Saturday, May 17, 2025

राम-लक्ष्मण की एक रोचक कहानी संकलन- Dev Kumar Pukhraj

 राम-लक्ष्मण की एक रोचक कहानी

====================


भगवान श्री राम लक्ष्मण और सीता जी पिता दशरथ जी की आज्ञा से वनवास जाने लगे। रास्ते में सभी तीर्थ गंगा, यमुना, गोमती नदियों में पितृ तर्पण कर वन में कंद मूल, फल फूल खाते हुए वन में अपना समय व्यतीत करने लगे। वैशाख का महीना आया–एकम के दिन लक्ष्मण जी ने राम जी की आज्ञा से फल-फूल लाकर माँ सीता को दिए। माँ सीता ने चार पत्तल परोसी तब लक्ष्मण ने पूछा–‘भाभी माँ हम तीन हैं फिर चार में क्यों परोसा ?’ माँ सीता बोली–‘एक पत्तल गों माता की हैं।’

         

जब राम जी, लक्ष्मण जी, और गोमाता को पत्तल परोस दी तब राम जी ने पूछा–‘सीता जी आप ने खाना शुरू क्यों नहीं किया ?’ सीता माँ बोली–‘मेरे तो राम कथा सुनने का नियम हैं राम कथा सुनने के बाद ही में फल ग्रहण करूँगी।’ 

         

रामजी बोले–‘मुझे कथा सुना दो’, लक्ष्मण जी बोले–‘मुझे सुना दो’ तब माँ सीता बोली–‘औरत की बात औरत ही सुने–आप मेरे आप मेरे पति हो, आप मेरे देवर हो आपसे कैसे कहूँ ?’ 

         

लक्ष्मणजी ने सोचा इस जंगल में कौन औरत मिलेगी ? फिर लक्ष्मणजी ने अपनी माया से एक नगरी का निर्माण किया। वह नगरी में सब सुख सुविधाओं से युक्त थी। उस नगरी में सब चीजे सोने की थीं इसलिये नगरी का नाम सोन नगरी रखा। 

         

सभी नगर निवासियों को घमण्ड हो गया उस नगरी में कोई गरीब नहीं था। जब सीता जी कुँऐ पर पानी लेने गई और पनिहारिनों से राम-राम किया तो कोई नहीं बोली। थोड़ी देर में एक छोटी कन्या आई। सीता जी उससे राम-राम बोली और कहा कि बाई राम कथा सुनेगी क्या ?’ वह बोली–‘मेरे तो घर पर काम हैं।’ सीता जी ने कहा–‘मेरे पति राम और देवर लक्ष्मण भूखे हैं।’ लडकी बोली–‘मेरी माँ मेरा इन्तजार कर रही हैं।’

          

वह लडकी वहाँ से जानी लगी तब माँ सीता के क्रोध से सारी नगरी साधारण सी हो गई। जब लडकी घर गई तो माँ बोली–‘बाई ये क्या हुआ ?’ तब लडकी बोली–‘मेरे को तो पता नहीं हैं। वहाँ पर एक साध्वी बैठी थी मुझे राम कथा सुनने के लिए बोली पर मैं तो कथा नहीं सुनी। यदि उसने कुछ किया हो तो पता नहीं।’

          

तब उसकी माँ ने उसको वापस जाकर कथा सुनने को कहा। लडकी ने वापस जाकर कथा सुनने से मना कर दिया तब उसकी बहु बोली–‘आपकी आज्ञा हो तो मैं कहानी सुन कर आती हूँ।’

           

जब बहु कुँऐ पर गई तो पानी भरे और खाली करे। तब सीताजी ने कहा–‘आपके घर पर कुछ काम नहीं हैं क्या ?’ वह बोली माताजी मैं तो सारा काम करके आई हूँ।’ माँ सीता बोली–‘तू मुझे माँ कहकर बुलाई यदि तुझे समय हो तो क्या मेरी राम कहानी सुन लेगी ?’ वह बोली–‘माताजी कहानी सुनाओ मैं प्रेम से कहानी सुनूँगी।’

         

सीताजी ने कहा–‘हे बाई ! तूने मेरी मृत्युलोक में मदद करी भगवान तेरी स्वर्ग लोक में रक्षा करेंगे।’ 

       

राम कथा पूर्ण हुई तो सीता जी ने कहा–‘हे बाई ! तूने मेरी राम कथा सुनी, मेरी सहायता की राम जी लक्ष्मण को  जिमाया हैं भगवान तेरी भी रक्षा करेंगे। तुझे स्वर्ग का सुख मिलेगा।’ सीता माता ने उपहार स्वरूप अपने गले का हार दे दिया। जब वह घर गयी तो उसके मटके सब सोने के हो गये। सासु जी ने कहा–‘ये सब तू कहाँ से लाई ?’ 

           

बहु बोली–‘मैंने माँ सीता से राम कथा सुनी ये इसी का फल हैं।’ सासुजी ने कहा–‘प्रतिदिन राम कथा सुन आना।’


बहु को रामकथा सुनते बहुत दिन हो गये तब उसने माँ सीता से पूछा–‘इसका उद्यापन विधि बतलाओ।’ तब सीता जी ने कहा–‘सात लड्डू लाना, एक नारियल लाना उसके सात भाग करना, एक भाग मन्दिर में चढ़ाना जिससे मन्दिर बनवाने जितना फल होता है। एक भाग सरोवर के किनारे गाड़ देना जिससे सरोवर खुदवाने जितना फल होता है। एक भाग भगवद्गीता पर चढ़ाना जिससे भगवद्गीता पाठ करवाने जितना फल होगा। एक भाग तुलसी माता पर चढ़ाना जिससे तुलसी विवाह जितना फल होगा। एक भाग कुँवारी कन्या को देना जिससे कन्या विवाह जितना फल होगा। एक भाग सूरज भगवान को चढ़ाना जिससे तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं को भोग लगाने जितना फल होगा।’

          

बहु ने विधि पूर्वक उद्यापन कर दिया। माता सीता के पास आकर बोली–‘माता मैंने तो विधिपूर्वक उद्यापन कर दिया।’ सीता जी ने कहा–‘अब सात दिन बाद वैकुण्ठ से विमान आएगा।’

         

सात दिन पूरे हुए विमान आया तो बहु ने कहा–‘सासुजी स्वर्ग से विमान आया है।’ सासुजी ने कहा–‘बहु तेरे ससुरजी को और मेरे को भी ले चल, तेरे माता पिता को ले चल सारे कुटुम्ब परिवार को ले चल, अड़ोसी-पड़ोसियों को ले चल।’ बहु ने सबको बिठा लिया पर विमान खाली था।

         

थोड़ी देर में उसकी नन्द आई और देखते-ही-देखते विमान भर गया। तब बहु ने कहा–‘माँ सीता नन्द बाईसा को भी बिठा लो।’ माँ सीता ने कहा–‘इसने कभी कोई धर्म पुण्य नहीं किया।’ बहु ने कहा–‘बाईसा आप पहले वैशाख मास में राम लक्ष्मण की कथा सुनना उसके बाद आप के लिए वैकुण्ठ से विमान आएगा।’

         

गाँव के सारे लोग एकत्र हो गये और पूछने लगे–‘बाई तूने ऐसा कौन-सा धर्म पुण्य किया, हमें भी बताओं ?’ बहु ने कहा–‘मैंने तो माता सीता से प्रतिदिन राम कथा सुनी और नियम से उद्यापन किया।’

         

तब समस्त ग्रामीण राम कथा सुनने की जिद्द करने लगे। तब बाई राम कथा कहने लगी और सब नर-नारी सुनने लगे, राम कथा सम्पूर्ण होते ही समस्त नगरी सोने की हो गई। बाई ने कहा–‘जो कोई राम कथा सुनेगा उसको मेरे समान ही फल मिलेगा।’ 

          

सब राम लक्ष्मण जी की जय जयकार करने लगे और विमान स्वर्ग में चला गया। सात स्वर्ग के दरवाजे खुल गये। पहले द्वार पर नाग देवता, समस्त देवी देवता पुष्प वर्षा करने लगे देवताओं ने पूछा–‘तूने क्या पुण्य किया ?’ बहु ने कहा–‘मैंने तो राम लक्ष्मण जानकी की कहानी सुनी।’ समस्त देवताओं ने कहा–‘वर मांग।’ तब वह बोली–‘मेरे पास सब सिद्धियाँ हैं। मुझे यह वर दो की जो भी श्रद्धा एवं भक्ति से राम कथा, राम लक्ष्मण जानकी की कहानी सुनेगा उसको मेरे समान ही फल मिले।’

          

सभी देवताओं ने पुष्प वर्षा करते हुए तथास्तु कहा। चारों और राम-राम की जय जयकार होने लगी।

Tuesday, March 4, 2025

श्रीराम जी कौन हैं, उनका अवतार किस लिए हुआ

 लक्ष्मण जी ने निषादराज को बताया कि - श्रीराम जी कौन हैं, और उनका अवतार किस लिए हुआ है। 
 👨आचार्य ब्रजपाल शुक्ल वृंदावनधाम

*******

 रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड के 93 वें दोहे में,लक्ष्मण जी ने निषादराज को समझाते हुए कहा कि - 

 भगत भूमि भूसुर सुरभि,सुर हित लागि कृपाल। 

 करत चरित धरि मनुज तनु, 

 सुनत मिटहिं जगजाल।। 

 सन्दर्भ 

***



कैकेयी याचित वनवास को स्वीकार करके, अयोध्या से निकलकर,श्रीराम जी, लक्ष्मण जी तथा भगवती जगदम्बा सीता, तीनों ही निषादराज गुह के अतिथि बने।

रात्रिकाल में, दशरथनन्दन श्रीराम जी को,तृणपर्णाच्छादित भूमि पर शयन करते हुए, देखकर, निषादराज गुह ने,कैकेयी के प्रति कुछ वाक्य कहकर लक्ष्मण की ओर देखते हुए,अतिदुख व्यक्त किया,तो लक्ष्मण जी ने कहा कि -

हे निषादराज गुह! श्रीराम जी की वर्तमान की परिस्थिति को देखकर,अतिदुखित मत होइए। ये मनुष्य नहीं हैं,जो अपने कर्मों के फलस्वरूप दुखों को भोगते हैं।

महाराज दशरथ जी के यहां,इनका प्रादुर्भाव मात्र हुआ है। किन्तु,ये श्रीराम जी, महाराज पिता दशरथ की सेवामात्र के लिए प्रादुर्भूत नहीं हुए हैं।

संसार में, जीवों का जन्म तो, पूर्वजन्मकृत कर्म के फल को भोगते हुए पूर्ण होता है। मनुष्य तो,वर्तमान के जीवन में भी भोगमय वृत्ति से जीवन व्यतीत करते हैं। 

 मनुष्य का जीवन तो, एक सामान्य जीव के समान ही भोग और भोजन में ही व्यतीत होता है। 

श्रीराम जी के प्रादुर्भाव के पांच प्रयोजन हैं।

ये,कर्म के वशीभूत होकर, दशरथनन्दन नहीं हैं।

ये तो सभी जीवों के कर्मफलदाता ही हैं। आपके यहां भूमिशयन करते हुए,इनको किसी भी प्रकार का दुख भी नहीं है। ये परमसुखमय हैं। परमानन्दमय हैं।

अब दोहे के अनुसार,श्रीराम जी के अवतार के पांच प्रयोजन श्रवण करिए!

भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल। 

******

(1) भगत (2)भूमि (3) भूसुर अर्थात ब्राह्मण (4) सुरभि अर्थात गौ (5) सुर।

इन पांचों की रक्षा के लिए ही, कृपालु दयालु, भगवान ने अवतार लिया है।

अब इन पांचों प्रयोजनों पर थोड़ा विचार कर लीजिए।

 भगत 

**

इस जगत के किसी भी स्थान में, भगवान की चर्चा अर्चना हो रही है तो,उसके आधार तो, एकमात्र, भगवान के भक्त ही हैं।

भगवान के भक्तगण, प्रत्येक प्रान्त में जन्म प्राप्त करके,उस प्रान्तीय भाषा में, भगवान के चरित्रों का गुणगान करते हैं।

यदि भक्त हैं तो ही संसार में, भगवान की चर्चा है।

संसार के स्त्री पुरुष, वैराग्य और भक्ति ज्ञान सम्पन्न भक्तों को भोजन भी नहीं देते हैं। अपमानित करते हैं। 

इन अज्ञानी स्वार्थी स्त्री पुरुषों को, भगवान के भक्तों के स्वरूप का ज्ञान भी नहीं होता है।

अल्प वस्त्रों में देखकर,दरिद्र समझते हैं। असहाय अनाथ समझते हैं।

शारीरिक दुर्बलता को देखकर,निर्बल समझते हैं। पारिवारिक स्त्री पुरुषों से दूर समझकर अनाथ समझते हैं। किसी के द्वारा किए गए अपमान का प्रतीकार न करने के कारण, ही, भगवान के भक्तों को विक्षिप्त समझते हैं।

इन अभागी,निर्भागी स्त्री पुरुषों को, भगवान के भक्तों का लाक्षणिक ज्ञान नहीं होता है तो,ये लोग भक्त को अतिदुख देते हैं।

कितने तो ऐसे दुष्ट स्वभाव के स्त्री पुरुष होते हैं कि - भगवान के भक्तों को मृत्यु ही दे देते हैं।

भगवान के चरित्रों का गुणगान करके भगवान की स्थापना करनेवाले भक्त और भक्ति की रक्षा करने के लिए भगवान अवतीर्ण होकर, दुष्टों का नाश करते हैं।

भक्ति और भक्त की रक्षा के लिए ही भगवान, श्रीराम जी अवतीर्ण हुए हैं। यही उनके प्रादुर्भाव का प्रथम प्रयोजन है। वे तो जीवों का दुख दूर करने के लिए आए हैं। इसीलिए उनने वनवास को निमित्त बनाया है।

 भूमि -

 भूमि अर्थात पृथिवी की रक्षा से ही सभी की रक्षा है।

राक्षस गणों ने सम्पूर्ण पृथिवी को स्वयं के अधिकृत कर लिया है। पृथिवी के अन्न,जल,वायु,प्रकाश आदि को अधिकृत करके, मात्र अपना ही भरण पोषण करते हैं। शेष जीवों का संहार करके अपने आप की प्रतिष्ठा करते हैं।

पृथिवी की रक्षा से ही सम्पूर्ण विश्व की रक्षा होती है। 

इसीलिए,भूमि के संरक्षण के लिए भी, भगवान अवतीर्ण हुए हैं। ये उनके प्रादुर्भाव का द्वितीय प्रयोजन है।

 भूसुर-

 भू अर्थात पृथिवी। सुर अर्थात देवता। पृथिवी के देवता को भूसुर शब्द से कहा जाता है।

शास्त्र ही भगवान की आज्ञा है। सत्कर्म दुष्कर्म,पाप पुण्य,आदि के विधायक शास्त्र ही भगवान की आज्ञा हैं।

भगवान की आज्ञारूप शास्त्रों के रक्षक, एकमात्र भूसुर अर्थात ब्राह्मण ही हैं। 

ब्राह्मणों के नाश से,वेद पुराण धर्मशास्त्र आदि सभी प्रकार की दिव्य विद्याओं का विनाश हो जाता है।

शास्त्रधारक ब्राह्मणों को,नष्ट करना, भोगियों स्त्री पुरुषों का प्रथम उद्देश्य होता है।

धनवान, बलवान राक्षसगण, सर्वप्रथम धर्म के नाश में ही अपने बल बुद्धि का सम्पूर्ण उपयोग करते हैं।

ब्राह्मण के नाश से ही शास्त्रों का नाश होता है। शास्त्रों के नाश से, धर्म का समूल नाश होता है।

भगवान का संविधान ही तो शास्त्र है। शास्त्रों की रक्षा करने के लिए, ब्राह्मणों की रक्षा आवश्यक है। इसीलिए भगवान, ब्राह्मणों की रक्षा के लिए अवतीर्ण हुए हैं। 

श्रीराम जी का अवतार तो, धर्म की रक्षा के लिए हुआ है। ये उनके अवतार का तृतीय प्रयोजन है।

 सुरभि अर्थात गौ -

जितने भी दुग्धदाता जीव हैं,उन सभी में,सुरभि अर्थात गौ एकमात्र ऐसी दुग्धदात्री है,जिसको भगवान ने देवताओं के योग्य कहा है। 

 दुग्ध,घृत, दधि, गोमय तथा गोमूत्र,ये पांचों ही देवताओं की आराधना के साधन हैं। 

इन राक्षसों दैत्यों की कुदृष्टि भी गौ के नाश में ही पड़ती है।

 देवताओं को हुतभुक् शब्द से कहा जाता है। हवनीय द्रव्यों का हवन होता है,वही तो देवताओं का भोजन है।‌ 

गौ की रक्षा से ही देवताओं की रक्षा होती है। देवताओं के अधीन सृष्टि होती है। देवताओं के साधन की रक्षा करने के लिए भी, भगवान श्रीराम जी का अवतार हुआ है। ये उनके प्रादुर्भाव का चतुर्थ प्रयोजन है।

  सुर -

 सुर अर्थात देवता। 

यज्ञ से, पर्जन्य अर्थात मेघों की सृष्टि होती है। मेघों की वर्षा से अन्न होता है, और अन्न से जीवों की उत्पत्ति होती है।

देवताओं के विनष्ट होते ही सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश हो जाएगा। इसीलिए, देवताओं की रक्षा के लिए भी भगवान श्रीराम जी का अवतार हुआ है।

श्रीराम जी के अवतीर्ण होने के ये पांच प्रयोजन हैं।

मानव समाज,इन पांचों का विनाशक होता है,रक्षक नहीं होता है। सृष्टिकर्ता ही, सृष्टि की रक्षा करते हैं। 

निषादराज गुह ने कहा कि - किन्तु,ऐसी अवस्था में देखकर, हमें अतिदुख हो रहा है। भगवान को,इन पांचों की रक्षा करना थी तो,इतना दुख भोगकर रक्षा क्यों करना है!

लक्ष्मण जी ने कहा कि -

 करत चरित धरि मनुज तनु,। 

हे निषादराज! श्रीराम जी, मनुष्य नहीं हैं। इनने तो धरि मनुज तनु, मनुज अर्थात मनुष्य का तन,शरीर धारण किया है। रूपधारण करनेवाला,वह नहीं होता है,जिसका रूप धारण किया है।

जैसे - कोई नाट्यधर, अभिनेता,किसी का रूप धारण करके उसके चरित्र का अभिनय करता है, किन्तु,वह अभिनेता वह नहीं होता है,जिसका अभिनय करता है।

इसी प्रकार से भगवान ने, मनुष्य का स्वरूप धारण किया है, किन्तु वे मनुष्य नहीं हैं। मनुष्य जैसा,अभिनय कर रहे हैं।

भगवान ने मनुष्य जैसा चरित किया है तो, ऐसे दुखों को सहन करने से क्या लाभ होगा!

 सुनत मिटहिं जगजाल। 

श्रीराम जी के इन विविध प्रकार की मानुषी लीलाओं को सुनेंगे, पढ़ेंगे, सुनाएंगे तो उनको भगवान और भगवान की भगवत्ता का ज्ञान होगा तो,जगतजाल ही नष्ट हो जाएगा।     मनुष्यों को मनुष्य जैसे दुख,सुख, युद्ध, धर्म,त्याग आदि के चरित्र समझ में आते हैं। इसीलिए भगवान ऐसे चरित्र कर रहे हैं। 

 वास्तव में, भगवान श्री राम जी को किसी भी प्रकार का दुख नहीं है। वे तो परमानन्द परेश हैं। 

 इसका तात्पर्य यह है कि - श्रीराम जी के चरित्र,जिन पुराणों में वर्णित हैं,तथा वाल्मीकीय रामायण में वर्णित हैं,तथा रामचरितमानस आदि प्राकृत भाषा में वर्णित हैं,उन चरित्रों को गुरु से बिना पढ़े,न तो श्रीराम ही समझ में आएंगे, और न ही स्वयं के पढ़ने से भ्रम का नाश होगा। ग्रंथों का, मात्र पाठ करने से ज्ञान नहीं होता है। यथार्थ अर्थ जानिए, और स्वयं को भ्रममुक्त करके भक्तिमान बनिए। 

 भगवान का यही यथार्थ स्वरूप है।