Sunday, October 7, 2012

प्रवचन पुस्तिका का लोकार्पण

जगदगु़रु महाराज की प्रवचन पुस्तिका का लोकार्पण

भारत में रामभक्ति की अविरल धारा के जनक आचार्यश्री रामानंद जी के प्राकट्य धाम हरित माधव मंदिर, प्रयाग, इलाहाबाद में २ सितम्बर संध्या के समय अनेक विद्वानों की उपस्थिति में ‘दु:ख क्यों होता है?’ पुस्तिका का लोकार्पण हुआ। रामानंद संप्रदाय की मूल पीठ श्रीमठ, वाराणसी के पीठाधीश्वर रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज के पावन सानिध्य में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के अध्यक्ष जटाशंकर जी और देश के प्रसिद्ध संस्कृत समाचारवाचक बलदेवानंद सागर जी ने के इस पुस्तिका का विमोचन किया। इस पावन अवसर पर दिल्ली से आए प्रसिद्ध पत्रकार रामबहादुर राय भी मंच पर विराजमान थे।
श्रीमठ से अनेक
ग्रंथों का प्रकाशन हुआ है, किन्तु यह पुस्तिका या ग्रंथ इस मामले में एक शुरुआत है कि इसमें रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज के प्रवचन संकलित हैं। प्रवचन समकालीन समस्याओं पर केन्द्रित हैं, इसमें रामभक्ति से लेकर हिग्स बोसोन या ईश्वरीय कण की वैज्ञानिक खोज पर भी विस्तृत चर्चा है। इस प्रवचन ग्रंथ से यह समझने में सहायता मिलती है कि धर्म क्या है? आज की समस्याओं का समाधान क्या है? दु:ख क्यों होता है? सुख कैसे होगा? कन्या भ्रूण हत्या से लेकर आतंकवाद और प्रतिशोध जैसे विषय पर भी इसमें प्रवचन संकलित हैं। 
पुस्तिका विमोचन अवसर पर प्रसिद्ध पत्रकार रामबहादुर राय, विद्वान शास्त्री कोसलेन्द्रदास, ज्ञानेश उपाध्याय, रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के अध्यक्ष जटाशंकर जी और प्रसिद्ध संस्कृत समाचारवाचक बलदेवानंद सागर जी। 

इस अवसर पर अपने उद्बोधन में स्वामी रामनरेशाचार्य जी ने कहा,‘तुलसीदास जी ने कहा है, निरंतर सुनिए, निरंतर गाइए और निरंतर स्मरण कीजिए, मैं भी निरंतर बोल रहा हूं, निरंतर सुन रहा हूं, निरंतर स्मरण कर रहा हूं, किन्तु लिखने या लिखवाने का अवसर नहीं आया। लिखने का काम अब ज्ञानेश जी ने किया है।’ उन्होंने यह भी कहा, ‘मैं पुस्तिका को पढ़ रहा था, मेरे मन में बार-बार प्रश्न आ रहा था, क्या यह मैंने ही कहा था या ज्ञानेश जी को ही ज्ञान हो गया और उन्होंने लिख दिया। अब विश्वास नहीं होता, ये मेरे ही शब्द हैं। किन्तु ध्यान दीजिए, गीता बस एक बार श्री कृष्ण के मुख से निकली थी। ऐसा नहीं है कि जब कहा जाए, कृष्ण गीता सुनाने लगें, एक विशेष अवसर व प्रयोजन था, जब गीता अवतरित हुई।’
डॉ. जटाशंकर जी ने कहा, ‘धर्म प्रत्येक व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाने का कार्य करता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि धार्मिक आचरण, दूसरों की सेवा, दया, करुणा से व्यक्ति के दु:ख कम होते हैं।’ उन्होंने पुस्तिका में प्रवचन में उल्लिखित महर्षि वेदव्यास जी के श्लोक - को विशेष रूप से याद किया। इस श्लोक में महर्षि वेदव्यास कह रहे हैं कि मैं दोनों हाथ ऊपर उठाकर पुकार-पुकारकर कह रहा हूं, पर मेरी बात कोई नहीं सुनता। धर्म से मोक्ष तो सिद्ध होता ही है, अर्थ और काम भी सिद्ध होते हैं, तो भी लोग उसका सेवन क्यों नहीं करते? जटाशंकर जी ने कहा, ‘आज वास्तव में धर्म की पुकार को सुनने की आवश्यकता है। शास्त्र हमें समाधान बता सकते हैं, हमारे दु:ख दूर करने के उपाय बता सकते हैं।’
श्री बलदेवानंद सागर जी ने पुस्तिका के शीर्षक की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘बुरे आचरण के कारण ही दु:ख होता है। यह पुस्तिका एक पावन व प्रशंसनीय प्रयास है, पुस्तिका के माध्यम से रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी के विचार मुद्रित अवस्था में लोगों तक पहुंचेंगे, जिससे समाज और देश का भला होगा।’ प्रस्तुत पुस्तिका में स्वामी रामनरेशाचार्य जी का परिचय लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय जी ने कहा, ‘रामानंद संप्रदाय अकेला ऐसा संप्रदाय है, जिसमें सभी जाति और धर्म के लोगों के लिए जगह है। यह देश के लिए एक अत्यंत उपयोगी संप्रदाय है। यह देश को एक सूत्र में पिरोने का काम कर सकता है।’ उन्होंने स्वामी रामनरेशाचार्य जी की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘यह एक ऐसे सच्चे, सहज और प्रखर संत हैं, जिनसे देश को बहुत आशाएं हैं। देश में ऐसे संत बहुत कम हैं, जो वास्तव में देश और समाज के भले के लिए सोच रहे हैं।’
जयपुर से आए वरिष्ठ पत्रकार व पुस्तिका के संयोजक व संपादन सेवक ज्ञानेश उपाध्याय ने कहा, ‘आज के अत्यंत दुष्कर समय में महाराज स्वामी रामनरेशाचार्य जी के रूप में एक सूर्य उगा हुआ है, हमें अपने-अपने दरवाजे-झरोखे खोल लेने चाहिए और उनके प्रवचन प्रकाश को अपने भीतर उतरने देना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘यह पुस्तिका एक बड़े अभाव की छोटी पूर्ति है। यह एक सिलसिले की शुरुआत है, जो राम जी और जगदगुरु के आशीर्वाद से आगे निरंतर रहेगा।’ उन्होंने स्वामी रामनरेशाचार्य जी को समकालीन समाज और पत्रकारों के लिए अत्यंत उपयोगी बताते हुए और लोकार्पण स्थल के निकट ही बह रही गंगा जी की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘जैसे गंगा मैया की तुलना केवल गंगा मैया से हो सकती है, जैसे सागर की तुलना केवल सागर से हो सकती है, जैसे राम जी की तुलना केवल राम जी से हो सकती है, ठीक उसी प्रकार महाराज जी (स्वामी रामनरेशाचार्य जी) की तुलना केवल महाराज जी से ही हो सकती है।’
दु:ख क्यों होता है? - पुस्तिका के निर्माण में पग-पग पर सहयोगी रहे संस्कृत के जयपुरवासी रामभक्त विद्वान शास्त्री कोसलेन्द्रदास ने लोकार्पण कार्यक्रम का अत्यंत कुशल व व्यापक बहुमुखी संचालन करके इस अवसर को ऐतिहासिक और पावन बना दिया। उन्होंने पुस्तिका के मुद्रक प्रिंट ओ लैंड के स्वामी श्री सत्यनारायण अग्रवाल की भी प्रशंसा करते हुए कहा, ‘यह प्रयास था कि पुस्तिका ज्यादा मोटी या कीमती न हो, ऐसी हो कि सहजता से जन-जन तक पहुंचे और रामभक्ति का प्रसार हो।’ उन्होंने कहा, ‘रामभक्ति समाधान की संभावनाओं का अनंत आकाश है, जिसके माध्यम से हमारे सारे दु:ख दूर हो सकते हैं। यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि महाराज जी के आशीर्वाद से इंटरनेट पर आज एक ऐसा ब्लॉग है, जिसके माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने में जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी के श्रीमुख से निकले पावन मार्गदर्शक शब्द पूरे संसार में प्रचार-प्रसार पा रहे हैं। रामभक्ति की यह यात्रा सतत रहनी चाहिए।’
वाराणसी सेआए विद्वान एवं श्रीमठ के प्रकाशन का दायित्व संभालने वाले डॉ. उदय प्रताप सिंह ने लोकार्पण के अवसर पर उपस्थित विद्वजनों, संतों और श्रद्धालुओं का आभार जताते हुए कहा, ‘पुस्तिका के रूप में एक अच्छा प्रयास सामने आया है, महाराज के प्रवचन प्रकाशित हुए हैं, यह दायित्व मेरा था, लेकिन मीडिया में होने के कारण ज्ञानेश उपाध्याय मुझसे इस मामले में आगे निकल गए हैं। उनको मेरी तरफ से बधाई है।’
लोकार्पण के अवसर पर हरित माधव मंदिर में बड़ी संख्या में संत, विद्वजन, भक्त और सेवक उपस्थित थे, सभी ने रामभक्ति धारा और पुस्तिका का आनंद लिया। लोकार्पण के उपरांत भव्य भंडारे का भी आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में उपस्थित जनों ने प्रसाद पाया। कार्यक्रम स्थल के निकट ही ‘दु:ख क्यों होता है?’ पुस्तिका के लिए एक स्टॉल लगाई गई थी, जिस पर रखी सभी पुस्तिकाएं देखते-देखते बिक गईं। करीब ७८ पृष्ठ और २५ रुपये कीमत वाली पुस्तिका में श्री रामबहादुर राय द्वारा लिखित महाराज जी के परिचय के उपरांत महाराज जी के १३ प्रवचन अंश हैं और सबसे अंत में रामानंद संप्रदाय की मूल गद्दी वाराणसी में गंगा किनारे पंचगंगा घाट पर स्थित श्रीमठ पर लिखा गया एक फीचर है, जिसमें श्रीमठ के कल और आज के बारे में जाना जा सकता है। पुस्तिका के कवर पृष्ठ पर महाराज जी का चित्र और पिछले कवर पृष्ठ पर महाराज जी की प्रिय प्रार्थना महाकवि जयदेव रचित मंगलगीतम - श्रितकमलाकुचमण्डल. . . भी मुद्रित है।
जय श्री राम

Monday, September 17, 2012

हरतालिका तीज की कथा

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला अखंड सौभाग्य की कामना का व्रत हरतालिका तीज की कथा इस प्रकार से है-
कथानुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया. इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया. कई अवधि तक शूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया. माता पार्वती के इस अवस्था को देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे.
इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया. पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी. फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं. तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की अराधना में लीन हो गई.
भाद्रपद तृतीया शुक्ल के हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया. तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और फिर माता के इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया.
मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं

Sunday, September 16, 2012

जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी का चातुर्मास महोत्सव


जगदगुरु रामानन्दाचार्य पद पर प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज
के सान्निध्य में प्रयाग अर्थात इलाहाबाद में दिनांक ३ जुलाई २०१२ आषाढ़ पूर्णिमा से दिव्य चातुर्मास महोत्सव जारी है।इस दौरान कई तरह की मांगलिक प्रवृतियां समायोजित हो रही हैं। पूरे अनुष्ठान का विधिवत समापन ३० सितम्बर २०१२ को भाद्र पूर्णिमा के दिन होगा।
उल्लेखनीय है कि गंगा, यमुना के संगम की पावन धर्म नगरी प्रयाग आदि जगदगुरु रामानन्दाचार्य की जन्मस्थली है, अत: यहां जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज के चातुर्मास का अति विशेष महत्व है। तीर्थराज प्रयाग के ठाकुर हरित माधव मंदिर, ४५/४२, मोरी दारागंज की पावन स्थली पर जिसे जगदगुरु रामानंदाचार्य जी की प्राकट्य स्थली के नाम से जाना जाता है,उसी पावन स्थान पर स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज अपनी साधु-संत मंडली के साथ ९० दिनों तक विराजमान रहेंगे। इन नब्बे दिनों के दौरान अनेक धार्मिक कार्यक्रम नियमित रूप से होंगे, तो कुछ विशेष व दुर्लभ धार्मिक आयोजन भी होंगे। हिन्दू संतों में चातुर्मास की परंपरा का एक तरह से लोप हो गया था, जिसे स्वामी रामनरेशाचार्य जी ने एक तरह से पुनजीर्वित किया है, जिसे वे पूरे भक्ति, भाव निरंतर मनाते आ रहे हैं। इस दौरान वे संतों के साथ-साथ आम जनों को भी सहज उपलब्ध होते हैं, सुबह से देर रात तक भक्तों की शंकाओं का समाधान करते, उन्हें सच्ची रामभक्ति का मार्ग बताते जगदगुरु एक अदभुत, व्यापक व दुर्लभ छवि प्रस्तुत करते हैं। पिछले वर्ष आपने इन्दौर में चातुर्मास किया था और उसके पहले वर्ष सूरत में, वे भारत में घूम-घूमकर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में रामभक्ति की अलख जगाते रहे हैं। उनके चातुर्मास में देश भर से विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान भी जुटते रहे हैं।इसी कड़ी में विद्वतजन गोष्ठी और धर्माचार्य सम्मेलन, दलित सम्मेलन सरीखे कार्यक्रम भी हुए। बीते 2 सितम्बर को पत्रकार ज्ञानेश उपाध्याय द्वारा लिखित और संपादित पुस्तक दुख क्यों होता है का लोकार्पण भी हुआ। लोकार्पण समारोह के दौरान देश के जाने-माने पत्रकार रामबहादुर राय और प्रसिद्ध समाचार वाचक डॉ. बलदेवानंद सागर की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। दिनांक 16 सितम्बर को प्रयाग के संगम तट पर महाराजश्री के सानिध्य में श्रीमठ परिवार की ओर से महाभंडारे का आयोजन किया गया। इस मौके पर भव्य आरती और पूजन भी हुआ। आचार्यश्री ने संगम तट पर तीर्थ पुरोहितों और नाविको को दान-दक्षिणा भी प्रदान किया। जगदगुरु को अपने बीच पाकर वे अपने को गौरवान्वित महसूस करते नजर आए.

Tuesday, February 28, 2012

हनुमान चालीसा में चालीस दोहे ही क्यों हैं?


श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी हमेशा से ही सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं। शास्त्रों के अनुसार माता सीता के वरदान के प्रभाव से बजरंग बली को अमर बताया गया है। ऐसा माना जाता है आज भी जहां रामचरित मानस या रामायण या सुंदरकांड का पाठ पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से किया जाता है वहां हनुमानजी अवश्य प्रकट होते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए बड़ी संख्या श्रद्धालु हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि हनुमान चालिसा में चालीस ही दोहे क्यों हैं?

केवल हनुमान चालीसा ही नहीं सभी देवी-देवताओं की प्रमुख स्तुतियों में चालिस ही दोहे होते हैं? विद्वानों के अनुसार चालीसा यानि चालीस, संख्या चालीस, हमारे देवी-देवीताओं की स्तुतियों में चालीस स्तुतियां ही सम्मिलित की जाती है। जैसे श्री हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा, शिव चालीसा आदि। इन स्तुतियों में चालीस दोहे ही क्यों होती है? इसका धार्मिक दृष्टिकोण है। इन चालीस स्तुतियों में संबंधित देवता के चरित्र, शक्ति, कार्य एवं महिमा का वर्णन होता है। चालीस चौपाइयां हमारे जीवन की संपूर्णता का प्रतीक हैं, इनकी संख्या चालीस इसलिए निर्धारित की गई है क्योंकि मनुष्य जीवन 24 तत्वों से निर्मित है और संपूर्ण जीवनकाल में इसके लिए कुल 16 संस्कार निर्धारित किए गए हैं। इन दोनों का योग 40 होता है। इन 24 तत्वों में 5 ज्ञानेंद्रिय, 5 कर्मेंद्रिय, 5 महाभूत, 5 तन्मात्रा, 4 अन्त:करण शामिल है। सोलह संस्कार इस प्रकार है- 1. गर्भाधान संस्कार,2. पुंसवन संस्कार,3. सीमन्तोन्नयन संस्कार,४। जातकर्म संस्कार,5। नामकरण संस्कार ,6। निष्क्रमण संस्कार,7। अन्नप्राशन संस्कार ,८ चूड़ाकर्म संस्कार,9। विद्यारम्भ संस्कार ,10। कर्णवेध संस्कार,11।यज्ञोपवीत संस्कार ,12 वेदारम्भ संस्कार,13. केशान्त संस्कार ,14. समावर्तन संस्कार ,15. पाणिग्रहण संस्कार ,16. अन्त्येष्टि संस्कार

भगवान की इन स्तुतियों में हम उनसे इन तत्वों और संस्कारों का बखान तो करते ही हैं, साथ ही चालीसा स्तुति से जीवन में हुए दोषों की क्षमायाचना भी करते हैं। इन चालीस चौपाइयों में सोलह संस्कार एवं 24 तत्वों का भी समावेश होता है। जिसकी वजह से जीवन की उत्पत्ति है।

साभार-भास्कर दैनिक

Wednesday, February 15, 2012

स्वामी रामनरेशाचार्य का आलेख

असली मठ
कुछ वर्ष पहले दिल्ली मे विशाल मंदिर अक्षरधाम बना, कई बड़े-बड़े नेता आए, राष्ट्रपति आए और कहा गया कि यह देश का एक बड़ा पर्यटन स्थल होगा। यह बात बिल्कुल वैसी ही है जैसे कोई किसी दूल्हे को कहे कि तुम्हारी नाक टेढ़ी है, तू बड़ा कुरूप लगता है, अगर दूल्हे के संग बाराती दमदार हुए, तो वे उसे बिना मारे नहीं छोड़ेंगे। दूल्हा विष्णु होता है, उसकी नाक टेढ़ी होती है क्या? यदि मैं दूल्हा होता और ऎसे कोई मुझे बोलता, तो शादी होती न होती, जेल भले चले जाता, लेकिन बिना मारे नहीं छोड़ता! नेताओं ने मंदिर को कहा कि देश का बड़ा भारी पर्यटन स्थल बन गया।

वो शंकराचार्य कैसे थे, जिन्होंने चार मठों की स्थापना की, जिन्हें दुनिया सबसे बड़ा मठ मानती है। विशाल बगीचा लगा देने से, खूब सजा देने से या आलीशान भवन बना देने से मठ नहीं बनते। जहां सत्य चिंतन हो, जहां संयम, नियम सिखलाया जाए और शास्त्रों का अध्ययन कराया जाए, उसे मठ कहते हैं। मठ में केवल मंदिर से नहीं चलेगा, मठ केवल गोशाला से नहीं चलेगा। मठ का अपना स्वरूप है, विद्यालय वहां न हो तो कोई बात नहीं, वहां जो बड़े संत होते हैं, उनके पास बैठकर जिज्ञासाएं शांत होती हैं, जिन्हें देखकर ही शांति मिलती है, भक्ति भाव उत्पन्न होता है, ऎसा हो, तभी मठ बनता है। जहां अध्यात्म शास्त्र के जिज्ञासुओं को रखा जाए, धर्म शास्त्र पढ़ाया-सिखाया जाए, भोजन कराया जाए, वह ही असली मठ है।
- स्वामी रामनरेशाचार्य
साभार - राजस्थान पत्रिका

swami ramnareshacharya image




गुरुवर swami ramnareshacharya की कुछ पुरानी तस्वीरें





Sunday, January 29, 2012

ज्योतिष सम्मेलन में स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज

ज्योतिष में शोधपरक कार्य की जरूरत : रामनरेशाचार्य

Updated on: Sat, 21 Jan 2012 09:16 PM (IST)
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ज्योतिष में शोधपरक कार्य की जरूरत : रामनरेशाचार्य

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : बिना किसी औषधि के ज्योतिष के माध्यम से जटिल रोगों का किये जा रहे उपचार से सारा विश्व आश्चर्यचकित है। आज ज्योतिष के ज्ञान को सीमित दायरे से हटाकर शोधपरक करने की जरूरत है, ताकि उससे पूरे विश्व की समस्याओं का समाधान हो सके। यह विचार रामानन्दाचार्य जगद्गुरु रामनरेशाचार्य ने शनिवार को भारतीय विद्या भवन में आई कास द्वारा संचालित ज्योतिष कक्षाओं के सत्रारम्भ एवं उत्तीर्ण छात्रों के लिए आयोजित दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए।

अध्यक्षता कर रहे डीआइजी स्थापना लालजी शुक्ल ने कहा कि ज्योतिष ऐसा प्रकाश है जिससे केवल मनुष्य की समस्याएं ही नहीं बल्कि उसके अंत:करण का अज्ञान दूर होता है। देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि ज्योतिष के बिना अन्य शास्त्रों का ज्ञान भी अधूरा है। आचार्य अविनाश राय ने ग्रहों का आंकलन कर बताया कि आने वाले चुनाव में अशांतिमय की स्थिति रहेगी। आचार्य त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी ने ज्योतिष के शोधपूर्ण अध्ययन पर जोर दिया। भारतीय विद्या भवन के निदेशक व आई कास के वरिष्ठ उपाध्यक्ष डा.रामनरेश त्रिपाठी ने ज्योतिष शिक्षा के लिए किये जा रहे कार्यो पर प्रकाश डाला। आशुतोष वाष्र्णेय ने स्वागत व संचालन ज्योतिर्विद गुंजन वाष्र्णेय ने किया। चार वर्षीय कृति वाष्र्णेय ने ग्रह नक्षत्रों की जानकारी दी। समारोह में उत्तीर्ण छात्रों को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।

Sunday, January 22, 2012

स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज जन्मदिन जयपुर में..

रामानंद संप्रदाय के प्रमुख व देश की शास्त्र परंपरा के शिखर मनीषी जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज,श्रीमठ,पंचगंगा घाट,काशी का पावन जन्मदिन महोत्सव इस बार जयपुर में समायोजित है। वसंत पंचमी के पावन सुअवसर पर आप सादर आमंत्रित हैं।

Sunday, January 15, 2012

रामानंदाचार्य पुरस्कार वितरण समारोह के चित्र





डॉ.विवेकी राय को जगदगुरु रामानंदाचार्य पुरस्कार

वाराणसी। जगदगुरु रामानंदाचार्य जयंती के उपलक्ष्य में तीन दिवसीय समारोह का श्रीगणेश शनिवार को धर्माचार्यों के सानिध्य में हुआ। प्रथम दिन पियरी स्थित श्रीमठ की शाखा श्रीविहारम परिसर में आयोजित सम्मान समारोह में हिंदी और भोजपुरी की स्वनामधन्य साहित्यकार डा. विवेकी राय को रामानंदाचार्य सम्मान से विभूषित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें एक लाख रुपये की धनराशि प्रदान की गई।

जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य एवं गोपाल मंदिर के षष्ठपीठाधीश्वर श्याम मनोहर महाराज के सानिध्य में साहित्यसेवी डा. विवेकी राय को सम्मानित किया गया। स्वामी रामनरेशाचार्य ने उनका तिलक कर एक लाख की राशि का चेक प्रदान किया तो श्याममनोहर महाराज ने उन्हें प्रशस्तिपत्र प्रदान किया।

जगद्गुरु रामानंदाचार्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर कार्य करने वाले नगर के 22 साहित्यसेवियों का भी समारोह में अभिनंदन किया गया। इनमें प्रो. बलराम पांडेय, डा. राममूर्ति चतुर्वेदी, प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी, प्रो. सुधाकर मिश्र, डा. जितेंद्रनाथ मिश्र, डा. रणजीत सिंह, डा. जगदीश त्रिपाठी, डा. जगदीश प्रसाद मिश्र, परमानंद आनंद, प्रो. अरविंद पांडेय, प्रो. प्रभुनाथ द्विवेदी, डा. पवनकुमार शास्त्री, डा. बलबीर सिंह, डा. समुन जैन, डा. ऋचा सिंह, बृजेश पांडेय के अलावा इटैलियन युवती दानिएला बेवीलाकुवा शामिल हैं। समारोह में संतद्वय के आशीर्वचन से पूर्व प्रो. युगेश्वर, प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी, प्रो. बंशीधर त्रिपाठी ने विचार व्यक्त किए।समारोह का संचालन डा. यूपी सिंह ने किया।


साहित्यकार होने का अहंकार है मुझे
वाराणसी। मैं गरीब साहित्यकार हूं। मेरे पास कार नहीं है लेकिन साहित्यकार होने का अहंकार जरूर है। किंतु आज इस सभा में उस अहंकार को भी गाजीपुर में ही छोड़ कर आया हूं। यह बातें सम्मान से अभिभूत डा. विवेकी राय ने शनिवार को श्रीविहारम में आयोजित समारोह में कहीं। उन्होंने पुराने संस्मरण भी सुनाए। बताया, मुझे याद आता है दिल्ली का वह समारोह जब श्रीरामनरेशाचार्य महाराज के सानिध्य मेें समारोह हो रहा था। उनके आदेश पर पहले मुझे रामनामी ओढ़ाई गई। कुछ देर बाद ही रामनामी की जगह एक कीमती शाल ओढ़ा दी गई। मुझे लगा, शायद अभी मैं वैराग्य के योग्य नहीं हुआ हूं। पूरी तरह संसारी हूं इसलिए रामनामी लेकर शाल दी गई है। अब आप फिर मुझे माया सौंप रहे हैं। कम से कम अब तो मुझे राम नाम का महामंत्र दे ही दीजिए।