श्रीराम मंदिर के संकल्पक जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज ने मंदिर निर्माण के उद्देश्यों पर समय-समय पर प्रकाश डाला है..आचार्यश्री के अनुसार अनादिकाल से अपने सम्पूर्ण विकास
के लिए मानवता को श्रीरामीय भावों की परमापेक्षा है,इसका कोई भी विकल्प न आज है न कभी होगा,इसे अपने-अपने साम्प्रदायिक चहारदीवारियों से निकलकर चिन्तनशील महानुभावों को स्वीकार करना हीं होगा.संसार के जो महामनीषी श्रीराम को परमेश्वर के रूप में स्वीकार नहीं करते वे भी उन्हें विश्व इतिहास का सर्वश्रेष्ठ मानव तो मानते हीं हैं..कल्पना और भौतिक विकास के इस चरमोत्कर्ष काल में भी विश्व के किसी भी जाति-सम्प्रदाय और धर्म के पास श्रीराम जैसा चरित्रनायक नहीं है.जबकि सभी को अपेक्षा है. वर्तमान संसार की अखिल संस्कृतियां श्रीराम संस्कृति की हीं जीर्ण-शीर्ण-विकृत और मिश्रित स्वरूप हैं..यह संस्कृति-अनुसंघान महानायकों की प्रबलतम भावना है..ऐसे श्रीराम का मंदिर कहां नहीं होना चाहिए,अर्थात सर्वत्र होना चाहिए. संसार के सभी क्षेत्रों,कालों एवं दिशाओं में होना चाहिए. तभी मानवता का पूर्ण विकास होगा..
स्वामी रामनरेशाचार्यजी महाराज कहते हैं कि इन्हीं भावों को ध्यान में रखकर श्रीसम्प्रदाय तथा सगुण एवं निर्गुण रामभक्ति परंपरा के मूल आचार्यपीठ श्रीमठ ,काशी ने हरिद्वार में अद्वितीय श्रीराममंदिर निर्माण का संकल्प श्रीरामजी की प्रेरणा एवं अनुकम्पा से किया है. श्रीसम्प्रदाय के परमाचार्य तथा परमाराध्य श्रीराम हीं हैं..
हरिद्वार में श्रीराम मंदिर क्यों--
इतिहास साक्षी है कि श्रीसम्प्रदाय के आचार्यो ने रामभक्ति -परम्परा का मुख्यतीर्थ अयोध्या को छोड़कर काशी को अपना मुख्यालय बनाया. आचार्यों की इस क्रांति ने रामभक्ति को अपूर्व तीव्रता प्रदान की और शैवों एवं वैष्णवों की कलंकभूता वैमनस्यता का समूलोच्छेद किया.अतएव हरिद्वार में श्रीराम मंदिर का निर्माण अव्यवहारिक तथा अमर्यादित नहीं है..हरिद्वार तो चारघामों में सुप्रतिष्ठित बद्रीधाम का द्वारभूत है..रामभक्ति स्वरूपा परम पावनी गंगा का प्रथम अवतरण स्थल तथा कुम्भ स्थल है..अतएव वहां तो हरि के अवतारों में पूर्णावतार भगवान श्रीराम का अतीव दिव्य मंदिर होना हीं चाहिए..
निर्माणाधीन श्रीराम मंदिर की विशेषताएं--
1.ये मंदिर श्रीसम्प्रदाय के मूल आचार्यपीठ श्रीमठ,काशी के द्वारा प्रकट हो रहा है ..श्रीसम्प्रदाय सगुण एवं निर्गुण रामभक्ति परंपरा का अनादिकाल से मुख्य प्रचारक एवं प्रसारक सम्प्रदाय है.
2.यह चार धामों में सुप्रतिष्ठित बद्रीधाम के द्वारभूत हरिद्वार में निर्मित हो रहा है..कुम्भ क्षेत्र में नासिक को छोड़कर कहीं भी श्रीराम का भव्य मंदिर नहीं है..
3.यह परमपावन मां गंगा के प्रथम अवतरण स्थल हरिद्वार में निर्मित हो रहा है..मां गंगा की राम-भक्ति से तुलना की गयी है.
यह सनातन धर्म की मंदिर निर्माण की समस्त मान्यताओं से पूर्ण होगा.
इस मंदिर की आराधना में पूर्ण वैदिक विधि एवं भावों का सर्वांश में पालन होगा.
यह विश्व का सर्वाधिक ऊंचा जोधपुर के पत्थरों द्वारा निर्मित मंदिर होगा.
यह मंदिर ,मंदिर के लिए होगा,मनोरंजन का साधन नहीं होगा.केवल आराधना और श्रीरामभाव का प्रसारक केन्द्र होगा..
मंदिर का निर्माण ,जनता जनार्दन से एकत्रित पवित्र धन से होगा..क्योंकि रामराज्य की संस्थापना में आचार एवं धन की पवित्रता की श्रेष्ठतम भूमिका है.
श्रीराम मंदिर की लम्बाई 193 फुट,चौड़ाई 102 फुट और ऊंचाई 175 फुट होगी..
श्रीराममंदिर में 5 मुख्य शिखर, 85 इंडको(मुख् शिखर के साथ छोटी शिखर की आकृति) 24 तिल्लको तथा 104 सुसज्जित स्तम्भ होंगे..
मंदिर के पीछे एक सुंदर तालाब भी होगा.
श्रीरामजी के वन-विहार के लिए एक रमणीय उद्यान होगा..
मंदिर के दोनों दिशाओं में पूर्ण सुसज्जित शिखर के साथ भण्डार मंदिर,शयन मंदिर, स्नान मंदिर एवं संग्रह मंदिर भी होंगे..
मंदिर परिसर में कोई भी लौकिक प्रवृति नहीं होगी..परिसर पूर्णत श्रीराममय होगा..
मंदिर की सभी दृष्टियों से प्रधानता होगी..
ये राममंदिर ऋषिकेश चुंगी से गंगा की ओर जाने वाले सप्तऋषि पथ पर निर्मित हो रहा है..
वास्तुकार---श्रीराजेश भाई बीनू भाई, सोमपुरा,बोरीवली बेस्ट,मुम्बई
निर्माण स्थल—
सप्तऋर्षि पथ, भूपतवाला, हरिद्वार, फोन- 01334-262452
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