Saturday, November 29, 2014

जनकपुर में श्रीराम-जानकी विवाह संपन्न

नेपाल के जनकपुर धाम स्थित महाराज विदेह की नगरी में उनकी लाड़ली सीताजी का शादी विवाह पंचमी के दिन पूरे सनातन रीति-रिवाज के साथ धूमधाम से 27 नवंबर को संपन्न हुई। एक मोटे अनुमान के मुताबिक भारत, नेपाल और दुनिया के कई देशों से आए करीब 12 लाख लोगों ने इसबार श्रीराम-जानकी विवाह के मंगलमय अनुष्ठान में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी और अपने जीवन को धन्य बनाया।  सगुण एवम निर्गुण रामभक्ति परंपरा के एकमात्र मूल आचार्यपीठ श्रीमठ,पंचगंगा घाट, काशी के वर्तमान आचार्य और जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्टित स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज इस बार आयोजन के मुख्य समन्वयक थे। रामभक्तों के लिए यह अतीव गौरव और प्रसन्नता की बात रही कि कई वर्षों बाद आचार्यश्री जनकपुर पधारे थे और वो भी संतो-भक्तों की बड़ी मंडली लेकर।
                      जनकपुर का श्रीराम- जानकी विवाह वैसे भी परंपरा और ऐतिहासिकता का जीवंत चित्र प्रस्तुत करता है। इस दौरान वे सारे मांगलिक कार्य पूर्ण विधि-विधान और लोक रीति से संपादित होते हैं, जो मिथिला की संस्कृति में आदि काल से प्रचलित रहे हैं। इस बार भी अयोध्या से चलकर काशी और बक्सर जैसे स्थानों से होते हुए बारात जनकपुर तक आई थी। बारात का वैसे ही स्वागत हुआ जैसा कभी जनकजी ने किया होगा।
                     ऐतिहासिक राममंदिर और जानकी मंदिर में विवाह की सभी रस्में पूरी की गयी। परंपरानुसार मंगलवार यानि 26 नवंबर को तिलकोत्सव हुआ। बु्धवार को पूजा मटकोर हुआ और अगले दिन यानि गुरुवार-27 नवंबर,2014 को शादी हुई। शुक्रवार को भतखई के बाद बारात की विदाई हो गयी।
                
                      

 

Monday, November 3, 2014

भगवान विष्णु के चार महीने तक सोने- जगने का रहस्य

चातुर्मास व्रत क्यों और कैसे 

वर्षा काल के चार महीनों को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। इस दौरान संत-महात्मा यात्रा करने से बचते हैं और एक ही जगह रुक जप-तप करते हैं।  माना जाता है कि देवशयनी एकादशी के दिन सभी देवता और  उनके अधिपति भगवान विष्णु सो जाते हैं। फिर चार माह बाद कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जगते हैं। उस दिन को देवोत्थान एकादशी और हरिप्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस चार माह की अवधि मे कोई विवाह, नया निर्माण , कारोबार और शुभ-मंगल कार्य आरंभ नहीं होता।
swami Ramnareshacharya


श्रद्धालु जन सोचते होंगे कि देवता भी क्या सचमुच सोते हैं। पर वे एकादशी के दिन सुबह तड़के ही विष्णु और उनके सहयोगी देवताओं का पूजन करने के बाद शंख- घंटा घड़ियाल बजाने लगते हैं। पारंपरिक आरती- कीर्तन के साथ वे गाने लगते हैं- उठो देवा, बैठो देवा, अंगुरिया चटकाओं देवा।‘इस आह्रान में भी संदेश छुपा है।

श्रीमठ, पंचगंगा घाट,काशी  के वर्तमान पीठाधीश्वर और रामानंद संप्रदाय के प्रधान आचार्य जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी  के अनुसार वर्षा के दिनों में सूर्य की स्थिति और ऋतु प्रभाव बताने, उस प्रभाव से अपना सामंजस्य बिठाने का संदेश छिपा है। वैदिक वांग्मय के अनुसार सूर्य सबसे बड़े देवता हैं। वर्षा काल में अधिकांश समय सूर्य देवता बादलों में छिपे रहते हैं। इस वजह से पृथ्वी पर कीट-पतंगों की बहुतायत हो जाती है। ऋषियों ने कहा कि इन चार महीनों में विष्णु सो जाते हैं। यह अवधि आहार विहार के मामले में खास सावधानी रखने तक ही सीमित नहीं है। एक और कथा बताती है कि एक बार लक्ष्मी जी ने विष्णु भगवान से कहा कि आप विश्राम क्यों नहीं करते। कहते हैं कि लक्ष्मी जी के कहने पर ही भगवान विष्णु ने बरसात को अपने विश्राम के लिए चुना।

इसमें खास शासन अनुशासन भी है। इसका उद्देश्य वर्षा के दिनों में होने वाले प्रकृति परिवर्तनों के कारण फैलने वाली मौसमी बीमारियों से सुरक्षा भी है। निजी जीवन में स्वास्थ्य संतुलन का ध्यान रखने के साथ यह चार माह की अवधि साधु- संतों के लिए भी विशेष दायित्वों का तकाजा लेकर आती है। घूम-घूम कर धर्म अध्यात्म की शिक्षा देने, लोक कल्याण की गतिविधियों को चलाते रहने वाले साधु संत इन दिनों एक ही जगह पर रुक कर साधना शिक्षण करते हैं।

 श्रीमठ पीठाधीश्वर स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी नियमित तौर पर हर साल चातुर्मास व्रत का अनुष्ठान पूर्ण विधि-विधान और शास्त्रीय गरिमा के अनुसार करते हैं। वे विभिन्न शहरों में हरेक साल इस अनुष्ठान को करते हैं। सुबह से शाम तक इस दौरान धार्मिक प्रवृतियों का समायोजन किया जाता है। इस मौसम में पड़ने वाले व्रत-त्यौहार, जैसे- सावन की सोमवारी, तुलसीदास जयंती, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, नंद महोत्सव और झूलनोत्सव जैसे त्योहार पूरी श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं।

स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज के पावन सान्निध्य में संत सम्मेलन, विद्धत संगोष्ठी, दलित सम्मेलन जैसे कार्यक्रम चातुर्मास महोत्सव के दौरान होते हैं। शाम की सभा में भजन-प्रवचन का सिलसिला निर्वाध रुप से चलता है। रामानंद संप्रदाय से जुड़े संत-श्रीमहंत और दूसरे महात्मा गण इस दौरान एकत्रित होते हैंं और संप्रदाय की एकता को लेकर योजनाएं बनाते हैं।

भगवान विष्णु को क्यों प्रिय हैं तुलसी

तुलसी के पत्ते से भगवान विष्णु की पूजा का पुण्य

पुराणों में बताया गया है भगवान विष्णु को सबसे अधिक प्रिय तुलसी का पत्ता है। जिस घर में तुलसी की पूजा होती है और नियमित तुलसी को धूप-दीप दिखाया जाता है उस घर में भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहती है।

शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि भगवान विष्णु की पूजा में अगर तुलसी पत्ते के साथ भोग अर्पित नहीं किया जाता है तो भगवान उस भोग को स्वीकार नहीं करते।
lord Vishnu


इसका कारण यह है कि भगवान विष्णु ने जलंधर नामक असुर की पत्नी वृंदा का सतीत्व व्रत से विमुख करके जलंधर का वध करने में सहयोग किया था। वृंदा को जब भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर होने कि शाप दे दिया। इसीलिए शालिग्राम रुप में भगवान विष्णु की पूजा होती है। लेकिन देवताओं के मनाने पर वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप से मुक्त कर दिया और प्राण त्याग दिया।

भगवान विष्णु ने उसी समय वृंदा को वरदान दिया कि तुम मुझे सबसे प्रिय रहोगी और बिना तुम्हारे मैं भोजन भी ग्रहण नहीं करुंगा। वृंदा तुलसी के पौधे के रुप में प्रकट हुई और भगवान विष्णु ने तुलसी को अपने मस्तक पर स्थान दिया।