथा विकल्प रहित मानव जीवन की सम्पूर्णता का सर्वश्रेष्ठ साधन है ,लेकिन अज्ञान,दम्भ तथा पापों के बाहुल्य के चलते लोग उसे छोड़ते चले गये तथा कलांतर में पतन के महागर्त में अवस्थित हो गये।
परमप्रभु श्रीराम ने अपने अवतार के सम्पूर्ण 33 हजार वर्षों के एक-एक क्षण का उपयोग धर्म संस्थापना के लिए किया, जिसके माध्यम से अनादि एवं विशालतम सृष्टि में अनुपम रामराज्य प्रकट हो सका, जो संसार के लिए परम आदर्शभूत तथा प्रेरणाभूत पहले भी था, आज भी है और आगे भी रहेगा। यह निर्विवाद सत्य है कि सुख का कारण तो केवल औऱ केवल धर्म हीं है। धर्म के वगैर श्रद्धा-प्रेम-वैराग्य ज्ञानादि कोई भी कल्याणकारी भाव प्रकट हीं नहीं होते।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए रामभक्ति परंपरा और रामानंद सम्प्रदाय के एकमात्र मूल आचार्यपीठ श्रीमठ,पंचगंगा घाट,काशी ने वैदिक यज्ञों की परंपरा को जीवित रखने का प्रयास तेज किया है। वर्तमान रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज देश के सभी प्रमुख शहरों और गांवों तक में श्रीराम महायज्ञ करने के लिए संकल्पित हैं। इसकी शुरूआत काशी से हुई थी। साल 2009 में चण्डीगढ़ में भव्य श्रीराम यज्ञ संपादित हुआ और इसी कड़ी में नया नाम संस्कारधानी के रूप में विख्यात जबलपुर का भी जुड़ गया है। जबलपुर के जिलेहरी घाट स्थित प्रेमानंद आश्रम में शतमुख कोटि होमात्मक श्रीराम महायज्ञ का समायोजन किया गया है। मां नर्मदा के पावन तट पर 29 अक्टूबर से 4 नवम्बर तक होने वाले श्रीराम महायज्ञ को लेकर देश भर से साधु,संत, भगवद्प्रेमी श्रद्धालु जबलपुर पहुंचे हैं। जगदगुरु शंकराचार्य की परंपरा में दीक्षित परमसिद्ध संत स्वामी प्रेमानंद जी द्वारा स्थापित प्रेमानंद आश्रम अपने आरंभिक काल से हीं भगवान श्रीराम की अर्चा, रामायण गान, संतों-नर्मदा परिक्रमावासियों तथा अभ्यागतों को अन्नदान एवम् विभिन्न वैदिक तथा स्मार्त समायोजनों के द्वारा निरंतर श्रीरामभाव के सृजन में समर्पित रहा है। स्वामीजी ने अपने सत्प्रयासों से असंख्य लोगों के जीवन को राममयता प्रदान की। उसी परम मंगलमयी श्रीराम धारा को विशालतम रूप में प्रकट करने और राम राज्य को विस्तार देने के लिए श्रीराम महायज्ञ का समायोजन किया गया है।
कार्तिक मास में पहली बार मां नर्मदा के पावन तट पर हो रहे इस अद्वितीय यज्ञ के लिए सात मंजिले विशाल यज्ञमंडप बनाया गया है। जिसमें सौ आहुतियों के लिये सौ कुण्ड बनाये गये हैं। वैदिक सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार सौ कुण्ड और एक करोड़ आहुतियां हीं अधिकाधिक रूप में मान्य हैं। कार्तिक शुक्ल तृतीया से आरंभ होकर नवमीं तक चलने वाले महायज्ञ का आरंभ जलभरी शोभायात्रा से हुई। शाम में विशाल मंच से श्रीराम कथा का रसास्वादन उपस्थित जनसमुदाय ने किया। सुबह से हीं पूरा वातावरण वेद ऋचाओं के पाठ से गुंजायमान था। बीच-बीच में सुप्रसिद्ध शहनाई वादक भारत रत्न विस्मिलाह खान के वंशजों द्वारा बजाई जा रही शहनाई पूरे माहौल में रस घोल दे रही थी। संध्या में वाराणसी से आई चर्चित कत्थक नृत्यांगना ममता की मंडली ने अपने भक्ति गीतों और भावनृत्यों से समां बांध दिया। देर रात तक अयोध्याजी से आई श्रीरामलीला मंडली ने वातावरण को श्रीराममय बनाये रखा।
श्रीराम महायज्ञ के मुख्य यजमान अतुल तिवारी ने बताया कि एक करोड़ आहुतियों के साथ-साथ वेद की सभी शाखाओं का पाठ,सभी पुराणों तथा सभी रामायणों का पाठ, श्रीरामनाम संकीर्तन, सुप्रसिद्ध मंडली द्वारा श्रीरामलीला का मंचन, विशिष्ट विद्वानों तथा आचार्यों का सम्मेलन, संतों,श्रीमहंतों,ब्राह्मणों तथा भक्तों के लिए भण्डारा तथा श्रीराम संगीत महायज्ञ जैसे अनुष्ठान सम्पादित होने वाले हैं।
-इति--
No comments:
Post a Comment