Tuesday, February 28, 2012

हनुमान चालीसा में चालीस दोहे ही क्यों हैं?


श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी हमेशा से ही सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं। शास्त्रों के अनुसार माता सीता के वरदान के प्रभाव से बजरंग बली को अमर बताया गया है। ऐसा माना जाता है आज भी जहां रामचरित मानस या रामायण या सुंदरकांड का पाठ पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से किया जाता है वहां हनुमानजी अवश्य प्रकट होते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए बड़ी संख्या श्रद्धालु हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि हनुमान चालिसा में चालीस ही दोहे क्यों हैं?

केवल हनुमान चालीसा ही नहीं सभी देवी-देवताओं की प्रमुख स्तुतियों में चालिस ही दोहे होते हैं? विद्वानों के अनुसार चालीसा यानि चालीस, संख्या चालीस, हमारे देवी-देवीताओं की स्तुतियों में चालीस स्तुतियां ही सम्मिलित की जाती है। जैसे श्री हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा, शिव चालीसा आदि। इन स्तुतियों में चालीस दोहे ही क्यों होती है? इसका धार्मिक दृष्टिकोण है। इन चालीस स्तुतियों में संबंधित देवता के चरित्र, शक्ति, कार्य एवं महिमा का वर्णन होता है। चालीस चौपाइयां हमारे जीवन की संपूर्णता का प्रतीक हैं, इनकी संख्या चालीस इसलिए निर्धारित की गई है क्योंकि मनुष्य जीवन 24 तत्वों से निर्मित है और संपूर्ण जीवनकाल में इसके लिए कुल 16 संस्कार निर्धारित किए गए हैं। इन दोनों का योग 40 होता है। इन 24 तत्वों में 5 ज्ञानेंद्रिय, 5 कर्मेंद्रिय, 5 महाभूत, 5 तन्मात्रा, 4 अन्त:करण शामिल है। सोलह संस्कार इस प्रकार है- 1. गर्भाधान संस्कार,2. पुंसवन संस्कार,3. सीमन्तोन्नयन संस्कार,४। जातकर्म संस्कार,5। नामकरण संस्कार ,6। निष्क्रमण संस्कार,7। अन्नप्राशन संस्कार ,८ चूड़ाकर्म संस्कार,9। विद्यारम्भ संस्कार ,10। कर्णवेध संस्कार,11।यज्ञोपवीत संस्कार ,12 वेदारम्भ संस्कार,13. केशान्त संस्कार ,14. समावर्तन संस्कार ,15. पाणिग्रहण संस्कार ,16. अन्त्येष्टि संस्कार

भगवान की इन स्तुतियों में हम उनसे इन तत्वों और संस्कारों का बखान तो करते ही हैं, साथ ही चालीसा स्तुति से जीवन में हुए दोषों की क्षमायाचना भी करते हैं। इन चालीस चौपाइयों में सोलह संस्कार एवं 24 तत्वों का भी समावेश होता है। जिसकी वजह से जीवन की उत्पत्ति है।

साभार-भास्कर दैनिक

Wednesday, February 15, 2012

स्वामी रामनरेशाचार्य का आलेख

असली मठ
कुछ वर्ष पहले दिल्ली मे विशाल मंदिर अक्षरधाम बना, कई बड़े-बड़े नेता आए, राष्ट्रपति आए और कहा गया कि यह देश का एक बड़ा पर्यटन स्थल होगा। यह बात बिल्कुल वैसी ही है जैसे कोई किसी दूल्हे को कहे कि तुम्हारी नाक टेढ़ी है, तू बड़ा कुरूप लगता है, अगर दूल्हे के संग बाराती दमदार हुए, तो वे उसे बिना मारे नहीं छोड़ेंगे। दूल्हा विष्णु होता है, उसकी नाक टेढ़ी होती है क्या? यदि मैं दूल्हा होता और ऎसे कोई मुझे बोलता, तो शादी होती न होती, जेल भले चले जाता, लेकिन बिना मारे नहीं छोड़ता! नेताओं ने मंदिर को कहा कि देश का बड़ा भारी पर्यटन स्थल बन गया।

वो शंकराचार्य कैसे थे, जिन्होंने चार मठों की स्थापना की, जिन्हें दुनिया सबसे बड़ा मठ मानती है। विशाल बगीचा लगा देने से, खूब सजा देने से या आलीशान भवन बना देने से मठ नहीं बनते। जहां सत्य चिंतन हो, जहां संयम, नियम सिखलाया जाए और शास्त्रों का अध्ययन कराया जाए, उसे मठ कहते हैं। मठ में केवल मंदिर से नहीं चलेगा, मठ केवल गोशाला से नहीं चलेगा। मठ का अपना स्वरूप है, विद्यालय वहां न हो तो कोई बात नहीं, वहां जो बड़े संत होते हैं, उनके पास बैठकर जिज्ञासाएं शांत होती हैं, जिन्हें देखकर ही शांति मिलती है, भक्ति भाव उत्पन्न होता है, ऎसा हो, तभी मठ बनता है। जहां अध्यात्म शास्त्र के जिज्ञासुओं को रखा जाए, धर्म शास्त्र पढ़ाया-सिखाया जाए, भोजन कराया जाए, वह ही असली मठ है।
- स्वामी रामनरेशाचार्य
साभार - राजस्थान पत्रिका

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गुरुवर swami ramnareshacharya की कुछ पुरानी तस्वीरें