आरा, 29 नवंबर। रामानंदी वैष्णव सम्प्रदाय के मुख्य आचार्य जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज भोजपुर जिले के गुंडी स्थित भगवान रंगनाथ के प्रसिद्ध मंदिर में पूजन करेंगे। इसके लिए मंदिर प्रबंधन ने विशेष तैयारियां शुरू कर दी है। बैरागी सम्प्रदाय से जुड़े संत-महात्मा और वैष्णव भक्तजन भी अपने स्तर से आचार्यश्री के स्वागत औऱ अभिनंदन की तैयारियों में जुटे हैं।
रामानंद सम्प्रदाय के मूल आचार्यपीठ, श्रीमठ , काशी के वर्तमान पीठाधीश्वर स्वामी रामनरेशाचार्यजी महाराज इसके निमित्त तीन दिनों के प्रवास पर आरा आ रहे हैं। वे 8 दिसम्बर को दोपहर तक आरा पहुंचेंगे औऱ अल्प विश्राम के बाद गुंड़ी के लिए प्रस्थान करेंगे। उनकी यात्रा की तैयारियों में जुटे सतेन्द्र पाण्डेय ने बताया कि आरा जीरो माईल पर हीं गाजे-बाजे के साथ महाराजश्री का जोरदार स्वागत किया जाएगा। फिर वे कतीरा स्थित नागरमल बगीचे में विश्राम के लिए रूकेंगे। स्थानीय भक्तगण इस दौरान उनका आरती-पूजन कर स्वागत करेंगे। अपराह्न तीन बजे से उनका काफिला गुंडी के लिए रवाना हो जाएगा। रास्ते में भी जगह-जगह उनके स्वागत की तैयारियां की जा रही है। भगवान रंगनाथ मंदिर के व्यवस्थापक डॉ. बबन सिंह ने बताया कि सरैंया बाजार पर महाराजश्री को हाथी-घोड़े ,बैण्ड-बाजे के साथ हजारो भक्त स्वागत करेंगे। वहां से शोभा यात्रा की शक्ल में वे गुंडी तक जाएंगे। शाम को प्रवचन का कार्यक्रम मंदिर परिसर में हीं निर्धारित है। दूसरे दिन सुबह वे षोडशोपचार विधि से भगवान रंगनाथ का पूजन करेंगे। काशी से पधारे वैदिक विद्वान औऱ श्रीमठ के वेदपाठी छात्र पूजन में पुरोहित का कार्य सुसम्पन्न करेंगे। शाम में पुनः स्थानीय श्रद्धालुओं को आचार्यश्री के अमृत वचन का लाभ मिल सकेगा। तीसरे दिन वे आरा होते हुए काशी के लिए प्रस्थान कर जाएंगे।
गुंडी स्थित भगवान रंगनाथ के मंदिर में रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य का ये दूसरा प्रवास होगा। इससे पहले सन् 2001 में वे भगवान का दर्शन करने गुंडी गये थे। आयोजन से जुड़े लोग बताते हैं कि तभी आचार्यश्री ने दूसरी बार आकर भगवान के पूजन करने का संकल्प व्यक्त किया था। भगवान रंगनाथ का मंदिर भोजपुर जिले में अपनी तरह का इकलौता मंदिर है जो दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित है और सैकड़ो वर्ष पुराना है। मंदिर का वास्तु शिल्प देखते हीं बनता है। इसका गोपुरम् इस प्रकार से बना है कि रोज प्रातः भगवान भाष्कर की रश्मियां भगवान का अभिषेक करती हैं। कुछ साल पहले तक दक्षिण भारत के पुजारी हीं यहां की व्यवस्था और पूजा-पाठ की जिम्मेदारियां संभालते थे। इस रुप में ये मंदिर उत्तर भारत औऱ दक्षिण भारत के बीच एक सांस्कृतिक सेतु का भी काम करता है। माना जा रहा है कि रामभक्ति परंपरा के मूल आचार्य पीठ के मुख्य आचार्य के आगमन और पूजन से जनमानस के बीच मंदिर की विशेषता को लेकर चर्चा तेज होगी औऱ शासन-प्रशासन का ध्यान भी इसकी ओर जाएगा। यदि ऐसा होता है तो गुंडी को पर्यटन केन्द्र के रुप में विकसित करने की मांग फिर से जोर पकड़ेगी, जो हाल वर्षों में मंद पड़ गयी थी।
यहां उल्लेख करना जरूरी है कि जगदगुरु रामानंदाचार्य की गद्दी पर विराजमान स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज का भोजपुर से गहरा सरोकार है। उनकी जन्मभूमि इसी जिले के परसियां गांव में है। ये अलग बात है कि अपने संकल्पों के चलते घर छोड़ने के बाद जन्मभूमि पर वे नहीं गये। उनके ग्रामीण औऱ श्रद्धालु भक्त बार-बार के आग्रह के बावजूद आचार्यश्री को परसियां ले जाने में असफल रहे हैं। बाल्यावस्था में हीं घर छोड़कर काशी गये स्वामीजी ने किशोरवय में हीं वैष्णवी दीक्षा ली और विरक्त संन्यासी हो गये। काशी में रहते हुए छह दर्शनों में उन्होंने सर्वोच्च उपाधियां अर्जित की औऱ न्याय शास्त्र के पारंगत विद्वान के रूप में देश भर में मान्य हुए। संस्कृत विद्वानों की पाठशाला के नाम से चर्चित हरिद्वार के कैलास आश्रम में कई वर्षों तक उन्होंने न्याय दर्शन पढ़ाया। इनसे पढ़े हुए अनेक लोग देश के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों में संस्कृत के प्राध्यापक हैं और अनेक शिष्य मठ-मंदिरों के प्रधान के रुप सनातन धर्म की सेवा में संलग्न हैं। रामानंद सम्प्रदाय के विशिष्ठ संत-महात्माओं ने वर्ष 1988 में उन्हें श्रीमठ लाकर जगदगुरू रामानंदाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया, तब से लगातार भारत के कोने -कोने में फैले विशाल बैरागी समाज के संत-महात्माओं औऱ दुनिया भर के राम भक्तों का वे मार्गदर्शन कर रहे हैं। सम्प्रति वे हरिद्वार में दुनिया का सबसे बड़ा राममंदिर बनाने में संलग्न हैं .
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