हैदराबाद में जीवन विद्या से जुड़े हुए देशभर के २३ केन्द्रों से आये हुए लगभग २५० लोग हैदराबाद के पास तुपरानकसबे के अभ्यास स्कूल में एकत्र हुए. जीवन विद्या का दक्षिण भारत में यह पहला और देश का १४ वां राष्ट्रीयसम्मलेन एक से चार अक्टूबर को संपन्न हुआ, जिसमे जीवनविद्या के प्रबोधन, लोकव्यापीकरण और प्रचार में लगेतकरीबन २५० लोग शामिल हुए. दक्षिण भारत के लगभग सभी प्रमुख शहर के प्रतिभागी इसमें उपस्थित थे.
पहले दिन उदघाटन सत्र में श्री ए नागराज ने इस अनुसन्धान की आवशकता पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा किपृथ्वी पर मानव ज्ञानी, विज्ञानी और अज्ञानी के रूप में है. मानव ने जाने अनजाने पृथ्वी को ना रहने लायक बनादिया है. पृथ्वी को रहने योग्य बनाना ही इस अनुसन्धान का उद्देश है. धरती पर उष्मा बढने के कारण ही धरतीबीमार होती जा रही है. इस पर शोध अनुसन्धान जरुरी है. इसके लिए मानव को न्याय पूर्वक जीना होगा और स्वयंमें समझ कर जीना होगा, यही समस्याओं का समाधान है. उत्पादन कार्य में संतुलन और संवेदनाओं में नियंत्रण सेही अपराध में अंकुश लग सकता है. प्रयोजन के सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि कल्पनाशीलता और करम स्वतंत्रताहर मानव के पास हैं. इसके आधार पर हर मानव समझदार हो सकता है और व्यवस्था में जी सकता है. उन्होंनेनर-नारी में समानता और गरीबी-अमीरी में संतुलन पर जोर दिया. इसी दिन दुसरे सत्र में मुंबई, भोपाल, इंदौर औरपुणे के प्रतिनिधियो ने जीवन विद्या आधारित अभियान की समीक्षा और भावी दिशा पर विचार व्यक्त किये. मुंबई सेआये डॉ. सुरेन्द्र पाठक ने बताया की मुंबई के सोमैया विद्या विहार के विभिन्न कालेजों के ६०० शिक्षको के २४ छःदिवसीय शिविर विगत दो वर्षों में संपन्न हुए हैं तथा मुंबई विश्व विद्यालय के एक पाठ्यक्रम में जीवन विद्या की एकयूनिट शामिल की गई है. मुंबई के आसपास के शहरों में भी परिचय शिविर आयोजित के जा रहे है. भोपाल से आईश्रीमती आतिषी ने मानवस्थली केंद्र की गतिविधियों से अवगत कराया. इंदौर के श्री अजय दाहिमा और पुणे केश्रीराम नर्सिम्हम ने वहां चल रही गतिविधियों को बताते हुए यह भी जानकारी दी की उत्तरप्रदेश तकनीकीविश्वविद्यालय ने अपने सभी ५१२ कालेजो में 'वेल्यु एजूकेशन एंड प्रोफेशनल एथिक्स' जीवन विद्या आधारितफाउनडेशन कोर्से लागु किया है जिसकी टेक्स्ट बुक भी छप गई है. और विधायार्धियो के लिए वेबसाईट बनाकर भीपाठ्य सामग्री उपलब्ध करा दी गई है. अगले सत्र में रायपुर, ग्वालियर, बस्तर, दिल्ली,
बांदा, चित्रकूट आदि केंद्र ने अपनी प्रगति से अवगत कराया. रायपुर से आये श्री अंजनी भाई ने बताया की अभ्भुदयसंस्थान में छत्तीसगड़ राज्य के १०० शिक्षको का छः महीने का अध्ययन शिविर चल रहा है ये शिक्षक २० दिनप्रशिक्षण लेते है और १० दिन अपने-अपने क्षेत्रों में शिविर लेते हैं. राज्य में दस हजार से भी ज्यादा शिक्षको केशिविर हो चुके है. हाल ही में २९ सितम्बर को राज्य के मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह ने अभ्भुदय संस्थान का अवलोकनकिया और पूज्य बाबा नागराज जी से अभियान पर चर्चा की और वहां पर प्रशिक्षण ले रहे शिक्षको को संबोधितकिया तथा उनसे प्रशिक्षण के दौरान हुए अनुभवों को भी सुना. इसी अवसर पर आये मीडिया वालो को
मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह ने बताया की राज्य के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस आधिकारियो को भी एकहफ्ते के प्रशिक्षण के लिए अभ्भुदय संस्थान भेजा जायेगा.
दूसरे दिन मानवीय शिक्षा संस्कार व्यवस्था, लोक शिक्षा योजना, शिक्षा संस्कार योजना पर बाबा नागराज जी नेकहा कि हर आदमी हर आयु में समझदार होने कि क्षमता रखता है. वर्त्तमान प्रणाली में पैसा बनाना ही समझदारी
मान लिया गया है. मानव चेतना को सही ना पहचाने के कारण यह गलती हुई हैं. इसके लिए उन्होंने मध्यस्थ दर्शनके आलोक में निकाले गए निष्कर्षों के बारे में बताया. इसमें मानव व्यवहार दर्शन, मानव कर्म दर्शन, अभ्यासदर्शन और अनुभव दर्शन कि व्याख्या की. साथ साथ उन्होंने कहा कि चारों अवस्थाओं में संतुलन से जीने कि समझही विचार हैं. यहाँ पर उन्होंने भोगोन्मादी समाजशास्त्र कि जगह पर व्यवहारवादी समाजशात्र, लाभोंमादी अर्थशास्त्रकी जगह पर आवर्तनशील अर्थशास्त्र और कमोंमादी मनोविज्ञान के स्थान पर संचेतनावादी मनोविज्ञान को शिक्षाकी वस्तु बनाये जाने की आवश्यकता को निरुपित किया. दूसरे दिन ही बिजनौर, कानपुर, जयपुर, हैदराबाद, बंगलोर, चैने, कोचीन, हरीद्वार आदि केन्द्रों के प्रतिनिधियों ने अपने क्षेत्रो में चल रही गतिविधियों से अवगतकराया. इसी दिन एक सत्र श्री साधन भट्टाचार्य जी के संयोजकत्व में परिवार मूलक स्वराज व्यवस्था पर श्री प्रवीणसिंह, अजय दायमा, डॉ. प्रदीप रामचराल्ला और दूसरा सत्र डॉ. नव ज्योति सिंह के संयोजकत्व शोध, अनुसन्धान, अवर्तानशील कृषि पर हुआ जिसमें बांदा के श्री प्रेम सिंह, आइआइआइटी के शोधार्थी हर्ष सत्या, म्रदु आदि ने अपनेविचार व्यक्त किये.
तीसरे दिन श्री नागराज जी ने कहा कि अस्तित्व में व्यापक वस्तु ही ऊर्जा हैं. पदार्थावस्था में भौतिक-रासायनिक
क्रियायें ऊर्जा सम्पनता के कारण से हैं. ज्ञान सम्पनता होना ही सहस्तित्व में जीना है. अभी तक आहार, आवास, अलंकार, दूरगमन, दूरदर्शन, दूरश्रवण पर है अध्यन हुआ है. सहस्तित्व को पकडा नहीं है इसलिए मानव काअध्ययन नहीं हुआ. सहस्तित्व को समझने और उस में जीने से एकरूपता बनती है. जीवन एक गठन
पूर्ण परमाणु है, उसमे दस क्रियाएँ होती हैं. अभी तक मनुष्य साढ़े चार क्रियाओं पर जीता रहा है. इसी से व्यक्तिवादऔर समुदायवाद का जन्म हुआ. और इसी से संघर्ष और शोषण युद्ध होता है इसी कारण चयन विधि गलत हुई. संघर्ष करने वालों का ही चुनाव होता है और वह पैसा पैदा करता है. मानवीय समस्यओं का समाधान सहस्तित्वविधि से ही होगा. सहस्तित्व का ज्ञान होना ही लक्ष्य है. इसका ज्ञान जीवन का अध्ययन और मानवीय आचरण केअध्ययन और अस्तित्व के अध्ययन से ही पूरा होगा. इस अध्ययन से समझना जीने देना और जीने का सूत्र समझमें आता है. बाबा ने समझ के रूप में शरीर पोषण-संरक्षण के लिए आहार, आवास, अलंकार, दूरगमन, दूरदर्शन, दूरश्रवण छह आकांक्षाओं को बताया है.
जीवन के सम्बन्ध में न्याय, धर्म, सत्य को समझना जरुरी है. प्रकृति के संबंधन में नियम, नियंत्रण, संतुलन के रूपमें जीना समझना जरुरी है. सार रूप में सार्वाभोम व्यवस्था के लिए प्रकृति कि चारों अवस्थाओं में सहस्तित्व, परस्पर पूरकता और संतुलन को समझना जरुरी है. इसी दिन एक सत्र में श्री रणसिंह, श्री अशोक सिरोही ने जनअभियान के सन्दर्भ में समाधान के लिए प्रयास पर अपने विचार व्यक्त किये. एक अन्य सत्र में आईआईआईटीनिदेशक डॉ. राजीव सांगल, श्री सोम देव त्यागी, म्रदु, सुनीता पाठक,श्री भानुप्रताप आदि ने लोक शिक्षा और शिक्षासंस्कार व्यवस्था पर चर्चा को आगे बढाया. श्री सोम देव त्यागी ने रायपुर में हो रहे प्रयोगों पर विस्तार से प्रकाशडाला.
चोथे दिन सार्वाभोम व्यवस्था पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अध्ययन पूर्वक न्याय और व्यवस्था कोसमझा जा सकता है. और समझकर प्रमाणित किया जा सकता हैं. सार्वाभोम व्यवस्था कि समझ से ही मानव जीवचेतना से मानव चेतना में संक्रमित होकर व्यवस्था में भागीदारी का निर्वाह जिम्मेदारी पूर्वक कर सकता है. अभीतक मानव कार्य कलाप सुविधा संग्रह तक ही है. मानव न्यायं धर्म सत्य को प्रमाणित करने में असफल रहा है.
समझदारीपूर्वक मानव समाधा, समृधिपूर्वक जीकर सुखी व् भय मुक्त हो सकता है इसके लिए धरती पर मानव
मानसिकता से संपन्न व प्रमाणित व्यतियों द्वारा शिक्षा संस्कार के द्वारा मानव मानसिता से संपन्न पीड़ी तैयार होसकती है. जो व्यवस्था पूर्वक जीकर मानवीयता व सहस्तित्व को प्रमाणित करेगी. इस अंतिम दिन आज की दिशाएवं समाधान की दिशा सत्र में डॉ. प्रदीप रामचर्ल्ला, आभ्याशा स्कूल के संस्थापक श्री विनायक कल्लेतला, श्रीराजुल अस्थाना, श्री सोमदेव, प्रोफेसर राजीव सांगल ने अपने विचार व्यक्त किये.
१४वें रास्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन आई आई आई टी के डॉ राजीव सांगल, डॉ. प्रदीप रामचर्ल्ला, श्री गणेशबागडिया, श्री रनसिंह आर्य, श्री साधन, श्री सोम देव, श्री श्रीराम नरसिम्हन, सुमन, विनायक और आई आई आई टीके छात्रो ने आभ्याशा स्कूल के प्रमुख श्री विनायक कल्लेतला और श्री प्रसाद राव के सहयोग से संपन्न किया.
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