तुलसी के पत्ते से भगवान विष्णु की पूजा का पुण्य
पुराणों में बताया गया है भगवान विष्णु को सबसे अधिक प्रिय तुलसी का पत्ता है। जिस घर में तुलसी की पूजा होती है और नियमित तुलसी को धूप-दीप दिखाया जाता है उस घर में भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहती है।
शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि भगवान विष्णु की पूजा में अगर तुलसी पत्ते के साथ भोग अर्पित नहीं किया जाता है तो भगवान उस भोग को स्वीकार नहीं करते।
इसका कारण यह है कि भगवान विष्णु ने जलंधर नामक असुर की पत्नी वृंदा का सतीत्व व्रत से विमुख करके जलंधर का वध करने में सहयोग किया था। वृंदा को जब भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर होने कि शाप दे दिया। इसीलिए शालिग्राम रुप में भगवान विष्णु की पूजा होती है। लेकिन देवताओं के मनाने पर वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप से मुक्त कर दिया और प्राण त्याग दिया।
भगवान विष्णु ने उसी समय वृंदा को वरदान दिया कि तुम मुझे सबसे प्रिय रहोगी और बिना तुम्हारे मैं भोजन भी ग्रहण नहीं करुंगा। वृंदा तुलसी के पौधे के रुप में प्रकट हुई और भगवान विष्णु ने तुलसी को अपने मस्तक पर स्थान दिया।
पुराणों में बताया गया है भगवान विष्णु को सबसे अधिक प्रिय तुलसी का पत्ता है। जिस घर में तुलसी की पूजा होती है और नियमित तुलसी को धूप-दीप दिखाया जाता है उस घर में भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहती है।
शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि भगवान विष्णु की पूजा में अगर तुलसी पत्ते के साथ भोग अर्पित नहीं किया जाता है तो भगवान उस भोग को स्वीकार नहीं करते।
lord Vishnu |
इसका कारण यह है कि भगवान विष्णु ने जलंधर नामक असुर की पत्नी वृंदा का सतीत्व व्रत से विमुख करके जलंधर का वध करने में सहयोग किया था। वृंदा को जब भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर होने कि शाप दे दिया। इसीलिए शालिग्राम रुप में भगवान विष्णु की पूजा होती है। लेकिन देवताओं के मनाने पर वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप से मुक्त कर दिया और प्राण त्याग दिया।
भगवान विष्णु ने उसी समय वृंदा को वरदान दिया कि तुम मुझे सबसे प्रिय रहोगी और बिना तुम्हारे मैं भोजन भी ग्रहण नहीं करुंगा। वृंदा तुलसी के पौधे के रुप में प्रकट हुई और भगवान विष्णु ने तुलसी को अपने मस्तक पर स्थान दिया।
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