असली मठ
कुछ वर्ष पहले दिल्ली मे विशाल मंदिर अक्षरधाम बना, कई बड़े-बड़े नेता आए, राष्ट्रपति आए और कहा गया कि यह देश का एक बड़ा पर्यटन स्थल होगा। यह बात बिल्कुल वैसी ही है जैसे कोई किसी दूल्हे को कहे कि तुम्हारी नाक टेढ़ी है, तू बड़ा कुरूप लगता है, अगर दूल्हे के संग बाराती दमदार हुए, तो वे उसे बिना मारे नहीं छोड़ेंगे। दूल्हा विष्णु होता है, उसकी नाक टेढ़ी होती है क्या? यदि मैं दूल्हा होता और ऎसे कोई मुझे बोलता, तो शादी होती न होती, जेल भले चले जाता, लेकिन बिना मारे नहीं छोड़ता! नेताओं ने मंदिर को कहा कि देश का बड़ा भारी पर्यटन स्थल बन गया।
वो शंकराचार्य कैसे थे, जिन्होंने चार मठों की स्थापना की, जिन्हें दुनिया सबसे बड़ा मठ मानती है। विशाल बगीचा लगा देने से, खूब सजा देने से या आलीशान भवन बना देने से मठ नहीं बनते। जहां सत्य चिंतन हो, जहां संयम, नियम सिखलाया जाए और शास्त्रों का अध्ययन कराया जाए, उसे मठ कहते हैं। मठ में केवल मंदिर से नहीं चलेगा, मठ केवल गोशाला से नहीं चलेगा। मठ का अपना स्वरूप है, विद्यालय वहां न हो तो कोई बात नहीं, वहां जो बड़े संत होते हैं, उनके पास बैठकर जिज्ञासाएं शांत होती हैं, जिन्हें देखकर ही शांति मिलती है, भक्ति भाव उत्पन्न होता है, ऎसा हो, तभी मठ बनता है। जहां अध्यात्म शास्त्र के जिज्ञासुओं को रखा जाए, धर्म शास्त्र पढ़ाया-सिखाया जाए, भोजन कराया जाए, वह ही असली मठ है।
- स्वामी रामनरेशाचार्य
साभार - राजस्थान पत्रिका
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