Monday, October 24, 2011

श्रीमठ संगीत महोत्सव संपन्न

सुरसरि के तट पर सुरों की सरिता
( श्रीमठ संगीत महोत्सव का समापन)

वाराणसी। उत्तर और दखिण की दो संगीत धाराओं का मिलन गुरुवार की रात्रि में सुरसरि के तट पर हुआ। कश्मीर की वादियों में अखरोट की खूंटियों के स्नेहित स्पर्श से मुखर होने वाले साज संतूर से पं. शिव प्रसाद शर्मा ने सुरों की सरिता प्रवाहित की। तो इससे पहले कर्नाटक के पं. जयतीर्थ मेवुंडी ने कंठ संगीत के माध्यम से काशी के श्रोताओं को कायल किया।
यह सब हुआ श्रीमठ संगीत समारोह की समापन निशा में। गोजागरी पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय संगीत समारोह की अंतिम निशा में पं. शिवकुमार शर्मा के संतूर का जादू श्रोताओं के सिर चढ़ कर बोला। खिली चांदनी में नहाई रात में जब सुकोमल वाद्य संतूर पर पं. शिवकुमार शर्मा की अंगुलियों का जादू श्रोताओं के लिए यादगार बन गया। उन्होंने राग कौशिक कान्हड़ा से वादन की शुरुआत की। तीन बंदिशें और अंत में पहाड़ी धुन बजाई। एक बंदिश रूपक ताल में जबकि शेष दो रचनाएं तीन ताल में निबद्ध थीं। इससे पूर्व कर्नाटक के किरानिया गायक पं. जयतीर्थ मेवुंडी का गायन हुआ। उन्होंने अपने दादागुरु पं. भीमसेन जोशी द्वारा विरचित रागकलाश्री की अवतारण की। बंदिश के बोल थे धन धन भाग सुहाग तेरे...। इससे पूर्व विलंबित एक ताल में आज सुवन आए और द्रुत तीन ताल में बहुत दिन बीते सुना कर श्रोताओं को अपने वश में कर लिया। राग मिश्र पीलू में उस्ताद अब्दुल करीब खां साहब की बंदिश सोच समझ नाराद में आलापचारी और चैनदारी दोनों ही निखर कर सामने आई। उनके साथ सारंगी पर पं. संतोष मिश्र ने लहरा दिया तो तानपुरा पर सरोज शर्मा, तबला पर किशन राम डोहकर और हारमोनियम पर आशोक झा ने संगत की। जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज के सानिध्य में संपूर्ण आयोजन अपनी पूर्णता को प्राप्त हुआ।

अब घाट-घाट पर बजाने का मजा मिला-पं.शिवकुमार मिश्र

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वाराणसी। अब तक काशी के कई मंदिरों में बजाया। गंगा महोत्सव में घाट पर बजाया। अब श्रीमठ के आयोजन में शामिल होने के बाद मैं कह सकता हूं कि मैंने काशी के घाट-घाट पर संतूरवादन का सुख लिया है। यह अभिव्यक्ति है पं. शिवकुमार शर्मा की जो गुरुवार को पंचगंगा घाट स्थित श्रीमठ की ओर से आयोजित संगीत समारोह में सहभागिता करने आए थे। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत की ओर युवाओं का रुझान कम नहीं हुआ है। स्पीक मैके के आयोजनों की तेजी से विस्तृत होती शृंखला इस बात का एक उदाहरण है। ऐसे कई उदाहरण हमारे आसपास भरे पड़े हैं। हां इतना अवश्य है कि युवा पीढ़ी में धीरज की कमी है। कुछ कलाकारों को छोड़ दें तो अधिकतर में यह अभाव खटकता है। रातों रात छा जाने की तमन्नाओं को रियलिटी शो ने और भी परवान चढ़ाया है।

सौजन्य- अमर उजाला

: Friday, October 14, 2011

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