Saturday, May 17, 2025

राम-लक्ष्मण की एक रोचक कहानी संकलन- Dev Kumar Pukhraj

 राम-लक्ष्मण की एक रोचक कहानी

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भगवान श्री राम लक्ष्मण और सीता जी पिता दशरथ जी की आज्ञा से वनवास जाने लगे। रास्ते में सभी तीर्थ गंगा, यमुना, गोमती नदियों में पितृ तर्पण कर वन में कंद मूल, फल फूल खाते हुए वन में अपना समय व्यतीत करने लगे। वैशाख का महीना आया–एकम के दिन लक्ष्मण जी ने राम जी की आज्ञा से फल-फूल लाकर माँ सीता को दिए। माँ सीता ने चार पत्तल परोसी तब लक्ष्मण ने पूछा–‘भाभी माँ हम तीन हैं फिर चार में क्यों परोसा ?’ माँ सीता बोली–‘एक पत्तल गों माता की हैं।’

         

जब राम जी, लक्ष्मण जी, और गोमाता को पत्तल परोस दी तब राम जी ने पूछा–‘सीता जी आप ने खाना शुरू क्यों नहीं किया ?’ सीता माँ बोली–‘मेरे तो राम कथा सुनने का नियम हैं राम कथा सुनने के बाद ही में फल ग्रहण करूँगी।’ 

         

रामजी बोले–‘मुझे कथा सुना दो’, लक्ष्मण जी बोले–‘मुझे सुना दो’ तब माँ सीता बोली–‘औरत की बात औरत ही सुने–आप मेरे आप मेरे पति हो, आप मेरे देवर हो आपसे कैसे कहूँ ?’ 

         

लक्ष्मणजी ने सोचा इस जंगल में कौन औरत मिलेगी ? फिर लक्ष्मणजी ने अपनी माया से एक नगरी का निर्माण किया। वह नगरी में सब सुख सुविधाओं से युक्त थी। उस नगरी में सब चीजे सोने की थीं इसलिये नगरी का नाम सोन नगरी रखा। 

         

सभी नगर निवासियों को घमण्ड हो गया उस नगरी में कोई गरीब नहीं था। जब सीता जी कुँऐ पर पानी लेने गई और पनिहारिनों से राम-राम किया तो कोई नहीं बोली। थोड़ी देर में एक छोटी कन्या आई। सीता जी उससे राम-राम बोली और कहा कि बाई राम कथा सुनेगी क्या ?’ वह बोली–‘मेरे तो घर पर काम हैं।’ सीता जी ने कहा–‘मेरे पति राम और देवर लक्ष्मण भूखे हैं।’ लडकी बोली–‘मेरी माँ मेरा इन्तजार कर रही हैं।’

          

वह लडकी वहाँ से जानी लगी तब माँ सीता के क्रोध से सारी नगरी साधारण सी हो गई। जब लडकी घर गई तो माँ बोली–‘बाई ये क्या हुआ ?’ तब लडकी बोली–‘मेरे को तो पता नहीं हैं। वहाँ पर एक साध्वी बैठी थी मुझे राम कथा सुनने के लिए बोली पर मैं तो कथा नहीं सुनी। यदि उसने कुछ किया हो तो पता नहीं।’

          

तब उसकी माँ ने उसको वापस जाकर कथा सुनने को कहा। लडकी ने वापस जाकर कथा सुनने से मना कर दिया तब उसकी बहु बोली–‘आपकी आज्ञा हो तो मैं कहानी सुन कर आती हूँ।’

           

जब बहु कुँऐ पर गई तो पानी भरे और खाली करे। तब सीताजी ने कहा–‘आपके घर पर कुछ काम नहीं हैं क्या ?’ वह बोली माताजी मैं तो सारा काम करके आई हूँ।’ माँ सीता बोली–‘तू मुझे माँ कहकर बुलाई यदि तुझे समय हो तो क्या मेरी राम कहानी सुन लेगी ?’ वह बोली–‘माताजी कहानी सुनाओ मैं प्रेम से कहानी सुनूँगी।’

         

सीताजी ने कहा–‘हे बाई ! तूने मेरी मृत्युलोक में मदद करी भगवान तेरी स्वर्ग लोक में रक्षा करेंगे।’ 

       

राम कथा पूर्ण हुई तो सीता जी ने कहा–‘हे बाई ! तूने मेरी राम कथा सुनी, मेरी सहायता की राम जी लक्ष्मण को  जिमाया हैं भगवान तेरी भी रक्षा करेंगे। तुझे स्वर्ग का सुख मिलेगा।’ सीता माता ने उपहार स्वरूप अपने गले का हार दे दिया। जब वह घर गयी तो उसके मटके सब सोने के हो गये। सासु जी ने कहा–‘ये सब तू कहाँ से लाई ?’ 

           

बहु बोली–‘मैंने माँ सीता से राम कथा सुनी ये इसी का फल हैं।’ सासुजी ने कहा–‘प्रतिदिन राम कथा सुन आना।’


बहु को रामकथा सुनते बहुत दिन हो गये तब उसने माँ सीता से पूछा–‘इसका उद्यापन विधि बतलाओ।’ तब सीता जी ने कहा–‘सात लड्डू लाना, एक नारियल लाना उसके सात भाग करना, एक भाग मन्दिर में चढ़ाना जिससे मन्दिर बनवाने जितना फल होता है। एक भाग सरोवर के किनारे गाड़ देना जिससे सरोवर खुदवाने जितना फल होता है। एक भाग भगवद्गीता पर चढ़ाना जिससे भगवद्गीता पाठ करवाने जितना फल होगा। एक भाग तुलसी माता पर चढ़ाना जिससे तुलसी विवाह जितना फल होगा। एक भाग कुँवारी कन्या को देना जिससे कन्या विवाह जितना फल होगा। एक भाग सूरज भगवान को चढ़ाना जिससे तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं को भोग लगाने जितना फल होगा।’

          

बहु ने विधि पूर्वक उद्यापन कर दिया। माता सीता के पास आकर बोली–‘माता मैंने तो विधिपूर्वक उद्यापन कर दिया।’ सीता जी ने कहा–‘अब सात दिन बाद वैकुण्ठ से विमान आएगा।’

         

सात दिन पूरे हुए विमान आया तो बहु ने कहा–‘सासुजी स्वर्ग से विमान आया है।’ सासुजी ने कहा–‘बहु तेरे ससुरजी को और मेरे को भी ले चल, तेरे माता पिता को ले चल सारे कुटुम्ब परिवार को ले चल, अड़ोसी-पड़ोसियों को ले चल।’ बहु ने सबको बिठा लिया पर विमान खाली था।

         

थोड़ी देर में उसकी नन्द आई और देखते-ही-देखते विमान भर गया। तब बहु ने कहा–‘माँ सीता नन्द बाईसा को भी बिठा लो।’ माँ सीता ने कहा–‘इसने कभी कोई धर्म पुण्य नहीं किया।’ बहु ने कहा–‘बाईसा आप पहले वैशाख मास में राम लक्ष्मण की कथा सुनना उसके बाद आप के लिए वैकुण्ठ से विमान आएगा।’

         

गाँव के सारे लोग एकत्र हो गये और पूछने लगे–‘बाई तूने ऐसा कौन-सा धर्म पुण्य किया, हमें भी बताओं ?’ बहु ने कहा–‘मैंने तो माता सीता से प्रतिदिन राम कथा सुनी और नियम से उद्यापन किया।’

         

तब समस्त ग्रामीण राम कथा सुनने की जिद्द करने लगे। तब बाई राम कथा कहने लगी और सब नर-नारी सुनने लगे, राम कथा सम्पूर्ण होते ही समस्त नगरी सोने की हो गई। बाई ने कहा–‘जो कोई राम कथा सुनेगा उसको मेरे समान ही फल मिलेगा।’ 

          

सब राम लक्ष्मण जी की जय जयकार करने लगे और विमान स्वर्ग में चला गया। सात स्वर्ग के दरवाजे खुल गये। पहले द्वार पर नाग देवता, समस्त देवी देवता पुष्प वर्षा करने लगे देवताओं ने पूछा–‘तूने क्या पुण्य किया ?’ बहु ने कहा–‘मैंने तो राम लक्ष्मण जानकी की कहानी सुनी।’ समस्त देवताओं ने कहा–‘वर मांग।’ तब वह बोली–‘मेरे पास सब सिद्धियाँ हैं। मुझे यह वर दो की जो भी श्रद्धा एवं भक्ति से राम कथा, राम लक्ष्मण जानकी की कहानी सुनेगा उसको मेरे समान ही फल मिले।’

          

सभी देवताओं ने पुष्प वर्षा करते हुए तथास्तु कहा। चारों और राम-राम की जय जयकार होने लगी।

Tuesday, March 4, 2025

श्रीराम जी कौन हैं, उनका अवतार किस लिए हुआ

 लक्ष्मण जी ने निषादराज को बताया कि - श्रीराम जी कौन हैं, और उनका अवतार किस लिए हुआ है। 
 👨आचार्य ब्रजपाल शुक्ल वृंदावनधाम

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 रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड के 93 वें दोहे में,लक्ष्मण जी ने निषादराज को समझाते हुए कहा कि - 

 भगत भूमि भूसुर सुरभि,सुर हित लागि कृपाल। 

 करत चरित धरि मनुज तनु, 

 सुनत मिटहिं जगजाल।। 

 सन्दर्भ 

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कैकेयी याचित वनवास को स्वीकार करके, अयोध्या से निकलकर,श्रीराम जी, लक्ष्मण जी तथा भगवती जगदम्बा सीता, तीनों ही निषादराज गुह के अतिथि बने।

रात्रिकाल में, दशरथनन्दन श्रीराम जी को,तृणपर्णाच्छादित भूमि पर शयन करते हुए, देखकर, निषादराज गुह ने,कैकेयी के प्रति कुछ वाक्य कहकर लक्ष्मण की ओर देखते हुए,अतिदुख व्यक्त किया,तो लक्ष्मण जी ने कहा कि -

हे निषादराज गुह! श्रीराम जी की वर्तमान की परिस्थिति को देखकर,अतिदुखित मत होइए। ये मनुष्य नहीं हैं,जो अपने कर्मों के फलस्वरूप दुखों को भोगते हैं।

महाराज दशरथ जी के यहां,इनका प्रादुर्भाव मात्र हुआ है। किन्तु,ये श्रीराम जी, महाराज पिता दशरथ की सेवामात्र के लिए प्रादुर्भूत नहीं हुए हैं।

संसार में, जीवों का जन्म तो, पूर्वजन्मकृत कर्म के फल को भोगते हुए पूर्ण होता है। मनुष्य तो,वर्तमान के जीवन में भी भोगमय वृत्ति से जीवन व्यतीत करते हैं। 

 मनुष्य का जीवन तो, एक सामान्य जीव के समान ही भोग और भोजन में ही व्यतीत होता है। 

श्रीराम जी के प्रादुर्भाव के पांच प्रयोजन हैं।

ये,कर्म के वशीभूत होकर, दशरथनन्दन नहीं हैं।

ये तो सभी जीवों के कर्मफलदाता ही हैं। आपके यहां भूमिशयन करते हुए,इनको किसी भी प्रकार का दुख भी नहीं है। ये परमसुखमय हैं। परमानन्दमय हैं।

अब दोहे के अनुसार,श्रीराम जी के अवतार के पांच प्रयोजन श्रवण करिए!

भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल। 

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(1) भगत (2)भूमि (3) भूसुर अर्थात ब्राह्मण (4) सुरभि अर्थात गौ (5) सुर।

इन पांचों की रक्षा के लिए ही, कृपालु दयालु, भगवान ने अवतार लिया है।

अब इन पांचों प्रयोजनों पर थोड़ा विचार कर लीजिए।

 भगत 

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इस जगत के किसी भी स्थान में, भगवान की चर्चा अर्चना हो रही है तो,उसके आधार तो, एकमात्र, भगवान के भक्त ही हैं।

भगवान के भक्तगण, प्रत्येक प्रान्त में जन्म प्राप्त करके,उस प्रान्तीय भाषा में, भगवान के चरित्रों का गुणगान करते हैं।

यदि भक्त हैं तो ही संसार में, भगवान की चर्चा है।

संसार के स्त्री पुरुष, वैराग्य और भक्ति ज्ञान सम्पन्न भक्तों को भोजन भी नहीं देते हैं। अपमानित करते हैं। 

इन अज्ञानी स्वार्थी स्त्री पुरुषों को, भगवान के भक्तों के स्वरूप का ज्ञान भी नहीं होता है।

अल्प वस्त्रों में देखकर,दरिद्र समझते हैं। असहाय अनाथ समझते हैं।

शारीरिक दुर्बलता को देखकर,निर्बल समझते हैं। पारिवारिक स्त्री पुरुषों से दूर समझकर अनाथ समझते हैं। किसी के द्वारा किए गए अपमान का प्रतीकार न करने के कारण, ही, भगवान के भक्तों को विक्षिप्त समझते हैं।

इन अभागी,निर्भागी स्त्री पुरुषों को, भगवान के भक्तों का लाक्षणिक ज्ञान नहीं होता है तो,ये लोग भक्त को अतिदुख देते हैं।

कितने तो ऐसे दुष्ट स्वभाव के स्त्री पुरुष होते हैं कि - भगवान के भक्तों को मृत्यु ही दे देते हैं।

भगवान के चरित्रों का गुणगान करके भगवान की स्थापना करनेवाले भक्त और भक्ति की रक्षा करने के लिए भगवान अवतीर्ण होकर, दुष्टों का नाश करते हैं।

भक्ति और भक्त की रक्षा के लिए ही भगवान, श्रीराम जी अवतीर्ण हुए हैं। यही उनके प्रादुर्भाव का प्रथम प्रयोजन है। वे तो जीवों का दुख दूर करने के लिए आए हैं। इसीलिए उनने वनवास को निमित्त बनाया है।

 भूमि -

 भूमि अर्थात पृथिवी की रक्षा से ही सभी की रक्षा है।

राक्षस गणों ने सम्पूर्ण पृथिवी को स्वयं के अधिकृत कर लिया है। पृथिवी के अन्न,जल,वायु,प्रकाश आदि को अधिकृत करके, मात्र अपना ही भरण पोषण करते हैं। शेष जीवों का संहार करके अपने आप की प्रतिष्ठा करते हैं।

पृथिवी की रक्षा से ही सम्पूर्ण विश्व की रक्षा होती है। 

इसीलिए,भूमि के संरक्षण के लिए भी, भगवान अवतीर्ण हुए हैं। ये उनके प्रादुर्भाव का द्वितीय प्रयोजन है।

 भूसुर-

 भू अर्थात पृथिवी। सुर अर्थात देवता। पृथिवी के देवता को भूसुर शब्द से कहा जाता है।

शास्त्र ही भगवान की आज्ञा है। सत्कर्म दुष्कर्म,पाप पुण्य,आदि के विधायक शास्त्र ही भगवान की आज्ञा हैं।

भगवान की आज्ञारूप शास्त्रों के रक्षक, एकमात्र भूसुर अर्थात ब्राह्मण ही हैं। 

ब्राह्मणों के नाश से,वेद पुराण धर्मशास्त्र आदि सभी प्रकार की दिव्य विद्याओं का विनाश हो जाता है।

शास्त्रधारक ब्राह्मणों को,नष्ट करना, भोगियों स्त्री पुरुषों का प्रथम उद्देश्य होता है।

धनवान, बलवान राक्षसगण, सर्वप्रथम धर्म के नाश में ही अपने बल बुद्धि का सम्पूर्ण उपयोग करते हैं।

ब्राह्मण के नाश से ही शास्त्रों का नाश होता है। शास्त्रों के नाश से, धर्म का समूल नाश होता है।

भगवान का संविधान ही तो शास्त्र है। शास्त्रों की रक्षा करने के लिए, ब्राह्मणों की रक्षा आवश्यक है। इसीलिए भगवान, ब्राह्मणों की रक्षा के लिए अवतीर्ण हुए हैं। 

श्रीराम जी का अवतार तो, धर्म की रक्षा के लिए हुआ है। ये उनके अवतार का तृतीय प्रयोजन है।

 सुरभि अर्थात गौ -

जितने भी दुग्धदाता जीव हैं,उन सभी में,सुरभि अर्थात गौ एकमात्र ऐसी दुग्धदात्री है,जिसको भगवान ने देवताओं के योग्य कहा है। 

 दुग्ध,घृत, दधि, गोमय तथा गोमूत्र,ये पांचों ही देवताओं की आराधना के साधन हैं। 

इन राक्षसों दैत्यों की कुदृष्टि भी गौ के नाश में ही पड़ती है।

 देवताओं को हुतभुक् शब्द से कहा जाता है। हवनीय द्रव्यों का हवन होता है,वही तो देवताओं का भोजन है।‌ 

गौ की रक्षा से ही देवताओं की रक्षा होती है। देवताओं के अधीन सृष्टि होती है। देवताओं के साधन की रक्षा करने के लिए भी, भगवान श्रीराम जी का अवतार हुआ है। ये उनके प्रादुर्भाव का चतुर्थ प्रयोजन है।

  सुर -

 सुर अर्थात देवता। 

यज्ञ से, पर्जन्य अर्थात मेघों की सृष्टि होती है। मेघों की वर्षा से अन्न होता है, और अन्न से जीवों की उत्पत्ति होती है।

देवताओं के विनष्ट होते ही सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश हो जाएगा। इसीलिए, देवताओं की रक्षा के लिए भी भगवान श्रीराम जी का अवतार हुआ है।

श्रीराम जी के अवतीर्ण होने के ये पांच प्रयोजन हैं।

मानव समाज,इन पांचों का विनाशक होता है,रक्षक नहीं होता है। सृष्टिकर्ता ही, सृष्टि की रक्षा करते हैं। 

निषादराज गुह ने कहा कि - किन्तु,ऐसी अवस्था में देखकर, हमें अतिदुख हो रहा है। भगवान को,इन पांचों की रक्षा करना थी तो,इतना दुख भोगकर रक्षा क्यों करना है!

लक्ष्मण जी ने कहा कि -

 करत चरित धरि मनुज तनु,। 

हे निषादराज! श्रीराम जी, मनुष्य नहीं हैं। इनने तो धरि मनुज तनु, मनुज अर्थात मनुष्य का तन,शरीर धारण किया है। रूपधारण करनेवाला,वह नहीं होता है,जिसका रूप धारण किया है।

जैसे - कोई नाट्यधर, अभिनेता,किसी का रूप धारण करके उसके चरित्र का अभिनय करता है, किन्तु,वह अभिनेता वह नहीं होता है,जिसका अभिनय करता है।

इसी प्रकार से भगवान ने, मनुष्य का स्वरूप धारण किया है, किन्तु वे मनुष्य नहीं हैं। मनुष्य जैसा,अभिनय कर रहे हैं।

भगवान ने मनुष्य जैसा चरित किया है तो, ऐसे दुखों को सहन करने से क्या लाभ होगा!

 सुनत मिटहिं जगजाल। 

श्रीराम जी के इन विविध प्रकार की मानुषी लीलाओं को सुनेंगे, पढ़ेंगे, सुनाएंगे तो उनको भगवान और भगवान की भगवत्ता का ज्ञान होगा तो,जगतजाल ही नष्ट हो जाएगा।     मनुष्यों को मनुष्य जैसे दुख,सुख, युद्ध, धर्म,त्याग आदि के चरित्र समझ में आते हैं। इसीलिए भगवान ऐसे चरित्र कर रहे हैं। 

 वास्तव में, भगवान श्री राम जी को किसी भी प्रकार का दुख नहीं है। वे तो परमानन्द परेश हैं। 

 इसका तात्पर्य यह है कि - श्रीराम जी के चरित्र,जिन पुराणों में वर्णित हैं,तथा वाल्मीकीय रामायण में वर्णित हैं,तथा रामचरितमानस आदि प्राकृत भाषा में वर्णित हैं,उन चरित्रों को गुरु से बिना पढ़े,न तो श्रीराम ही समझ में आएंगे, और न ही स्वयं के पढ़ने से भ्रम का नाश होगा। ग्रंथों का, मात्र पाठ करने से ज्ञान नहीं होता है। यथार्थ अर्थ जानिए, और स्वयं को भ्रममुक्त करके भक्तिमान बनिए। 

 भगवान का यही यथार्थ स्वरूप है। 

Wednesday, January 10, 2024

"श्रीमठ काशी वाले रामानंदाचार्य और चारो शंकराचार्यों को राममंदिर लोकार्पण में खुद आमंत्रित करें पीएम मोदी"

 



* देवकुमार पुखराज

अयोध्या, 10 जनवरी। 

अयोध्या में राममंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की तिथि जैसे जैसे नजदीक आ रही है, मंदिर को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह के साथ ही विशिष्ट संतों को आमंत्रित नहीं किये जाने को लेकर विवाद भी बढ़ते जा रहा है। अभी तक जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य और चारों पीठ के शंकराचार्य द्वारा मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा उत्सव से दूरी बनाने की बात सामने आयी है। इसे लेकर अयोध्या के संत समाज भी मुखर होने लगा है।

अयोध्या के कनक भवन रोड स्थित श्रीराम आश्रम के महंत जयराम दास ने सोशल मीडिया के जरिये विशेष आग्रह किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की है कि वे स्वयं ही श्रीमठ, काशी वाले जगदगुरु रामानंदाचार्य और चारों शंकराचार्यों को आमंत्रित करें। महंत जयराम दास, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अयोध्या नगर संघचालक भी हैं, ने लिखा है-

“श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का उद्घाटन समारोह इस सदी का सबसे बड़ा ऐतिहासिक शुभ अवसर है। इस पावन समारोह के अवसर पर रामानंद संप्रदाय के मूल पीठ श्रीमठ, पंचगंगा घाट, काशी एवं चारों जगद्गुरु शंकराचार्यों की अनुपस्थिति शास्त्रोक्त व लौकिक दृष्टि से उचित नहीं”।

वे आगे लिखते हैं- जब कोई आचार्यपीठ पूज्य-जन किसी वेदोक्त, शास्त्रोक्त नियमानुकूल अप्रसन्न होकर आपके अनुष्ठान का निषेध करें तब यजमान का कर्तव्य है कि वह कैसे भी अनुनय विनय कर अपने पूज्य जगद्गुरु पद प्रतिष्ठित श्रेष्ठ जनों को संतुष्ट करे, तभी राम मंदिर राष्ट्रीय मंदिर होकर देश और विश्व में अलख जगाएगा, शुभ फल प्राप्त होगा । 

महंत जयराम दास की अपील है- श्रीराम मंदिर उद्घाटन के प्रधान-यजमान माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी स्वयं चारों पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्यों और श्रीमठ वाले रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज से प्रार्थना-पूर्वक संवाद करके आमंत्रित करें और समारोह स्थल पर उनके लिए विशेष प्रोटोकॉल का प्रबंध करें। इससे देश में बहुत अच्छा संदेश जायेगा। यह धार्मिक रूप से भी उचित होगा ओर राजनीतिक रूप से भी। सनातन के सर्वोच्च धर्माचार्यों का सम्मान हम सबका कर्तव्य है। वे आगे लिखते हैं- केवल श्रीराम मंदिर ही नहीं, काशी-मथुरा में भी कुछ अच्छा करना है, तो सबको अपना अहंकार संतुलित रखना होगा। शंकराचार्यों का सम्मान कर मोदी जी छोटे नहीं हो जायेंगे, प्रत्युत उनका यश और कीर्ति भी अभिवर्धित होगा। यही धर्मानुशासन है। लौकिक सामाजिक व्यवहार भी।

इस बीच जगदगुरु रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल भी खुलकर शीर्ष संतों के समर्थन में खड़ा हो गया है। रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल से जुड़े गजानन अग्रवाल (जयपुर) और सत्येन्द्र पांडेय (आरा, बिहार) ने कहा है कि जब श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र समिति के महासचिव चम्पत राय कहते हैं कि अयोध्या जन्मभूमि का मंदिर रामानंद संप्रदाय का है, तो फिर अभीतक रामानंद संप्रदाय के मूल आचार्यपीठ श्रीमठ, पंचगंगा घाट, काशी को इस पूरे आयोजन से दूर क्यों रखा है। चम्पत राय को याद होना चाहिए कि जब पहली बार श्रीरामजन्मभूमि के लिए विहिप ने राष्ट्रीय समिति गठित की थी, तो श्रीमठ के तत्कालीन पीठाधीशवर जगदगुरु शिवारामाचार्य जी को उसका प्रथम अध्यक्ष बनाया गया था। जब 90 के दशक में केन्द्र सरकार ने पीएम नरसिम्हा राव के समय अय़ोध्या विवाद का हल निकालने हेतु रामालय ट्रस्ट गठित किया था, तो श्रीमठ वाले जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज को उसका संयोजक नियुक्त किया था। उस समिति में द्वारकापुरी के जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद जी महाराज, श्रृंगेरीपीठ के जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी भारतीतीर्थ जी महाराज और उडप्पी के पेजावर स्वामी मध्वाचार्य स्वामी विश्वेषतीर्थ जी महाराज भी शामिल थे।  

बताते चलें कि दो दिन पहले ही ज्योतिषपीठ, बदरीकाश्रम के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बयान जारी कर कहा था कि अयोध्या का श्रीराम मंदिर रामानंद संप्रदाय को सौंपा जाए। इस विषय पर किसी शंकराचार्य को आपत्ति नहीं होगी। रामानंद संप्रदाय के संतों को ही मंदिर निर्माण से लेकर उसके प्रबंध की जिम्मेदारी सौंपी जाए।

Thursday, July 6, 2023

ब्रह्म या ईश्वर क्या है? जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज के हरिद्वार चातुर्मास प्रवचन

*ज्ञानेश उपाध्याय 


 वेदों में कहा गया कि जो इस संसार को बनाए, उसका पालन भी करे, और उसको अपने में छिपा भी ले। जैसे घड़ा टूटने के बाद मिट्टी में छिप जाता है। तिरोहित हो जाता है, उसे लोग घड़ा नहीं बोलते, मिट्टी बोलते हैं। कार्य अपने कारण में छिप जाता है, उपादान कारण में। सोने का आभूषण टूटने के बाद सोने में छिप जाता है और उसे कोई आभूषण नहीं कहता। कौन मकान बनाने वाला है, कौन उद्यान बनाने वाला है, ऐसे ही, जो भी कार्य दिखाई पड़ते हैं, उनके लिए आपके मन में जिज्ञासा होती है, तो आपके मन में यह जानने की इच्छा भी होनी चाहिए कि इस संसार को किसने बनाया। वेदों ने कहा, संसार को जो बनाता है, जो इसका पालन करता है, जो इसको अपने में छिपा लेता है, उसी को ब्रह्म कहते हैं। जिसमें तीनों ही तरह के चमत्कार की क्षमताएं हैं, बनाने की, पालन करने की और अपने में छिपा लेने की। भूत का क्या अर्थ है? पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश, इनको भूत कहते हैं। तभी तो हम लोगों के शरीर को पांच भूतों से बना हुआ कहा जाता है। छितिजल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अधम शरीरा। यह तुलसीदास जी का वाक्य है। हमारे शरीर में पृथ्वी भी है, जल भी, तेज भी, वायु भी और आकाश भी। हमारे शरीर में जो खुलापन है, वह आकाश का भाग है। देखिए, कान में भी छिद्र है। कान जो बाहर से दिखता है, उसे कान नहीं बोलते। इसके भीतर जो छिद्र है या जो खालीपन है, वह कान है। दर्शनशास्त्र में पढ़ाया जाता है कि भीतर जो आकाश है, खालीपन है, उसी का नाम कान है। यदि ये भीतर वाला भाग बंद हो जाए, तो हमें सुनाई नहीं पड़ेगा। शब्द का ग्रहण नहीं होगा, ज्ञान नहीं होगा। नाक में भी आकाश है। पेट में भी जो खालीपन है, वह भी आकाश ही है। जहां से रक्त आदि प्रवाहित होते हैं, जल प्रभावित होता है। पृथ्वी का भाग तो आप देखते ही हैं, पैर, हाथ व अन्य अंग। जल भी है शरीर में। वायु का भी हम अनुभव करते रहते हैं, कभी डकार, कभी अपान वायु, लोग कहते भी हैं कि पेट में वायु अभी बढ़ गया है। वायु की भी जरूरत है शरीर को, ऑक्सीजन भी उसी रूप में है। इस तरह हमारे पूरे शरीर को पंचभूतों से उत्पन्न या रचित माना जाता है। जब मृत्यु हो जाती है, तो ये पांचों भूत अपने-अपने बड़े शरीर में मिल जाते हैं। देखिए, जिस जगह हम बैठे हैं, यह कमरा, यहां आकाश है। हम इसे बोलते हैं, मकान है। छत को हटा दीजिए, दीवारों को हटा दीजिए, तो यह जो छोटा आकाश है, बड़े आकाश में मिल जाएगा। महाआकाश में मिल जाएगा, जो पूरे संसार में है। यहां रहें या रूस या अमेरिका जाएं, आपको यही आकाश मिलेगा। तेज, पृथ्वी, वायु, सूर्य का यही स्वरूप मिलेगा। इन सबको जो बनाता है और जो पालन करता है, इनका संरक्षण करता है, रखरखाव करता है, और जब लगता है कि यह रहने लायक नहीं है,तो वह इसे धीरे से अपने में मिला लेता है, छिपा लेता है, इसी का नाम ईश्वर है, बह्म है। ईश्वर चिंतन होते रहना चाहिए। वेदों ने कहा कि ब्रह्म को जानने की इच्छा करो। आप यहां छोटे-छोटे पदार्थों को देखकर जानने की इच्छा करते हो कि यह क्या है और इतने बड़े संसार को देखकर इच्छा ही नहीं हो रही है। यह बहुत बड़ी विडंबना है जीवन की। आप अवसर खो रहे हैं। सारा जीवन ऐसे ही निकलता जा रहा है और आपने जाना ही नहीं कि संसार को किसने बनाया? कौन इसका पालन करता है? ऐसे प्रश्न हमारे मन में उमड़ने-घुमड़ने चाहिए। आप ध्यान रखिए कि इस संसार को किसी उद्यमी, नेता या संस्था या सरकार ने नहीं बनाया, जिसने इसे बनाया, उसी को ब्रह्म कहते हैं। ब्रह्म का एक अर्थ और भी है। कहा गया है कि यह महान बहुत है। हम लोग महान नहीं हैं। जहां हम बैठे हैं, उतना ही हमारा। जहां हम बैठ जाते हैं, उसी को संसार समझ लेते हैं, हम छोटे लोग हैं। जहां जो बैठा है, उसका संसार बस उतना ही बड़ा है। जो महान हो, ऐसा कोई स्थान नहीं हो, जहां वह नहीं हो, वह ब्रह्म है। निरंतर जो विकासशील है, जो महान है, सबसे बड़ा जिसका आकार है, वह ब्रह्म है। हमें ऐसा लगता है कि हम ही पालन करते हैं। जैसे माता-पिता अपने बच्चों को समझते हैं कि हमने इनका पालन किया। पूछिए, उनके माता-पिता से कि ऑक्सीजन आप ही हैं क्या? आप ही आकाश हैं क्या? पृथ्वी या जल हैं क्या? हमारा यह स्वरूप नहीं है कि हम किसी का पालन कर सकें। हमें भ्रम होता है कि हम ने ही सब किया है। सोचिए, आप कौन हैं? आप झूठ ही यह मान रहे हैं कि मैंने वह कर दिया, यह कर दिया। ऐसा अभिमान हमें सभी क्षेत्रों में होता और दिखता है। ठीक ऐसे ही अभी जो चिंतन मैं आपको सुना रहा हूं, वह मेरा है या उसमें मेरे और पूर्वजों का भी योगदान है। मूल चिंतक कौन है, जिसने हमें यह विचार दिया? वह कौन है, जिसने हमें समझने की शक्ति दी? जिसने हमें आपके पास यह चिंतन पहुंचाने के लिए बल दिया, बुद्धि दिया, वह कौन है? इसीलिए पूरे संसार को बनाना, उसका पालन करना, और उसे अपने में छिपा लेना, जैसे समुद्र सभी जलधाराओं को छिपा लेता है। इसीलिए समुद्र जल का सबसे बड़ा स्वरूप है। जल की बूंद अंश मात्र हैं। इस कमरे का जो आकाश है, जो दीवार या छत टूटने के बाद जिस आकाश में मिल जाएगा, वह महा आकाश है, वह अपने में छिपा लेता है। बड़ा बनने के लिए आवश्यक है कि अंश अपने अंश में ही मिल जाए। जलधाराएं खतरे में रहती हैं, लेकिन उस समुद्र में मिल जाती हैं, जो कभी सूखता नहीं, जो तमाम धाराओं को अपने में समाहित कर लेता है। मिट्टी के टुकड़े को आपने ऊपर फेंका, वह आ गया पृथ्वी पर, मिल गया पृथ्वी में, तो बड़ा हो गया। हम लोग भी यही प्रयास कर रहे हैं बड़ा होने के लिए। हम ईश्वर जैसा बनना चाहते हैं, जो सबसे बड़ा है। हम उसके अंश हैं, अंश जब अंश में मिल जाता है, तो सबसे बड़े स्वरूप को प्राप्त कर लेता है।

Sunday, October 9, 2022

जानें प्रसिद्ध पौराणिक कथा- जब ऋर्षि दुर्वासा ने प्रभु राम के पौरुष से संसार को परिचित कराया

एक समय जब श्रीरामचंद्र जी का दर्शन करने के लिए अपने साठ हजार शिष्यों सहित दुर्वासा ऋषि अयोध्या को जा रहे थे, तब मार्ग में जाते हुए दुर्वासा ने सोचा कि मनुष्य का रूप धारण कर यह तो विष्णु जी ही संसार में अवतीर्ण हुए हैं, यह तो मैं जानता हूँ किन्तु संसारी जनों को आज मैं उनका पौरुष दिखलाऊँगा। अपने मन में ऐसा विचारते हुए वे अयोध्या आए और नगरी में प्रवेश कर सबको साथ लिए भगवान के भवन के आठ चौकों को लाँघकर पहले सीता जी के भवन में पहुँचे। तब शिष्यों सहित दुर्वासा को सीता जी के द्वार पर उपस्थित देख पहरेदारों ने शीघ्रता से दौड़कर श्री रामचंद्र जी को इसकी सूचना दी। यह सुनते ही भगवान राम मुनि दुर्वासा के पास आ पहुँचे और प्रणाम कर सबको बड़े आदर सहित भवन के भीतर लिवा गये तथा बैठने के लिए सुंदर आसन दिया। तब आसन पर बैठते ही दुर्वासा ने मधुर वचनों में श्री रामचंद्र जी से कहा कि, आज एक हजार वर्ष का मेरा उपवास व्रत पूरा हुआ है। इस कारण मेरे शिष्यों सहित मुझे भोजन कराइये और इसके लिए आपको केवल एक मुहूर्त का समय देता हूँ। साथ ही यह भी ज्ञात रहे कि मेरा यह भोजन जल, धेनु और अग्नि की सहायता से प्रस्तुत न किया जायेगा। केवल एक मुहूर्त में ही मेरी इच्छानुसार वह भोजन जिसमें विविध प्रकार के पकवान प्रस्तुत हों, मुझे प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त यदि तुम अपने गार्हस्थ्य-धर्म की रक्षा चाहो तो शिव पूजन निमित्त मुझे ऐसे पुष्प मँगवा दो कि जैसे पुष्प यहाँ अब तक किसी ने देखे न हों । यदि यह तुम्हारा किया न हो सके, तो मुझसे स्पष्ट कह दो कि, मैं इसमें असमर्थ हूँ । मैं चला जाऊँ। तब मुनि की इस बात को सुनकर श्री रामचंद्र जी ने मुस्कराते हुए नम्रता से कहा —“भगवान् ! मुझे आपकी यह सब आज्ञा स्वीकार है।” तब राम की बात सुनकर दुर्वासा ने प्रसन्न होकर कहा — मैं सरयू में स्नान करके अभी तुम्हारे पास आता हूँ, शीघ्रता करना। हमारे लिए सब सामग्रियों को प्रस्तुत करने के लिए अपने भाइयों तथा सीता को शीघ्रता के लिए कह देना। रामचंद्र जी ने कहा —अच्छा, आप जाइये स्नान कर आइये। दुर्वासा जी स्नान करने चले गये । राम चिन्तित हो गये। लक्ष्मण आदि भ्राता, जानकी तथा सब के सब व्याकुल हो राम की ओर निर्निमेष दृष्टि से देखने लगे कि मुनि ने तो इस प्रकार की सब अद्भुत वस्तुएँ माँगी हैं। इसके लिए देखें कि अब भगवान क्या करते हैं? क्योंकि बिना अग्नि, जल और बिना गौ के उनके लिए किस प्रकार से भोजन प्रस्तुत करते हैं। तब रामचंद्र जी ने लक्ष्मण जी से एक पत्र लिखवाया। फिर उस पत्र को अपने बाण में बाँध कर धनुष पर चढ़ाया और छोड़ दिया । वह बाण वायु वेग से उड़कर अमरावती में इन्द्र की सुधर्मा नामक सभा में जाकर उनके सामने गिर पड़ा। उस बाण को देखकर इन्द्र व्याकुल हो गये कि यह किसका बाण है? फिर उठाकर जो देखा तो उस पर राम का नाम अंकित था। फिर उसमें बँधे पत्र को खोलकर पढ़ा। पत्र खुलते ही वह बाण फिर वहाँ से उड़कर राम के तरकश में आ घुसा। उधर इन्द्र ने उस पत्र को सभा में बैठे हुए सब देवताओं को सुनाया । उसमें लिखा था — इन्द्र ! स्वर्ग में सुखी रहो। मैं सर्वदा तुम्हारा स्मरण करता हूँ; परंतु तुम्हें एक आज्ञा देता हूँ। आज 1000 वर्ष के भूखे हुए दुर्वासा मुनि अपने साठ हजार शिष्यों के साथ मेरे यहाँ आए हैं। वे ऐसा भोजन चाहते हैं, जो गऊ, जल अथवा अग्नि के द्वारा सिद्ध न किया हो। इसके साथ ही उन्होंने शिव पूजन के लिए ऐसे पुष्प माँगे हैं जिन्हें कि अब तक मनुष्यों ने न देखा हो। मैंने उनकी यह माँग स्वीकार कर ली है। वे सरयू में स्नान करने गये हैं। इसलिए तुम शीघ्र ही कल्पवृक्ष और पारिजात जो क्षीरसागर से निकले हैं, क्षणमात्र में मेरे पास भेज दो, इसके लिए रावण के संहारक मेरे बाणों की प्रतीक्षा मत करना। यह पत्र देवताओं को सुनाकर इन्द्रदेव तत्क्षण उठ पड़े और कल्पवृक्ष तथा पारिजात को साथ ले देवताओं सहित विमान में बैठकर अयोध्या में आ पहुँचे। लक्ष्मण जी ने इन्द्र का स्वागत किया। इन्द्र ने राम के पास पहुँच पारिजात और कल्पवृक्ष को राम को अर्पण किया। इतने ही में सरयू तट से दुर्वासा ने अपने एक शिष्य को राम के पास भेजा कि तुम जाकर देखो कि राम इस समय क्या कर रहे हैं? मैंने जो आज्ञा दी है, उसके अनुसार कुछ अन्न अब तक बना है कि नहीं? अब-तक वैसे ही चिन्तामग्न हैं या कुछ कर रहे हैं? यदि मेरी आज्ञानुसार पकवान प्रस्तुत कर रहे हैं तो अब तक कितनी सामग्री तैयार हुई है? यह सब तुम चुपके से देखकर मेरे पास आओ।तब ‘जो आज्ञा’ ऐसा कहकर वह शिष्य राम के भवन में आया। देखा तो कल्पवृक्ष और पारिजात से युक्त देवताओं की मण्डली में राम विराजमान हैं । यह देखकर उस शिष्य ने शीघ्र ही दुर्वासा के पास जाकर वह समाचार कह सुनाया। शिष्य की यह बात सुनकर दुर्वासा को आश्चर्य हुआ। स्नान कर शिष्यों को साथ ले दुर्वासा ऋषि श्री रामचंद्र जी के सुंदर भवन में आ पहुँचे। दुर्वासा जी को आया देख देवताओं सहित राम ने उठकर उन्हें तथा उनके सब शिष्यों को बड़े आदर के साथ प्रणाम किया और उत्तम आसन पर बिठाकर सीता तथा लक्ष्मण आदि के साथ उनकी पूजा की, फिर जिन पुष्पों को मनुष्यों ने अब-तक नहीं देखा था, शिव पूजन के हेतु पारिजात के उन पुष्पों को राम ने दुर्वासा के समक्ष प्रस्तुत किया। उन पुष्पों को देख मुनि दुर्वासा ने एक बार तो आश्चर्य किया किन्तु मौन भाव से उन्हें ग्रहण कर शिव जी तथा अन्य देवताओं की उन पुष्पों से पूजा की।फिर उसी क्षण श्री रामचंद्र जी ने लक्ष्मण तथा सीता आदि को सब भोजन परोसने की आज्ञा दी। तब दिव्य अलंकारों से विभूषित सीता ने कल्पवृक्ष और पारिजात की पूजा कर अनेक पात्रों को लाकर उनके नीचे रख दिया और वह प्रार्थना करती हुयी इस प्रकार बोली कि, हे क्षीरसागर से उत्पन्न होने तथा देवताओं के मनोरथों को पूर्ण करने वाले कल्पवृक्ष ! आज शिष्यों सहित हमारे यहाँ आए हुए दुर्वासा को तुम सन्तुष्ट कर दो। तब सीता के इस प्रकार कहते ही कल्पवृक्ष ने पलमात्र में वहाँ रखे हुए करोड़ों पात्रों को अनेक प्रकार की खाद्य सामग्रियों से पूर्ण कर दिया । फिर तो उन सब अन्नों को उर्मिला सहित सीता ने सुवर्ण के पात्रों में रख रख कर दुर्वासा के समक्ष परोस दिया। फिर तो रामचंद्र से निवेदित दुर्वासा ने अपने शिष्यों के साथ बड़े प्रेम से वह सब भोजन किया। फिर हाथ मुँह धो ताम्बूल तथा दक्षिणा ली।

Tuesday, August 17, 2021

वैदिक चेतना के प्रवाहक थे गोस्वामी तुलसीदास : जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य

आईएएस राजेश्वर सिंह को मिला तुलसीदास सम्मान जयपुर, 16 अगस्त। गोस्वामी तुलसीदास ने मध्यकाल में रामचरितमानस सहित दूसरे ग्रंथों की रचना कर वैदिक भावों एवं विचारों को गति प्रदान की। उनकी मानस भारतीय भाषाओं में बीती पांच शताब्दियों में रचा सबसे बड़ा ग्रंथ है, जो आज भी रामभक्ति की अलख जगाए हुए है। यह बात राजस्थान संस्कृत अकादमी एवं चातुर्मास महोत्सव समिति के द्वारा आयोजित तुलसीदास जयंती पर रामानंद संप्रदाय के प्रधान स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य महाराज ने खंडाका हाउस में कही। उन्होंने कहा कि मानस में श्रीराम के लोकोपकारी स्वरूप का वर्णन हुआ है, वह आज भी भारतीय समाज का कंठहार बना हुआ है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी राजेश्वर सिंह ने वेदों, उपनिषदों एवं पुराणों के उद्धरण देकर गोस्वामी तुलसीदास को समन्वयक कवि बताया। उनकी रचना रामचरितमानस असंख्य श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं बल्कि साहित्य और दर्शन के क्षेत्र में भी आकर्षण का केंद्र बन हुई है। दिल्ली के लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. जयकांत शर्मा ने विनयपत्रिका के माध्यम से श्रीराम के उदार स्वरूप की व्याख्या प्रस्तुत करते हुए तुलसीदास को जन—मन का कवि बताया। राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रो. अनिल जैन ने कहा कि तुलसीदास के राम राजा नहीं बल्कि आम लोगों के राम हैं, जो उनसे अपना दुख—सुख बांट सकते हैं। राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के डॉ. उमेश नेपाल ने बताया कि संस्कृत भाषा के विद्वान होने के बाद भी देशज भाषा में राम चरित लिखकर तुलसीदास ने साधारण व्यक्ति को श्रीराम के अलौकिक कृतित्व और व्यक्तित्व से जोड़ा। समारोह का संचालन एवं संयोजन शास्त्री कोसलेंद्रदास ने किया। धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत अकादमी के निदेशक संजय झाला ने किया।

Monday, August 16, 2021

जयपुर में सावन की अंतिम सोमवारी पर जगदगुरु रामनरेशाचार्य का भव्य रुद्राभिषेक अनुष्ठान






 जयपुर में सावन की अंतिम सोमवारी पर जगदगुरु रामनरेशाचार्य का भव्य रुद्राभिषेक अनुष्ठान

जयपुर, 16 अगस्त।
सावन की अंतिम सोमवारी पर जयपुर के बनीपार्क स्थित खण्डाका हाउस में दिन भर धार्मिक प्रवृतियों की धूम रही। सुबह में चातुर्मास व्रतधारी जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य ने अपनी धर्म की दैनिक प्रवृतियों मसलन हवन, पूजन आदि को संपादित किया। दैनिक स्वाध्याय का क्रम भी रोज की तरह पूरा हुआ और दोपहर बाद भव्य रुद्राभिषेक का अनुष्ठान सम्पन्न हुआ।



श्रीमठ, पंचगंगा घाट, काशी की ओर से जारी विज्ञप्ति के मुताबिक सावन माह की अंतिम सोमवारी पर रामानंद संप्रदाय के मूल आचार्यपीठ के वर्तमान आचार्य और जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज ने विधि-विधान से भगवान शिव की अराधना की। षोडशोपचार पूजा के पश्चात  संतों-भक्तों और सदगृहस्थों की उपस्थिति में भगवान भोले का भव्य रुद्राभिषेक किया। इस मौके पर काशी से गये वैदिक ब्राह्मणों की टोली और राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के अध्यापकों ने सविधि पूजा संपन्न करायी। सस्वर मंत्रोच्चार से लगातार तीन घंटे तक पूरा वातावरण शिवभक्ति में ओतप्रोत रहा। बाद में भव्य महाआरती भी हुई।


इससे पूर्व अपने प्रवचन में जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज ने सावन मास की सोमवारी के दिन शिव पूजा की महिमा का शास्त्रीय विधि से प्रतिपादन किया। उन्होंने रुद्रावतार की कथा को भी विस्तार से भक्तों के बीच रखा।
आज के भव्य रुद्राभिषेक को संपादित करने में काशी से गये पण्डित उपेन्द्र मिश्र के नेतृत्व में वैदिकों की टोली ने अहम भूमिका निभायी। जगदगुरु रामानंदाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के आचार्य शास्त्री कोसलेन्द्र दास ने पूरे कार्यक्रम का संयोजन किया।



Saturday, July 24, 2021

जयपुर चातुर्मास महोत्सव- गुरु पूर्णिमा

 


शिष्य को शोक-मोह की बीमारी से दूर करना ही गुरु का असली काम- जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य

*देवकुमार पुखराज


जयपुर, 24 जुलाई।

काशी के पंचगंगा घाट स्थित श्रीमठ पीठाधीश्वर और जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज का चातुर्मास्य अनुष्ठान आज से जयपुर के खण्डाका हाउस में विधि पूर्वक आरंभ हो गया। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर सुबह से देर शाम तक पूजन, हवन और प्रवचन के कार्यक्रम चलते रहे और पूरा वातावरण भक्तिमय बना रहा।


 

शोक-मोह की वैक्सिन है शरणागति-

दोपहर में और फिर अपने संध्याकालीन प्रवचन में जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी ने कहा कि गुरु का काम सांसारिक मोह और शोक की बीमारी से शिष्य को दूर करना है और यह काम केवल और केवल भक्ति और शरणागति के द्वारा ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि शोक-मोह नामक बीमारी की वैक्सिन भक्ति और शरणागति है। गुरु वहीं वैक्सिन अपने शिष्यों को देता है। स्वामी रामनरेशाचार्य ने कहा कि धर्मगुरु का काम शिष्य के अज्ञान को हरना और उसके भीतर धर्म और आध्यात्म की ज्योति को जलाना है। आध्यात्मिक तत्व को प्रतिष्ठित करना है। हमारा काम यह बताना नहीं है कि नौकरी कैसे लगे और व्यापार में कैसे धन कमाया जाए। हम तो जीवन की जो सबसे बड़ी और अंतिम कामना है, उस मोक्ष के मार्ग को सिखाते और बतलाते हैं।

वेद मार्ग ही मानवता के लिए उपयोगी-

स्वामी रामनरेशाचार्य ने आगे कहा कि वेदों में वर्णित सिद्धांत मानवता के लिए सदा उपयोगी और प्रासंगिक हैं। उस पथ पर चलकर और उनको जीवन में उतार कर ही मानव शांति और समानता के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। स्वामी रामनरेशाचार्य ने कहा कि परमेश्वर स्वयं ही मानव के कल्याण के लिए वेदव्यास के रुप में धराधाम पर प्रगट हुए। जिन्होंने मानव समाज को महाभारत और पुराणों जैसे कालजयी ग्रंथ दिये और विश्व साहित्य में सबसे पुराने वेदों का विभाजन किया।

चातुर्मास व्रत में विधि विधान से पूजा-

चातुर्मास के आरंभ में शनिवार को रामनरेशाचार्य ने खण्डाका हाउस में सबसे पहले गणपति-गौरी, नवग्रह, सप्तऋषि और आचार्य परंपरा का वैदिक विधि-विधान से पूजन किया। इस अवसर पर देश के विभिन्न भागों से आए श्रीमठ के भक्तों ने जगदगुरु रामनरेशाचार्य का पूजन किया। रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल, जयपुर के अध्यक्ष गजानन अग्रवाल ने बताया कि स्वामी रामनरेशाचार्य के प्रवचन प्रतिदिन शाम छह बजे से शहर के बनीपार्क स्थित खंडाका हाउस में होंगे।

महाराजश्री का पूजन कार्यक्रम राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के वरीय प्राध्यापक डॉ. शास्त्री कोसलेन्द्र दास और वाराणसी से आए पण्डित उपेन्द्र मिश्र की देखरेख में संपन्न हुआ।    

Wednesday, July 21, 2021

जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज का चातुर्मास महोत्सव- 2021 जयपुर में

 

जयपुर में चातुर्मास महोत्सव गुरु पूर्णिमा से

डॉ. देवकुमार पुखराज

वाराणसी, 21 जुलाई।

रामभक्ति धारा को समर्पित रामानंद संप्रदाय के पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज का दिव्य चातुर्मास महोत्सव इस वर्ष जयपुर में होना सुनिश्चित हुआ है। स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य जी की साधना स्थली, काशी के पंचगंगा घाट स्थित श्रीमठ के वर्तमान आचार्य हैं, जिसे बैरागी वैष्णव संप्रदाय और सगुण एवम निर्गुण रामभक्ति परंपरा का मूल आचार्यपीठ माना जाता है। चातुर्मास व्रत अनुष्ठान का प्रारंभ गुरु पूर्णिमा यानि 24 जुलाई की पावन तिथि से होगा।

काशी के श्रीमठ पीठाधीश्वर प्रत्येक वर्ष नियम पूर्वक चातुर्मास व्रत का अनुष्ठान पूरे विधि-विधान से देश के अलग-अलग स्थानों पर करते रहे हैं। सभी प्रमुख तीर्थों और महानगरों में स्वामी रामनरेशाचार्यजी महाराज के चातुर्मास अनुष्ठान समायोजित हो चुके हैं। पिछले साल जबलपुर के जिलहरी घाट स्थित प्रेमानंद आश्रम में और उसके साल भर पहले यानि 2019 में माउंट आबू स्थित ऐतिहासिक रघुनाथ मंदिर प्रांगण में चातुर्मास व्रत का आयोजन हुआ था।

रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल, जयपुर के संयोजक गजानन अग्रवाल बताते हैं कि महाराजश्री जयपुर में तीसरी बार चातुर्मास करने जा रहे हैं। सन 2002 और 2009 में भी आचार्यश्री यहां चातुर्मास अनुष्ठान पूर्ण किये थे। यह तीसरा आयोजन है, जो सन 2021 में हो रहा है। 

जयपुर के बनीपार्क स्थित खण्डाका हाउस ( पीतल फैक्टरी के समीप) में चातुर्मास महापर्व का भव्य प्रारंभ गुरु पूर्णिमा की पावन तिथि से होगा। चातुर्मास्य महोत्सव के संयोजक नेमप्रकाश संतकुमार खण्डाका के मुताबिक सियारामजी की कृपा छाया और स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज के पावन सान्निध्य में चातुर्मास महापर्व के दौरान प्रत्येक दिन अनेक प्रकार के मांगलिक अनुष्ठान होगें। प्रातः काल महाराजश्री पोषडोपचार विधि से श्रीसीताराम जी का पूजन करते हैं। फिर देव-ऋर्षि पितृतर्पण का कार्य संपादित करते हैं। समष्टि हवन और फिर स्वाध्याय का क्रम नियमित रुप से चलता है। दोपहर में वैष्णवाराधन और विश्राम के पश्चात संध्या काल के कार्यक्रम होते हैं। जिसमें आगंतुक संत-महंत अपने प्रवचनों ने उपस्थित श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन करते हैं। फिर महाराजश्री का आशीर्वचन स्वरुप प्रवचन होता है।

जयपुर चातुर्मास समिति के प्रमुख स्तंभ पुष्कर उपाध्याय के मुताबिक स्वामीजी का जयपुर में 23 जुलाई 2021 को शुभागमन हो रहा है। 24 जुलाई, 2021 को प्रातः 9 बजे से सर्वावतारी श्रीरामलला जी के पूजन व पंचमहायज्ञ के उपरांत गुरुपूर्णिमा महोत्सव का शुभ कार्यक्रम प्रारंभ होगा। गुरुपूजन के पश्चात महाराजश्री के आशीर्वाद स्वरुप प्रसादी की भी व्यवस्था है।


 

डॉ. शास्त्री कोसलेन्द्र दास के अनुसार चातुर्मास काल में सावन की प्रत्येक सोमवारी को भगवान शिव का रुद्राभिषेक के अलावे गोस्वामी तुलसीदास की जयंती, संत सम्मेलन, श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, नंद महोत्सव, विनायक चतुर्थी, अनंत चतुर्दशी जैसे पर्व और महोत्सव धूमधाम से मनाये जाते हैं। चातुर्मास के दौरान बीच-बीच में राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी, राष्ट्रीय कवि सम्मेलन और विराट भंडारे का आयोजन होते रहता है। पूरे दो महीने तक अखंड श्रीरामनाम संकीर्तन से भी पूरा वातावरण भक्तिमय रहता है।

श्रीमठ, काशी से जुड़े उपेन्द्र मिश्र ने बताया कि आषाढ़ पूर्णिमा 24 जुलाई से लेकर भाद्र पूर्णिमा 20 सितम्बर, 2021 तक चलने वाले चातुर्मास अनुष्ठान के दौरान देश भर से सद्गृहस्थ भक्त, संत-श्रीमहंत और महामंडलेश्वर पधारेंगे। कोरोना संकट को देखते हुए सरकार की हर गाईडलाइंस खासकर साफ-सफाई और सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष प्रबंध रखा जाएगा। खण्डाका हाउस की विशालता, भव्यता, समुचित संसाधन और आवास की पर्याप्त सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए ही इस स्थान का चयन चातुर्मास महोत्सव के लिए किया गया है। परिसर का वातावरण कोरोना को दूर रखने में सहायक होगा, ऐसा व्यवस्थापकों का मानना है।

 

महाराजश्री स्वयं भी इस बात के लिए प्रयत्नशील हैं कि धार्मिक अनुष्ठानों खासकर भंडारे और प्रवचनों के दौरान अनावश्यक भीडभाड़ न हो। उनकी ओर से विशाल परिसर में सोशल डिस्टेंसिंग सहित कोरोना काल की जरुरी पाबंदियों का पालन अनिवार्य रुप से करने का निर्देश संतों- भक्तों को दिया गया है। ताकि चातुर्मास महापर्व का आध्यात्मिक स्वरूप हर स्थिति में बना रहे और किसी को किसी प्रकार का कष्ट न हो। महामारी को देखते हुए ही इस बार संध्याकालीन प्रवचन का लाइव प्रसारण फेसबुक और यू-ट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर किये जाने का प्रबंध किया गया है, ताकि श्रद्धालु और भक्त दूर-दराज अपने-अपने घरों में बैठकर भी सत्संग और सभी महत्वपूर्ण उत्सवों का आनंद ले सकें।