Sunday, September 16, 2012

जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी का चातुर्मास महोत्सव


जगदगुरु रामानन्दाचार्य पद पर प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज
के सान्निध्य में प्रयाग अर्थात इलाहाबाद में दिनांक ३ जुलाई २०१२ आषाढ़ पूर्णिमा से दिव्य चातुर्मास महोत्सव जारी है।इस दौरान कई तरह की मांगलिक प्रवृतियां समायोजित हो रही हैं। पूरे अनुष्ठान का विधिवत समापन ३० सितम्बर २०१२ को भाद्र पूर्णिमा के दिन होगा।
उल्लेखनीय है कि गंगा, यमुना के संगम की पावन धर्म नगरी प्रयाग आदि जगदगुरु रामानन्दाचार्य की जन्मस्थली है, अत: यहां जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज के चातुर्मास का अति विशेष महत्व है। तीर्थराज प्रयाग के ठाकुर हरित माधव मंदिर, ४५/४२, मोरी दारागंज की पावन स्थली पर जिसे जगदगुरु रामानंदाचार्य जी की प्राकट्य स्थली के नाम से जाना जाता है,उसी पावन स्थान पर स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज अपनी साधु-संत मंडली के साथ ९० दिनों तक विराजमान रहेंगे। इन नब्बे दिनों के दौरान अनेक धार्मिक कार्यक्रम नियमित रूप से होंगे, तो कुछ विशेष व दुर्लभ धार्मिक आयोजन भी होंगे। हिन्दू संतों में चातुर्मास की परंपरा का एक तरह से लोप हो गया था, जिसे स्वामी रामनरेशाचार्य जी ने एक तरह से पुनजीर्वित किया है, जिसे वे पूरे भक्ति, भाव निरंतर मनाते आ रहे हैं। इस दौरान वे संतों के साथ-साथ आम जनों को भी सहज उपलब्ध होते हैं, सुबह से देर रात तक भक्तों की शंकाओं का समाधान करते, उन्हें सच्ची रामभक्ति का मार्ग बताते जगदगुरु एक अदभुत, व्यापक व दुर्लभ छवि प्रस्तुत करते हैं। पिछले वर्ष आपने इन्दौर में चातुर्मास किया था और उसके पहले वर्ष सूरत में, वे भारत में घूम-घूमकर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में रामभक्ति की अलख जगाते रहे हैं। उनके चातुर्मास में देश भर से विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान भी जुटते रहे हैं।इसी कड़ी में विद्वतजन गोष्ठी और धर्माचार्य सम्मेलन, दलित सम्मेलन सरीखे कार्यक्रम भी हुए। बीते 2 सितम्बर को पत्रकार ज्ञानेश उपाध्याय द्वारा लिखित और संपादित पुस्तक दुख क्यों होता है का लोकार्पण भी हुआ। लोकार्पण समारोह के दौरान देश के जाने-माने पत्रकार रामबहादुर राय और प्रसिद्ध समाचार वाचक डॉ. बलदेवानंद सागर की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। दिनांक 16 सितम्बर को प्रयाग के संगम तट पर महाराजश्री के सानिध्य में श्रीमठ परिवार की ओर से महाभंडारे का आयोजन किया गया। इस मौके पर भव्य आरती और पूजन भी हुआ। आचार्यश्री ने संगम तट पर तीर्थ पुरोहितों और नाविको को दान-दक्षिणा भी प्रदान किया। जगदगुरु को अपने बीच पाकर वे अपने को गौरवान्वित महसूस करते नजर आए.

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