झूलनोत्सव अंशी में अंश की विलिनता का महोत्सव- स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज
" अंशी में विलीन होकर ही अंश अपनी सम्पूर्णता को प्राप्त करता हैं "
जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज ( Jagadguru Ramanandacharya Swami Sri Ramnareshacharya ji Maharaj ) का परमकल्याणकामियों के लिये अमृतवर्षा:-
प्रसंग- भगवान का झूलनोत्सव
वैदिकशास्त्रों के अनुसार जीव अंश हैं तथा परमेश्वर अंशी हैं। अंशी में विलीन होकर ही अंश अपने वास्तविक परमस्वरूप को सम्प्राप्त करता हैं । अतएव अंश की सतत् क्रियायें अपने परमप्रयोजन की सिद्धि के लिये चलती रहती हैं ।
सभी जलधाराएँ अपने अंशी समुद्र को पाकर ही परमस्वरूप को प्राप्त करती हैं, इसके बिना उन्हें विश्राम कहाँ। कहाँ ऐसे ही घटा-आकाश, मठाकाशादि अपने अंशी महाकाश में विलीन होकर पूर्णता को प्राप्त करते हैं। , तभी तो आकाश में प्रक्षिप्त मिट्टी के टुकड़े पुनः पृथ्वी पर लौटकर ही अपने अंशी पृथ्वी में विलीन होकर परम शान्ति को प्राप्त करते हैं, यही तो अंशों का परमगन्तव्य एवं परम प्राप्तव्य हैं ।
इसी प्रकार से संसार की सभी जीवात्माएं सतत् अपने अंशीभूत परमेश्वर को खोजती रहती हैं अपने प्रयत्नों से । क्योंकि उनको परमस्वरूप, परमविश्राम, परमानन्द और दिव्यधाम की सम्प्राप्ति तो तभी होगी। इसी को परमेश्वर ने प्रकट होकर अपनी दिव्य क्रीड़ाओं का सम्पादन कर उसके अनुसरण के लिये सतत् अंशी अन्वेषण नाम से जीवों को परम मंगलमय अवसर प्रदान किया है।
इसी परमलाभ के सम्पादन के लिये प्रेमानन्द आश्रम में परम मंगलमय झूलनोत्सव समायोजित हैं, जिसका पूर्ण निष्ठा-तत्परता तथा प्रेम के साथ परम कल्याणकामी आस्वादन कर रहें हैं ।
प्रतिदिन - झूलन तथा सम्पूर्ण परिसर का उत्कर्ष पूर्ण श्रृंगार, परमप्रभु श्रीरामलला जी का वैदिक गरिमा के साथ झूलन पर विराजना, साविधि उनका पूजन, सुप्रतिष्ठित गायकों द्वारा झूलनगीतों का गायन, भक्तों एवं सन्तों द्वारा परमप्रभु को परमप्रेम एवं मर्यादा से झूलाना, उत्तर पूजन, महाआरती तथा परमप्रभु का अपने दिव्यमहल में पधारना आदि मांगलिक क्रम संपादित होता हैं । इसके अनन्तर दिव्यधाम के समान सभी कल्याणकामी समानरूप से परमप्रभु का (झूलनबिहारी सरकार का ) प्रसाद ग्रहण करते हैं ।
परम कल्याणकामियों को अपने सर्वश्रेष्ठ मानव जीवन की परमधन्यता का अवबोध - निरन्तरता के साथ प्रवाहित होने लगता हैं, ऐसा हो भी क्यों नहीं , अब तो उन्होंने अपने अंशी को पाया ही नहीं अपितु उसे झुलाया भी। ये ही तो उन्हें परमाभीष्ट था ।
झूलन महोत्सव में प्रेमानंद आश्रम के श्रीमहंत नागा श्यामदास जी, व्यास राघवाचार्य जी महाराज और अयोध्या से पधारे मानसकेसरी जी की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। जय सियाराम
" अंशी में विलीन होकर ही अंश अपनी सम्पूर्णता को प्राप्त करता हैं "
जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज ( Jagadguru Ramanandacharya Swami Sri Ramnareshacharya ji Maharaj ) का परमकल्याणकामियों के लिये अमृतवर्षा:-
प्रसंग- भगवान का झूलनोत्सव
Jhulan Mahotsav by Swami Ramnareshacharya |
सभी जलधाराएँ अपने अंशी समुद्र को पाकर ही परमस्वरूप को प्राप्त करती हैं, इसके बिना उन्हें विश्राम कहाँ। कहाँ ऐसे ही घटा-आकाश, मठाकाशादि अपने अंशी महाकाश में विलीन होकर पूर्णता को प्राप्त करते हैं। , तभी तो आकाश में प्रक्षिप्त मिट्टी के टुकड़े पुनः पृथ्वी पर लौटकर ही अपने अंशी पृथ्वी में विलीन होकर परम शान्ति को प्राप्त करते हैं, यही तो अंशों का परमगन्तव्य एवं परम प्राप्तव्य हैं ।
Bhagwan on Jhulan |
इसी प्रकार से संसार की सभी जीवात्माएं सतत् अपने अंशीभूत परमेश्वर को खोजती रहती हैं अपने प्रयत्नों से । क्योंकि उनको परमस्वरूप, परमविश्राम, परमानन्द और दिव्यधाम की सम्प्राप्ति तो तभी होगी। इसी को परमेश्वर ने प्रकट होकर अपनी दिव्य क्रीड़ाओं का सम्पादन कर उसके अनुसरण के लिये सतत् अंशी अन्वेषण नाम से जीवों को परम मंगलमय अवसर प्रदान किया है।
इसी परमलाभ के सम्पादन के लिये प्रेमानन्द आश्रम में परम मंगलमय झूलनोत्सव समायोजित हैं, जिसका पूर्ण निष्ठा-तत्परता तथा प्रेम के साथ परम कल्याणकामी आस्वादन कर रहें हैं ।
प्रतिदिन - झूलन तथा सम्पूर्ण परिसर का उत्कर्ष पूर्ण श्रृंगार, परमप्रभु श्रीरामलला जी का वैदिक गरिमा के साथ झूलन पर विराजना, साविधि उनका पूजन, सुप्रतिष्ठित गायकों द्वारा झूलनगीतों का गायन, भक्तों एवं सन्तों द्वारा परमप्रभु को परमप्रेम एवं मर्यादा से झूलाना, उत्तर पूजन, महाआरती तथा परमप्रभु का अपने दिव्यमहल में पधारना आदि मांगलिक क्रम संपादित होता हैं । इसके अनन्तर दिव्यधाम के समान सभी कल्याणकामी समानरूप से परमप्रभु का (झूलनबिहारी सरकार का ) प्रसाद ग्रहण करते हैं ।
परम कल्याणकामियों को अपने सर्वश्रेष्ठ मानव जीवन की परमधन्यता का अवबोध - निरन्तरता के साथ प्रवाहित होने लगता हैं, ऐसा हो भी क्यों नहीं , अब तो उन्होंने अपने अंशी को पाया ही नहीं अपितु उसे झुलाया भी। ये ही तो उन्हें परमाभीष्ट था ।
झूलन महोत्सव में प्रेमानंद आश्रम के श्रीमहंत नागा श्यामदास जी, व्यास राघवाचार्य जी महाराज और अयोध्या से पधारे मानसकेसरी जी की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। जय सियाराम
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