* देवकुमार पुखराज
Brahmachari Atmabodhanand |
हरिद्वार
के मातृ
सदन के सन्त ब्रह्मचारी
आत्मबोधानन्द जी ने
गंगा
में अवैध
और
अनधिकृत खनन के दोषी के विरुद्ध
कार्रवाई और अवैध खनन सामग्री
को खरीदने वाले स्टोन क्रशर
को बन्द करने के संकल्प को
लेकर 28
नवंबर
से तपस्या
(
सत्याग्रह
)
शुरू
किया था,
जो
आज तीसरे दिन भी जारी है।
ज्ञात
हो कि
राज्य खनन नियमावाली,
केन्द्रीय
पर्यावरण मन्त्रालय नई दिल्ली
की अधिसूचना 2006
और
राज्य स्तरीय या केन्द्रीय
स्तर दोनों के तरफ से कानून
सम्मत खनन की परिभाषा यही दी
जाती है कि जो सामग्री बरसात
के दिनों में धारा से आकर नदी
के मध्य भाग में इकट्ठा हो
जाता है उसका केवल 90
प्रतिशत
भाग ही उठाया जायेगा जिसकी
पूर्ति पुनः स्वतः बरसात के
दिनों में हो जायेगी। नदी के
कुल चैड़ाई का चैथाई भाग दोनों
किनारों पर सुरक्षित छोड़नले
का प्रावधान
है।
यह भी प्रावधान है कि
जलस्तर से नीचे भी खनन नहीं
हो सकता।
गंगा
में हरिद्वार में जो खनन अब
तक हुआ है और अभी हो रहा है वह
मानकों/नियमों
का उल्लंघन करके हो रहा है।
पर्यावरण मंत्रालय,
नई
दिल्ली की रिपोर्ट दिनांक 27
मार्च
2015
में
स्पष्ट वर्णित है कि
हरिद्वार
में भीमगोड़ा बराज बनने के
बाद बोल्डर और पत्थरों की
प्रतिपूर्ति सम्भव नहीं है,
क्यों
कि उपर से पत्थर नहीं आते हैं।
वहीं रेत की मात्रा और इकट्ठा
होने के स्थान के चिन्हीकरण
को लेकर किसी राष्ट्रीय संस्थान
से आकलन करवाने की संस्तुति
की गई है और उत्तराखण्ड सरकार
को समस्त अवैध खनन को बन्द
करने को कहा गया है।
swami Shivanand |
केन्द्रीय
प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड,
नई
दिल्ली और उत्तराखण्ड प्रदूषण
नियंत्रण
बोर्ड देहरादून ने भी जिलाधिकारी
हरिद्वार को खनन बन्द करने
का निर्देश दिया है,
परन्तु
जिलाधिकारी उसका अनुपालन नही
कर रहे हैं
और अखबारों में बयान दे रहे
है कि खनन पर रोक नहीं है।
इसके
अलावे
राष्ट्रीय हरित अधिकरण नई
दिल्ली ने अपने आदेश दिनांक
4
फरवरी
में स्पष्ट कहा है कि केवल
एकत्रित रेत ही उठाया जा सकता
है। केन्द्रीय पर्यावरण नई
दिल्ली ने रेत की परिभाषा ६
मिली मीटर से २ मिली मीटर
के रूप में दिया है। अपने आदेश
दिनांक 15
अप्रैल
2015
में
राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने
जिलाधिकारी हरिद्वार को अवैध
और
अनधिकृत खनन बन्द करने को कहा
है परन्तु जिलाधिकारी हरिद्वार
इन आदेशों की भी अवमानना कर
रहे हैं।
उल्लेखनीय
है कि विगत वर्ष पहले 2
जून
को तत्कालीन मुख्य सचिव जो
अब
भी
मुख्यमन्त्री रावत जी के
प्रधान मुख्य सचिव भी हैं,
मातृ
सदन आये थे
और
उन्होंने मातृ सदन के तथ्यो
से
सहमत होते
हुए
कहा कि रायवाला से भोगपुर के
क्षेत्र में जो कुछ बोल्डर/पत्थर
है वह जमीन के नीचे है और उसका
रहना नदी
के लिए आवश्यक
है। तथ्य यह भी है कि रायवाला
से भोगपुर तक रेत धारा के बीच
में नहीं ठहरता है बल्कि नीचे
जाकर ही रुकता है जिसका अध्ययन
करवाकर निर्णय लिया जा सकता
है। दिनांक 7
जून
को स्वयं मुख्यमन्त्री श्री
हरीश रावत जी मातृ सदन आये और
इसी आश्वासन पर तपस्या को
समाप्त करवाया था ।
परन्तु
यह
कडवा सच है कि गंगा
किनारे लगे दो दर्जन से ज्यादा
स्टोन क्रशर चल
रहे है और
गगा का
सीना छलनी कर ही अपना व्यवसाय
कर रहे है। आज
तक इन स्टोन क्रशरों के विरुद्ध
कोई कार्रवाई तक नहीं हुइ है।
इनके
द्वारा चाहरदीवारी
के अन्दर तालाब बनाकर अवैध
माल का भण्डारण किया जाता है
ताकि चोरी के माल को दबाया जा
सके। प्रशासन को सूचना देने
के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं
की जाती है। ऐसी परिस्थित में
मातृ सदन के पास सत्य को उजागर
करने और माँ गंगा की रक्षा
करने के लिये तपस्या/सत्याग्रह
के अलावा और कोई रास्ता शेष
नहीं रह जाता।
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