Wednesday, January 10, 2024

"श्रीमठ काशी वाले रामानंदाचार्य और चारो शंकराचार्यों को राममंदिर लोकार्पण में खुद आमंत्रित करें पीएम मोदी"

 



* देवकुमार पुखराज

अयोध्या, 10 जनवरी। 

अयोध्या में राममंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की तिथि जैसे जैसे नजदीक आ रही है, मंदिर को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह के साथ ही विशिष्ट संतों को आमंत्रित नहीं किये जाने को लेकर विवाद भी बढ़ते जा रहा है। अभी तक जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य और चारों पीठ के शंकराचार्य द्वारा मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा उत्सव से दूरी बनाने की बात सामने आयी है। इसे लेकर अयोध्या के संत समाज भी मुखर होने लगा है।

अयोध्या के कनक भवन रोड स्थित श्रीराम आश्रम के महंत जयराम दास ने सोशल मीडिया के जरिये विशेष आग्रह किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की है कि वे स्वयं ही श्रीमठ, काशी वाले जगदगुरु रामानंदाचार्य और चारों शंकराचार्यों को आमंत्रित करें। महंत जयराम दास, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अयोध्या नगर संघचालक भी हैं, ने लिखा है-

“श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का उद्घाटन समारोह इस सदी का सबसे बड़ा ऐतिहासिक शुभ अवसर है। इस पावन समारोह के अवसर पर रामानंद संप्रदाय के मूल पीठ श्रीमठ, पंचगंगा घाट, काशी एवं चारों जगद्गुरु शंकराचार्यों की अनुपस्थिति शास्त्रोक्त व लौकिक दृष्टि से उचित नहीं”।

वे आगे लिखते हैं- जब कोई आचार्यपीठ पूज्य-जन किसी वेदोक्त, शास्त्रोक्त नियमानुकूल अप्रसन्न होकर आपके अनुष्ठान का निषेध करें तब यजमान का कर्तव्य है कि वह कैसे भी अनुनय विनय कर अपने पूज्य जगद्गुरु पद प्रतिष्ठित श्रेष्ठ जनों को संतुष्ट करे, तभी राम मंदिर राष्ट्रीय मंदिर होकर देश और विश्व में अलख जगाएगा, शुभ फल प्राप्त होगा । 

महंत जयराम दास की अपील है- श्रीराम मंदिर उद्घाटन के प्रधान-यजमान माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी स्वयं चारों पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्यों और श्रीमठ वाले रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज से प्रार्थना-पूर्वक संवाद करके आमंत्रित करें और समारोह स्थल पर उनके लिए विशेष प्रोटोकॉल का प्रबंध करें। इससे देश में बहुत अच्छा संदेश जायेगा। यह धार्मिक रूप से भी उचित होगा ओर राजनीतिक रूप से भी। सनातन के सर्वोच्च धर्माचार्यों का सम्मान हम सबका कर्तव्य है। वे आगे लिखते हैं- केवल श्रीराम मंदिर ही नहीं, काशी-मथुरा में भी कुछ अच्छा करना है, तो सबको अपना अहंकार संतुलित रखना होगा। शंकराचार्यों का सम्मान कर मोदी जी छोटे नहीं हो जायेंगे, प्रत्युत उनका यश और कीर्ति भी अभिवर्धित होगा। यही धर्मानुशासन है। लौकिक सामाजिक व्यवहार भी।

इस बीच जगदगुरु रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल भी खुलकर शीर्ष संतों के समर्थन में खड़ा हो गया है। रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल से जुड़े गजानन अग्रवाल (जयपुर) और सत्येन्द्र पांडेय (आरा, बिहार) ने कहा है कि जब श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र समिति के महासचिव चम्पत राय कहते हैं कि अयोध्या जन्मभूमि का मंदिर रामानंद संप्रदाय का है, तो फिर अभीतक रामानंद संप्रदाय के मूल आचार्यपीठ श्रीमठ, पंचगंगा घाट, काशी को इस पूरे आयोजन से दूर क्यों रखा है। चम्पत राय को याद होना चाहिए कि जब पहली बार श्रीरामजन्मभूमि के लिए विहिप ने राष्ट्रीय समिति गठित की थी, तो श्रीमठ के तत्कालीन पीठाधीशवर जगदगुरु शिवारामाचार्य जी को उसका प्रथम अध्यक्ष बनाया गया था। जब 90 के दशक में केन्द्र सरकार ने पीएम नरसिम्हा राव के समय अय़ोध्या विवाद का हल निकालने हेतु रामालय ट्रस्ट गठित किया था, तो श्रीमठ वाले जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज को उसका संयोजक नियुक्त किया था। उस समिति में द्वारकापुरी के जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद जी महाराज, श्रृंगेरीपीठ के जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी भारतीतीर्थ जी महाराज और उडप्पी के पेजावर स्वामी मध्वाचार्य स्वामी विश्वेषतीर्थ जी महाराज भी शामिल थे।  

बताते चलें कि दो दिन पहले ही ज्योतिषपीठ, बदरीकाश्रम के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बयान जारी कर कहा था कि अयोध्या का श्रीराम मंदिर रामानंद संप्रदाय को सौंपा जाए। इस विषय पर किसी शंकराचार्य को आपत्ति नहीं होगी। रामानंद संप्रदाय के संतों को ही मंदिर निर्माण से लेकर उसके प्रबंध की जिम्मेदारी सौंपी जाए।

Thursday, July 6, 2023

ब्रह्म या ईश्वर क्या है? जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज के हरिद्वार चातुर्मास प्रवचन

*ज्ञानेश उपाध्याय 


 वेदों में कहा गया कि जो इस संसार को बनाए, उसका पालन भी करे, और उसको अपने में छिपा भी ले। जैसे घड़ा टूटने के बाद मिट्टी में छिप जाता है। तिरोहित हो जाता है, उसे लोग घड़ा नहीं बोलते, मिट्टी बोलते हैं। कार्य अपने कारण में छिप जाता है, उपादान कारण में। सोने का आभूषण टूटने के बाद सोने में छिप जाता है और उसे कोई आभूषण नहीं कहता। कौन मकान बनाने वाला है, कौन उद्यान बनाने वाला है, ऐसे ही, जो भी कार्य दिखाई पड़ते हैं, उनके लिए आपके मन में जिज्ञासा होती है, तो आपके मन में यह जानने की इच्छा भी होनी चाहिए कि इस संसार को किसने बनाया। वेदों ने कहा, संसार को जो बनाता है, जो इसका पालन करता है, जो इसको अपने में छिपा लेता है, उसी को ब्रह्म कहते हैं। जिसमें तीनों ही तरह के चमत्कार की क्षमताएं हैं, बनाने की, पालन करने की और अपने में छिपा लेने की। भूत का क्या अर्थ है? पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश, इनको भूत कहते हैं। तभी तो हम लोगों के शरीर को पांच भूतों से बना हुआ कहा जाता है। छितिजल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अधम शरीरा। यह तुलसीदास जी का वाक्य है। हमारे शरीर में पृथ्वी भी है, जल भी, तेज भी, वायु भी और आकाश भी। हमारे शरीर में जो खुलापन है, वह आकाश का भाग है। देखिए, कान में भी छिद्र है। कान जो बाहर से दिखता है, उसे कान नहीं बोलते। इसके भीतर जो छिद्र है या जो खालीपन है, वह कान है। दर्शनशास्त्र में पढ़ाया जाता है कि भीतर जो आकाश है, खालीपन है, उसी का नाम कान है। यदि ये भीतर वाला भाग बंद हो जाए, तो हमें सुनाई नहीं पड़ेगा। शब्द का ग्रहण नहीं होगा, ज्ञान नहीं होगा। नाक में भी आकाश है। पेट में भी जो खालीपन है, वह भी आकाश ही है। जहां से रक्त आदि प्रवाहित होते हैं, जल प्रभावित होता है। पृथ्वी का भाग तो आप देखते ही हैं, पैर, हाथ व अन्य अंग। जल भी है शरीर में। वायु का भी हम अनुभव करते रहते हैं, कभी डकार, कभी अपान वायु, लोग कहते भी हैं कि पेट में वायु अभी बढ़ गया है। वायु की भी जरूरत है शरीर को, ऑक्सीजन भी उसी रूप में है। इस तरह हमारे पूरे शरीर को पंचभूतों से उत्पन्न या रचित माना जाता है। जब मृत्यु हो जाती है, तो ये पांचों भूत अपने-अपने बड़े शरीर में मिल जाते हैं। देखिए, जिस जगह हम बैठे हैं, यह कमरा, यहां आकाश है। हम इसे बोलते हैं, मकान है। छत को हटा दीजिए, दीवारों को हटा दीजिए, तो यह जो छोटा आकाश है, बड़े आकाश में मिल जाएगा। महाआकाश में मिल जाएगा, जो पूरे संसार में है। यहां रहें या रूस या अमेरिका जाएं, आपको यही आकाश मिलेगा। तेज, पृथ्वी, वायु, सूर्य का यही स्वरूप मिलेगा। इन सबको जो बनाता है और जो पालन करता है, इनका संरक्षण करता है, रखरखाव करता है, और जब लगता है कि यह रहने लायक नहीं है,तो वह इसे धीरे से अपने में मिला लेता है, छिपा लेता है, इसी का नाम ईश्वर है, बह्म है। ईश्वर चिंतन होते रहना चाहिए। वेदों ने कहा कि ब्रह्म को जानने की इच्छा करो। आप यहां छोटे-छोटे पदार्थों को देखकर जानने की इच्छा करते हो कि यह क्या है और इतने बड़े संसार को देखकर इच्छा ही नहीं हो रही है। यह बहुत बड़ी विडंबना है जीवन की। आप अवसर खो रहे हैं। सारा जीवन ऐसे ही निकलता जा रहा है और आपने जाना ही नहीं कि संसार को किसने बनाया? कौन इसका पालन करता है? ऐसे प्रश्न हमारे मन में उमड़ने-घुमड़ने चाहिए। आप ध्यान रखिए कि इस संसार को किसी उद्यमी, नेता या संस्था या सरकार ने नहीं बनाया, जिसने इसे बनाया, उसी को ब्रह्म कहते हैं। ब्रह्म का एक अर्थ और भी है। कहा गया है कि यह महान बहुत है। हम लोग महान नहीं हैं। जहां हम बैठे हैं, उतना ही हमारा। जहां हम बैठ जाते हैं, उसी को संसार समझ लेते हैं, हम छोटे लोग हैं। जहां जो बैठा है, उसका संसार बस उतना ही बड़ा है। जो महान हो, ऐसा कोई स्थान नहीं हो, जहां वह नहीं हो, वह ब्रह्म है। निरंतर जो विकासशील है, जो महान है, सबसे बड़ा जिसका आकार है, वह ब्रह्म है। हमें ऐसा लगता है कि हम ही पालन करते हैं। जैसे माता-पिता अपने बच्चों को समझते हैं कि हमने इनका पालन किया। पूछिए, उनके माता-पिता से कि ऑक्सीजन आप ही हैं क्या? आप ही आकाश हैं क्या? पृथ्वी या जल हैं क्या? हमारा यह स्वरूप नहीं है कि हम किसी का पालन कर सकें। हमें भ्रम होता है कि हम ने ही सब किया है। सोचिए, आप कौन हैं? आप झूठ ही यह मान रहे हैं कि मैंने वह कर दिया, यह कर दिया। ऐसा अभिमान हमें सभी क्षेत्रों में होता और दिखता है। ठीक ऐसे ही अभी जो चिंतन मैं आपको सुना रहा हूं, वह मेरा है या उसमें मेरे और पूर्वजों का भी योगदान है। मूल चिंतक कौन है, जिसने हमें यह विचार दिया? वह कौन है, जिसने हमें समझने की शक्ति दी? जिसने हमें आपके पास यह चिंतन पहुंचाने के लिए बल दिया, बुद्धि दिया, वह कौन है? इसीलिए पूरे संसार को बनाना, उसका पालन करना, और उसे अपने में छिपा लेना, जैसे समुद्र सभी जलधाराओं को छिपा लेता है। इसीलिए समुद्र जल का सबसे बड़ा स्वरूप है। जल की बूंद अंश मात्र हैं। इस कमरे का जो आकाश है, जो दीवार या छत टूटने के बाद जिस आकाश में मिल जाएगा, वह महा आकाश है, वह अपने में छिपा लेता है। बड़ा बनने के लिए आवश्यक है कि अंश अपने अंश में ही मिल जाए। जलधाराएं खतरे में रहती हैं, लेकिन उस समुद्र में मिल जाती हैं, जो कभी सूखता नहीं, जो तमाम धाराओं को अपने में समाहित कर लेता है। मिट्टी के टुकड़े को आपने ऊपर फेंका, वह आ गया पृथ्वी पर, मिल गया पृथ्वी में, तो बड़ा हो गया। हम लोग भी यही प्रयास कर रहे हैं बड़ा होने के लिए। हम ईश्वर जैसा बनना चाहते हैं, जो सबसे बड़ा है। हम उसके अंश हैं, अंश जब अंश में मिल जाता है, तो सबसे बड़े स्वरूप को प्राप्त कर लेता है।

Sunday, October 9, 2022

जानें प्रसिद्ध पौराणिक कथा- जब ऋर्षि दुर्वासा ने प्रभु राम के पौरुष से संसार को परिचित कराया

एक समय जब श्रीरामचंद्र जी का दर्शन करने के लिए अपने साठ हजार शिष्यों सहित दुर्वासा ऋषि अयोध्या को जा रहे थे, तब मार्ग में जाते हुए दुर्वासा ने सोचा कि मनुष्य का रूप धारण कर यह तो विष्णु जी ही संसार में अवतीर्ण हुए हैं, यह तो मैं जानता हूँ किन्तु संसारी जनों को आज मैं उनका पौरुष दिखलाऊँगा। अपने मन में ऐसा विचारते हुए वे अयोध्या आए और नगरी में प्रवेश कर सबको साथ लिए भगवान के भवन के आठ चौकों को लाँघकर पहले सीता जी के भवन में पहुँचे। तब शिष्यों सहित दुर्वासा को सीता जी के द्वार पर उपस्थित देख पहरेदारों ने शीघ्रता से दौड़कर श्री रामचंद्र जी को इसकी सूचना दी। यह सुनते ही भगवान राम मुनि दुर्वासा के पास आ पहुँचे और प्रणाम कर सबको बड़े आदर सहित भवन के भीतर लिवा गये तथा बैठने के लिए सुंदर आसन दिया। तब आसन पर बैठते ही दुर्वासा ने मधुर वचनों में श्री रामचंद्र जी से कहा कि, आज एक हजार वर्ष का मेरा उपवास व्रत पूरा हुआ है। इस कारण मेरे शिष्यों सहित मुझे भोजन कराइये और इसके लिए आपको केवल एक मुहूर्त का समय देता हूँ। साथ ही यह भी ज्ञात रहे कि मेरा यह भोजन जल, धेनु और अग्नि की सहायता से प्रस्तुत न किया जायेगा। केवल एक मुहूर्त में ही मेरी इच्छानुसार वह भोजन जिसमें विविध प्रकार के पकवान प्रस्तुत हों, मुझे प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त यदि तुम अपने गार्हस्थ्य-धर्म की रक्षा चाहो तो शिव पूजन निमित्त मुझे ऐसे पुष्प मँगवा दो कि जैसे पुष्प यहाँ अब तक किसी ने देखे न हों । यदि यह तुम्हारा किया न हो सके, तो मुझसे स्पष्ट कह दो कि, मैं इसमें असमर्थ हूँ । मैं चला जाऊँ। तब मुनि की इस बात को सुनकर श्री रामचंद्र जी ने मुस्कराते हुए नम्रता से कहा —“भगवान् ! मुझे आपकी यह सब आज्ञा स्वीकार है।” तब राम की बात सुनकर दुर्वासा ने प्रसन्न होकर कहा — मैं सरयू में स्नान करके अभी तुम्हारे पास आता हूँ, शीघ्रता करना। हमारे लिए सब सामग्रियों को प्रस्तुत करने के लिए अपने भाइयों तथा सीता को शीघ्रता के लिए कह देना। रामचंद्र जी ने कहा —अच्छा, आप जाइये स्नान कर आइये। दुर्वासा जी स्नान करने चले गये । राम चिन्तित हो गये। लक्ष्मण आदि भ्राता, जानकी तथा सब के सब व्याकुल हो राम की ओर निर्निमेष दृष्टि से देखने लगे कि मुनि ने तो इस प्रकार की सब अद्भुत वस्तुएँ माँगी हैं। इसके लिए देखें कि अब भगवान क्या करते हैं? क्योंकि बिना अग्नि, जल और बिना गौ के उनके लिए किस प्रकार से भोजन प्रस्तुत करते हैं। तब रामचंद्र जी ने लक्ष्मण जी से एक पत्र लिखवाया। फिर उस पत्र को अपने बाण में बाँध कर धनुष पर चढ़ाया और छोड़ दिया । वह बाण वायु वेग से उड़कर अमरावती में इन्द्र की सुधर्मा नामक सभा में जाकर उनके सामने गिर पड़ा। उस बाण को देखकर इन्द्र व्याकुल हो गये कि यह किसका बाण है? फिर उठाकर जो देखा तो उस पर राम का नाम अंकित था। फिर उसमें बँधे पत्र को खोलकर पढ़ा। पत्र खुलते ही वह बाण फिर वहाँ से उड़कर राम के तरकश में आ घुसा। उधर इन्द्र ने उस पत्र को सभा में बैठे हुए सब देवताओं को सुनाया । उसमें लिखा था — इन्द्र ! स्वर्ग में सुखी रहो। मैं सर्वदा तुम्हारा स्मरण करता हूँ; परंतु तुम्हें एक आज्ञा देता हूँ। आज 1000 वर्ष के भूखे हुए दुर्वासा मुनि अपने साठ हजार शिष्यों के साथ मेरे यहाँ आए हैं। वे ऐसा भोजन चाहते हैं, जो गऊ, जल अथवा अग्नि के द्वारा सिद्ध न किया हो। इसके साथ ही उन्होंने शिव पूजन के लिए ऐसे पुष्प माँगे हैं जिन्हें कि अब तक मनुष्यों ने न देखा हो। मैंने उनकी यह माँग स्वीकार कर ली है। वे सरयू में स्नान करने गये हैं। इसलिए तुम शीघ्र ही कल्पवृक्ष और पारिजात जो क्षीरसागर से निकले हैं, क्षणमात्र में मेरे पास भेज दो, इसके लिए रावण के संहारक मेरे बाणों की प्रतीक्षा मत करना। यह पत्र देवताओं को सुनाकर इन्द्रदेव तत्क्षण उठ पड़े और कल्पवृक्ष तथा पारिजात को साथ ले देवताओं सहित विमान में बैठकर अयोध्या में आ पहुँचे। लक्ष्मण जी ने इन्द्र का स्वागत किया। इन्द्र ने राम के पास पहुँच पारिजात और कल्पवृक्ष को राम को अर्पण किया। इतने ही में सरयू तट से दुर्वासा ने अपने एक शिष्य को राम के पास भेजा कि तुम जाकर देखो कि राम इस समय क्या कर रहे हैं? मैंने जो आज्ञा दी है, उसके अनुसार कुछ अन्न अब तक बना है कि नहीं? अब-तक वैसे ही चिन्तामग्न हैं या कुछ कर रहे हैं? यदि मेरी आज्ञानुसार पकवान प्रस्तुत कर रहे हैं तो अब तक कितनी सामग्री तैयार हुई है? यह सब तुम चुपके से देखकर मेरे पास आओ।तब ‘जो आज्ञा’ ऐसा कहकर वह शिष्य राम के भवन में आया। देखा तो कल्पवृक्ष और पारिजात से युक्त देवताओं की मण्डली में राम विराजमान हैं । यह देखकर उस शिष्य ने शीघ्र ही दुर्वासा के पास जाकर वह समाचार कह सुनाया। शिष्य की यह बात सुनकर दुर्वासा को आश्चर्य हुआ। स्नान कर शिष्यों को साथ ले दुर्वासा ऋषि श्री रामचंद्र जी के सुंदर भवन में आ पहुँचे। दुर्वासा जी को आया देख देवताओं सहित राम ने उठकर उन्हें तथा उनके सब शिष्यों को बड़े आदर के साथ प्रणाम किया और उत्तम आसन पर बिठाकर सीता तथा लक्ष्मण आदि के साथ उनकी पूजा की, फिर जिन पुष्पों को मनुष्यों ने अब-तक नहीं देखा था, शिव पूजन के हेतु पारिजात के उन पुष्पों को राम ने दुर्वासा के समक्ष प्रस्तुत किया। उन पुष्पों को देख मुनि दुर्वासा ने एक बार तो आश्चर्य किया किन्तु मौन भाव से उन्हें ग्रहण कर शिव जी तथा अन्य देवताओं की उन पुष्पों से पूजा की।फिर उसी क्षण श्री रामचंद्र जी ने लक्ष्मण तथा सीता आदि को सब भोजन परोसने की आज्ञा दी। तब दिव्य अलंकारों से विभूषित सीता ने कल्पवृक्ष और पारिजात की पूजा कर अनेक पात्रों को लाकर उनके नीचे रख दिया और वह प्रार्थना करती हुयी इस प्रकार बोली कि, हे क्षीरसागर से उत्पन्न होने तथा देवताओं के मनोरथों को पूर्ण करने वाले कल्पवृक्ष ! आज शिष्यों सहित हमारे यहाँ आए हुए दुर्वासा को तुम सन्तुष्ट कर दो। तब सीता के इस प्रकार कहते ही कल्पवृक्ष ने पलमात्र में वहाँ रखे हुए करोड़ों पात्रों को अनेक प्रकार की खाद्य सामग्रियों से पूर्ण कर दिया । फिर तो उन सब अन्नों को उर्मिला सहित सीता ने सुवर्ण के पात्रों में रख रख कर दुर्वासा के समक्ष परोस दिया। फिर तो रामचंद्र से निवेदित दुर्वासा ने अपने शिष्यों के साथ बड़े प्रेम से वह सब भोजन किया। फिर हाथ मुँह धो ताम्बूल तथा दक्षिणा ली।

Tuesday, August 17, 2021

वैदिक चेतना के प्रवाहक थे गोस्वामी तुलसीदास : जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य

आईएएस राजेश्वर सिंह को मिला तुलसीदास सम्मान जयपुर, 16 अगस्त। गोस्वामी तुलसीदास ने मध्यकाल में रामचरितमानस सहित दूसरे ग्रंथों की रचना कर वैदिक भावों एवं विचारों को गति प्रदान की। उनकी मानस भारतीय भाषाओं में बीती पांच शताब्दियों में रचा सबसे बड़ा ग्रंथ है, जो आज भी रामभक्ति की अलख जगाए हुए है। यह बात राजस्थान संस्कृत अकादमी एवं चातुर्मास महोत्सव समिति के द्वारा आयोजित तुलसीदास जयंती पर रामानंद संप्रदाय के प्रधान स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य महाराज ने खंडाका हाउस में कही। उन्होंने कहा कि मानस में श्रीराम के लोकोपकारी स्वरूप का वर्णन हुआ है, वह आज भी भारतीय समाज का कंठहार बना हुआ है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी राजेश्वर सिंह ने वेदों, उपनिषदों एवं पुराणों के उद्धरण देकर गोस्वामी तुलसीदास को समन्वयक कवि बताया। उनकी रचना रामचरितमानस असंख्य श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं बल्कि साहित्य और दर्शन के क्षेत्र में भी आकर्षण का केंद्र बन हुई है। दिल्ली के लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. जयकांत शर्मा ने विनयपत्रिका के माध्यम से श्रीराम के उदार स्वरूप की व्याख्या प्रस्तुत करते हुए तुलसीदास को जन—मन का कवि बताया। राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रो. अनिल जैन ने कहा कि तुलसीदास के राम राजा नहीं बल्कि आम लोगों के राम हैं, जो उनसे अपना दुख—सुख बांट सकते हैं। राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के डॉ. उमेश नेपाल ने बताया कि संस्कृत भाषा के विद्वान होने के बाद भी देशज भाषा में राम चरित लिखकर तुलसीदास ने साधारण व्यक्ति को श्रीराम के अलौकिक कृतित्व और व्यक्तित्व से जोड़ा। समारोह का संचालन एवं संयोजन शास्त्री कोसलेंद्रदास ने किया। धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत अकादमी के निदेशक संजय झाला ने किया।

Monday, August 16, 2021

जयपुर में सावन की अंतिम सोमवारी पर जगदगुरु रामनरेशाचार्य का भव्य रुद्राभिषेक अनुष्ठान






 जयपुर में सावन की अंतिम सोमवारी पर जगदगुरु रामनरेशाचार्य का भव्य रुद्राभिषेक अनुष्ठान

जयपुर, 16 अगस्त।
सावन की अंतिम सोमवारी पर जयपुर के बनीपार्क स्थित खण्डाका हाउस में दिन भर धार्मिक प्रवृतियों की धूम रही। सुबह में चातुर्मास व्रतधारी जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य ने अपनी धर्म की दैनिक प्रवृतियों मसलन हवन, पूजन आदि को संपादित किया। दैनिक स्वाध्याय का क्रम भी रोज की तरह पूरा हुआ और दोपहर बाद भव्य रुद्राभिषेक का अनुष्ठान सम्पन्न हुआ।



श्रीमठ, पंचगंगा घाट, काशी की ओर से जारी विज्ञप्ति के मुताबिक सावन माह की अंतिम सोमवारी पर रामानंद संप्रदाय के मूल आचार्यपीठ के वर्तमान आचार्य और जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज ने विधि-विधान से भगवान शिव की अराधना की। षोडशोपचार पूजा के पश्चात  संतों-भक्तों और सदगृहस्थों की उपस्थिति में भगवान भोले का भव्य रुद्राभिषेक किया। इस मौके पर काशी से गये वैदिक ब्राह्मणों की टोली और राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के अध्यापकों ने सविधि पूजा संपन्न करायी। सस्वर मंत्रोच्चार से लगातार तीन घंटे तक पूरा वातावरण शिवभक्ति में ओतप्रोत रहा। बाद में भव्य महाआरती भी हुई।


इससे पूर्व अपने प्रवचन में जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज ने सावन मास की सोमवारी के दिन शिव पूजा की महिमा का शास्त्रीय विधि से प्रतिपादन किया। उन्होंने रुद्रावतार की कथा को भी विस्तार से भक्तों के बीच रखा।
आज के भव्य रुद्राभिषेक को संपादित करने में काशी से गये पण्डित उपेन्द्र मिश्र के नेतृत्व में वैदिकों की टोली ने अहम भूमिका निभायी। जगदगुरु रामानंदाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के आचार्य शास्त्री कोसलेन्द्र दास ने पूरे कार्यक्रम का संयोजन किया।



Saturday, July 24, 2021

जयपुर चातुर्मास महोत्सव- गुरु पूर्णिमा

 


शिष्य को शोक-मोह की बीमारी से दूर करना ही गुरु का असली काम- जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य

*देवकुमार पुखराज


जयपुर, 24 जुलाई।

काशी के पंचगंगा घाट स्थित श्रीमठ पीठाधीश्वर और जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज का चातुर्मास्य अनुष्ठान आज से जयपुर के खण्डाका हाउस में विधि पूर्वक आरंभ हो गया। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर सुबह से देर शाम तक पूजन, हवन और प्रवचन के कार्यक्रम चलते रहे और पूरा वातावरण भक्तिमय बना रहा।


 

शोक-मोह की वैक्सिन है शरणागति-

दोपहर में और फिर अपने संध्याकालीन प्रवचन में जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी ने कहा कि गुरु का काम सांसारिक मोह और शोक की बीमारी से शिष्य को दूर करना है और यह काम केवल और केवल भक्ति और शरणागति के द्वारा ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि शोक-मोह नामक बीमारी की वैक्सिन भक्ति और शरणागति है। गुरु वहीं वैक्सिन अपने शिष्यों को देता है। स्वामी रामनरेशाचार्य ने कहा कि धर्मगुरु का काम शिष्य के अज्ञान को हरना और उसके भीतर धर्म और आध्यात्म की ज्योति को जलाना है। आध्यात्मिक तत्व को प्रतिष्ठित करना है। हमारा काम यह बताना नहीं है कि नौकरी कैसे लगे और व्यापार में कैसे धन कमाया जाए। हम तो जीवन की जो सबसे बड़ी और अंतिम कामना है, उस मोक्ष के मार्ग को सिखाते और बतलाते हैं।

वेद मार्ग ही मानवता के लिए उपयोगी-

स्वामी रामनरेशाचार्य ने आगे कहा कि वेदों में वर्णित सिद्धांत मानवता के लिए सदा उपयोगी और प्रासंगिक हैं। उस पथ पर चलकर और उनको जीवन में उतार कर ही मानव शांति और समानता के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। स्वामी रामनरेशाचार्य ने कहा कि परमेश्वर स्वयं ही मानव के कल्याण के लिए वेदव्यास के रुप में धराधाम पर प्रगट हुए। जिन्होंने मानव समाज को महाभारत और पुराणों जैसे कालजयी ग्रंथ दिये और विश्व साहित्य में सबसे पुराने वेदों का विभाजन किया।

चातुर्मास व्रत में विधि विधान से पूजा-

चातुर्मास के आरंभ में शनिवार को रामनरेशाचार्य ने खण्डाका हाउस में सबसे पहले गणपति-गौरी, नवग्रह, सप्तऋषि और आचार्य परंपरा का वैदिक विधि-विधान से पूजन किया। इस अवसर पर देश के विभिन्न भागों से आए श्रीमठ के भक्तों ने जगदगुरु रामनरेशाचार्य का पूजन किया। रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल, जयपुर के अध्यक्ष गजानन अग्रवाल ने बताया कि स्वामी रामनरेशाचार्य के प्रवचन प्रतिदिन शाम छह बजे से शहर के बनीपार्क स्थित खंडाका हाउस में होंगे।

महाराजश्री का पूजन कार्यक्रम राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के वरीय प्राध्यापक डॉ. शास्त्री कोसलेन्द्र दास और वाराणसी से आए पण्डित उपेन्द्र मिश्र की देखरेख में संपन्न हुआ।    

Wednesday, July 21, 2021

जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज का चातुर्मास महोत्सव- 2021 जयपुर में

 

जयपुर में चातुर्मास महोत्सव गुरु पूर्णिमा से

डॉ. देवकुमार पुखराज

वाराणसी, 21 जुलाई।

रामभक्ति धारा को समर्पित रामानंद संप्रदाय के पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज का दिव्य चातुर्मास महोत्सव इस वर्ष जयपुर में होना सुनिश्चित हुआ है। स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य जी की साधना स्थली, काशी के पंचगंगा घाट स्थित श्रीमठ के वर्तमान आचार्य हैं, जिसे बैरागी वैष्णव संप्रदाय और सगुण एवम निर्गुण रामभक्ति परंपरा का मूल आचार्यपीठ माना जाता है। चातुर्मास व्रत अनुष्ठान का प्रारंभ गुरु पूर्णिमा यानि 24 जुलाई की पावन तिथि से होगा।

काशी के श्रीमठ पीठाधीश्वर प्रत्येक वर्ष नियम पूर्वक चातुर्मास व्रत का अनुष्ठान पूरे विधि-विधान से देश के अलग-अलग स्थानों पर करते रहे हैं। सभी प्रमुख तीर्थों और महानगरों में स्वामी रामनरेशाचार्यजी महाराज के चातुर्मास अनुष्ठान समायोजित हो चुके हैं। पिछले साल जबलपुर के जिलहरी घाट स्थित प्रेमानंद आश्रम में और उसके साल भर पहले यानि 2019 में माउंट आबू स्थित ऐतिहासिक रघुनाथ मंदिर प्रांगण में चातुर्मास व्रत का आयोजन हुआ था।

रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल, जयपुर के संयोजक गजानन अग्रवाल बताते हैं कि महाराजश्री जयपुर में तीसरी बार चातुर्मास करने जा रहे हैं। सन 2002 और 2009 में भी आचार्यश्री यहां चातुर्मास अनुष्ठान पूर्ण किये थे। यह तीसरा आयोजन है, जो सन 2021 में हो रहा है। 

जयपुर के बनीपार्क स्थित खण्डाका हाउस ( पीतल फैक्टरी के समीप) में चातुर्मास महापर्व का भव्य प्रारंभ गुरु पूर्णिमा की पावन तिथि से होगा। चातुर्मास्य महोत्सव के संयोजक नेमप्रकाश संतकुमार खण्डाका के मुताबिक सियारामजी की कृपा छाया और स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज के पावन सान्निध्य में चातुर्मास महापर्व के दौरान प्रत्येक दिन अनेक प्रकार के मांगलिक अनुष्ठान होगें। प्रातः काल महाराजश्री पोषडोपचार विधि से श्रीसीताराम जी का पूजन करते हैं। फिर देव-ऋर्षि पितृतर्पण का कार्य संपादित करते हैं। समष्टि हवन और फिर स्वाध्याय का क्रम नियमित रुप से चलता है। दोपहर में वैष्णवाराधन और विश्राम के पश्चात संध्या काल के कार्यक्रम होते हैं। जिसमें आगंतुक संत-महंत अपने प्रवचनों ने उपस्थित श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन करते हैं। फिर महाराजश्री का आशीर्वचन स्वरुप प्रवचन होता है।

जयपुर चातुर्मास समिति के प्रमुख स्तंभ पुष्कर उपाध्याय के मुताबिक स्वामीजी का जयपुर में 23 जुलाई 2021 को शुभागमन हो रहा है। 24 जुलाई, 2021 को प्रातः 9 बजे से सर्वावतारी श्रीरामलला जी के पूजन व पंचमहायज्ञ के उपरांत गुरुपूर्णिमा महोत्सव का शुभ कार्यक्रम प्रारंभ होगा। गुरुपूजन के पश्चात महाराजश्री के आशीर्वाद स्वरुप प्रसादी की भी व्यवस्था है।


 

डॉ. शास्त्री कोसलेन्द्र दास के अनुसार चातुर्मास काल में सावन की प्रत्येक सोमवारी को भगवान शिव का रुद्राभिषेक के अलावे गोस्वामी तुलसीदास की जयंती, संत सम्मेलन, श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, नंद महोत्सव, विनायक चतुर्थी, अनंत चतुर्दशी जैसे पर्व और महोत्सव धूमधाम से मनाये जाते हैं। चातुर्मास के दौरान बीच-बीच में राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी, राष्ट्रीय कवि सम्मेलन और विराट भंडारे का आयोजन होते रहता है। पूरे दो महीने तक अखंड श्रीरामनाम संकीर्तन से भी पूरा वातावरण भक्तिमय रहता है।

श्रीमठ, काशी से जुड़े उपेन्द्र मिश्र ने बताया कि आषाढ़ पूर्णिमा 24 जुलाई से लेकर भाद्र पूर्णिमा 20 सितम्बर, 2021 तक चलने वाले चातुर्मास अनुष्ठान के दौरान देश भर से सद्गृहस्थ भक्त, संत-श्रीमहंत और महामंडलेश्वर पधारेंगे। कोरोना संकट को देखते हुए सरकार की हर गाईडलाइंस खासकर साफ-सफाई और सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष प्रबंध रखा जाएगा। खण्डाका हाउस की विशालता, भव्यता, समुचित संसाधन और आवास की पर्याप्त सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए ही इस स्थान का चयन चातुर्मास महोत्सव के लिए किया गया है। परिसर का वातावरण कोरोना को दूर रखने में सहायक होगा, ऐसा व्यवस्थापकों का मानना है।

 

महाराजश्री स्वयं भी इस बात के लिए प्रयत्नशील हैं कि धार्मिक अनुष्ठानों खासकर भंडारे और प्रवचनों के दौरान अनावश्यक भीडभाड़ न हो। उनकी ओर से विशाल परिसर में सोशल डिस्टेंसिंग सहित कोरोना काल की जरुरी पाबंदियों का पालन अनिवार्य रुप से करने का निर्देश संतों- भक्तों को दिया गया है। ताकि चातुर्मास महापर्व का आध्यात्मिक स्वरूप हर स्थिति में बना रहे और किसी को किसी प्रकार का कष्ट न हो। महामारी को देखते हुए ही इस बार संध्याकालीन प्रवचन का लाइव प्रसारण फेसबुक और यू-ट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर किये जाने का प्रबंध किया गया है, ताकि श्रद्धालु और भक्त दूर-दराज अपने-अपने घरों में बैठकर भी सत्संग और सभी महत्वपूर्ण उत्सवों का आनंद ले सकें।