Tuesday, August 17, 2021

वैदिक चेतना के प्रवाहक थे गोस्वामी तुलसीदास : जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य

आईएएस राजेश्वर सिंह को मिला तुलसीदास सम्मान जयपुर, 16 अगस्त। गोस्वामी तुलसीदास ने मध्यकाल में रामचरितमानस सहित दूसरे ग्रंथों की रचना कर वैदिक भावों एवं विचारों को गति प्रदान की। उनकी मानस भारतीय भाषाओं में बीती पांच शताब्दियों में रचा सबसे बड़ा ग्रंथ है, जो आज भी रामभक्ति की अलख जगाए हुए है। यह बात राजस्थान संस्कृत अकादमी एवं चातुर्मास महोत्सव समिति के द्वारा आयोजित तुलसीदास जयंती पर रामानंद संप्रदाय के प्रधान स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य महाराज ने खंडाका हाउस में कही। उन्होंने कहा कि मानस में श्रीराम के लोकोपकारी स्वरूप का वर्णन हुआ है, वह आज भी भारतीय समाज का कंठहार बना हुआ है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी राजेश्वर सिंह ने वेदों, उपनिषदों एवं पुराणों के उद्धरण देकर गोस्वामी तुलसीदास को समन्वयक कवि बताया। उनकी रचना रामचरितमानस असंख्य श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं बल्कि साहित्य और दर्शन के क्षेत्र में भी आकर्षण का केंद्र बन हुई है। दिल्ली के लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. जयकांत शर्मा ने विनयपत्रिका के माध्यम से श्रीराम के उदार स्वरूप की व्याख्या प्रस्तुत करते हुए तुलसीदास को जन—मन का कवि बताया। राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रो. अनिल जैन ने कहा कि तुलसीदास के राम राजा नहीं बल्कि आम लोगों के राम हैं, जो उनसे अपना दुख—सुख बांट सकते हैं। राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के डॉ. उमेश नेपाल ने बताया कि संस्कृत भाषा के विद्वान होने के बाद भी देशज भाषा में राम चरित लिखकर तुलसीदास ने साधारण व्यक्ति को श्रीराम के अलौकिक कृतित्व और व्यक्तित्व से जोड़ा। समारोह का संचालन एवं संयोजन शास्त्री कोसलेंद्रदास ने किया। धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत अकादमी के निदेशक संजय झाला ने किया।

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