Monday, September 5, 2016

पटना चातुर्मास्य महायज्ञ के दौरान सामाजिक समरसता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

पटना चातुर्मास्य महायज्ञ के दौरान 2 सितंबर,2016 को आयोजित विद्वत संगोष्ठी के दौरान मंच पर विराजमान गुरुदेव स्वामी रामनरेशाचार्य, दैनिक भास्कर, पटना के संपादक प्रमोद मुकेश, राजस्थान के पूर्व मंत्री नरपत सिंह राजवी, बीजेपी नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. संजय पासवान, वरिष्ठ पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, दिल्ली के अध्यक्ष रामबहादुर राय। इस मौके पर राजस्थान पत्रिका, जोधपुर के संपादक ज्ञानेश उपाध्याय द्वारा संकलित-संपादित पुस्तक- अबलौ नसानी, अब ना नसैंहों का लोकार्पण हुआ। संचालन डॉ. शास्त्री कोसलेन्द्र दास ने किया।⁠⁠⁠⁠

 क्या कहा महाराजश्री ने-
जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज ने कहा कि संप्रदाय बुरे अर्थ में नहीं है। संप्रदाय ही है, जिसने गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाने का काम की है। अनादि काल से गुरु-शिष्य की परंपरा चली रही है। संप्रदाय से हटने के कारण ही समाज में समरसता की कमी आई है। संप्रदाय प्रतिष्ठित शब्द था। धर्म आदमी को नजदीक लाता है, दूर नहीं ले जाता। धनवान होने की इच्छा बुरी बात नहीं है, लेकिन गलत कार्य कर धनवान होना गलत है। राम भाव के माध्यम से समाज में समरसता आए यही हमारा प्रयास है। इसके लिए हर व्यक्ति को साथ मिल कर काम करना होगा। ये बातें उन्होंने शुक्रवार को लाला लाजपत राय भवन में चल रहे दिव्य चातुर्मास्य महायज्ञ में कहीं। अवसर था सामाजिक समरसता और स्वामी नरेशाचार्य जी महाराज विषय पर गोष्ठी का। इसके पहले महाराज जी के प्रवचन पुस्तिका अबलौं नसानी अब नसैहौं का लोकार्पण किया। अतिथियों का अभिनंदन स्वामी रामानंदाचार्य रामनरेशाचार्य जी महाराज द्वारा किया गया।

अबधर्म की सत्ता को स्वीकार किया जा रहा है : रामबहादुर राय

 सामाजिकसमरसता और स्वामी नरेशाचार्य जी महाराज विषय पर आयोजित गोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने कहा कि असहज और अस्वाभाविक को ही जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मान लिया गया। इसे छोड़ना होगा तभी सामाजिक समरसता आएगी। समरसता लाना चाहते हैं, तो एक मंत्र गांठ बांध लें। आदर का मूल्य बदलना होगा। अहंकार ही समरसता को तोड़ता है। महत्वाकांक्षा भी समरसता में बाधा है। महत्वाकांक्षा तब हानिकर होती है जब किसी को पछाड़ने में नैतिकता की हद पार कर देती है। आतंकवाद और गरीबी जब तक है सामाजिक समरसता नहीं हो सकती। धर्म की सत्ता को अब स्वीकार किया जा रहा है। पिछली सदी में धर्म को अफीम माना जाता था। लेकिन अब संयुक्त राष्ट्र भी इसे स्वीकार कर रहा है कि धर्म की सत्ता को स्थापित करने में कैसे योगदान दें। लोकतंत्र भारत की प्राणवायु है। लोकतंत्र यानी विविधता। यह सिर्फ शासन प्रणाली ही नहीं, जीवन शैली भी है।

समानता से बना शब्द है समरसता - संजय पासवान

पूर्वकेंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने समरसता को परिभाषित करते हुए कहा कि समरसता समानता से बना शब्द है। समरसता में स- समानता है, म-ममता, र-रमण, स-सामंजस्य और त- तारतम्यता है। सब एक साथ मिलती है, तो समरसता बनता है। समरसता के सभी घटकों को जोड़ना होगा। वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश उपाध्याय ने कहा कि प्रवचन पुस्तिका में राम और रावण में भेद को भी बताया गया है। राजस्थान के पूर्व मंत्री नरपत सिंह राजवी ने कहा कि ऐसी राजनीति भी कोई काम की नहीं जिसमें सिद्धांत के विपरीत काम करें। दैनिक भास्कर के संपादक प्रमोद मुकेश ने कहा कि सामाजिक समरसता से ही देश का विकास होगा। आचार्य के भाव और आंदोलन पूरे विश्व में फैले और सामाजिक समरसता साकार हो।
 

सामाजिक समरसता और स्वामी रामनरेशाचार्य विषयक संगोष्ठी में वक्ताओं ने अपने विचार रखते हुए स्वामी जी के कार्यों की भूरी-भूरी प्रशंसा की।

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