Monday, October 24, 2011

श्रीमठ संगीत महोत्सव आरंभ

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शरद पूर्णिमा पर सुर ताल की महफिल
First Published: 01-11-10 12:08 AM
Last Updated: 01-11-10 12:13 AM
रवींद्र मिश्र
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कहते हैं भगवान की आराधना में संगीत का उद्गम मंदिरों के परिसर में हुआ। इस समय संगीत की प्राचीन सनातन परंपरा को जीवंत करने में कई धार्मिक संस्थान और मठ सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। उनमें वाराणसी के श्रीमठ के रामनरेशाचार्य हैं।

उन्होंने स्पीकमैके के सहयोग से भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य का भव्य श्रीमठ संगीत महोत्सव बनारस के पंचगंगा घाट पर शरदपूर्णिमा की रात को आयोजित करते रहे है। चंदा की चांदनी के मुक्ताकाश में गंगा के किनारे संगीत के स्वरों और जलधारा की लहरों का जो तारतम्य जुड़ रहा था, उसके रसपान की अभिव्यक्ति शब्दों से नहीं, बल्कि वहां उपस्थित रह कर ही की जा सकती है।

मंगलाचरण के रूप शंखनाद और श्लोक उच्चारण से श्रीमठ संगीत महोत्सव का आरंभ हुआ। समारोह में संगीत की शुरुआत मशहूर संतूर वादक पंडित भजन सोपोरी ने राग मारवा से की। कश्मीर घाटी में सोपोरी परिवार का संतूर से गहरा रिश्ता है। भजन जी ने इस वादन में अपनी एक अलग शैली इजाद की है। उन्होंने इस सपाट तारों के वाद्य में ध्रुपद अंग को जोड़ने में एक उल्लेखनीय काम किया है।

राग मारवा ध्रुपद का बहुत प्रभावी राग है, उसी ध्रुपद अंग के चलन में इस राग को रंजकता से भजन सोपोरी ने प्रस्तुत किया। तीनताल में निबद्ध राग पूरिया कल्याण की दो बंदिशों को पेश करने में उनका अंदाज बड़ा सरस था। उनके साथ तबले पर अकरम ने भी अपनी थिरकती उंगलियों का जादू दिखाया।

ध्रुपद में डागरवाणी के वरिष्ठ उस्ताद रहीम फहीमउद्दीन डागर ने राग चंद्रकौंस को आलाप में विस्तार से पेश करते राग की परत-दर-परत को बड़ी संजीदगी से खोला। इसके रागात्मक रूप में तांडव और लास्य दोनों का मर्मस्पर्शी भाव उनके गायन में प्रगट हुआ। प्रवीण आर्य की पखावज संगत पर सुर और ताल का बेजोड़ मेल इस प्रस्तुति में था। राग धमार और तोड़ी की प्रस्तुति में ध्रुपद का दुर्लभ चलन उनके गायन में दिखा।

भरतनाट्यम की सुपरिचित नृत्यांगना गीता चंद्रन का वर्चस्व नृत्य के हर पक्ष में नज़र आया। इस महोत्सव में उन्होंने अपनी शिष्याओं के साथ परंपरागत भरतनाट्यम को सरसता से प्रस्तुत किया। राग हंसध्वनि में निबद्ध मल्लारी में शिव और कृष्ण के लालित्य रूपों को नृत-नृत्य अभिनय से दर्शाने में एक सुंदर संकल्पना गीता की थी।

गीता चंद्रन द्वारा भक्तिभाव में पंचाक्षर स्त्रोत की प्रस्तुति के बाद शरद ऋतु में कृष्ण और गोपियों के महारास को इस नृत्य शैली में जिस जीवंतता और मोहकता से गीता और उनकी शिष्याओं ने प्रस्तुत किया, वह वाकई में रोमांचित करने वाला था। बनारस की गिरजा देवी ने ठेठ बनारसी रंग में ठुमरी और दादरा अपनी शिष्या मालिनी अवस्थी और शुचिता के साथ प्रस्तुत किया।

गंगा, श्रीगणेश, पार्वती की स्तुति और राग यमन कल्याण की शुद्ध रागदारी में विलंबित और छोटा खयाल गाने के बाद मिश्र खमाज में ठुमरी शुरू करते ही उन्होंने समां बांध दिया। बंदिश सांवरिया को देखे बिना नाही चैन’ गायन में नायिका के मनोभावों की अभिव्यक्ति में बनारसी बोली की चाशनी उनके स्वरों में चढ़कर बह रही थी। ताल दादरा की लहकती लय में उन्होंने दो रचनाओं को हमेशा की तरह अपने अनूठे अंदाज में प्रस्तुत किया।

रुद्रवीणा वादक उस्ताद असद अली खां ने अपने बेटे अली जकी हैदर के साथ बीनकारी अंग में राग दरबारी कन्हरा को अपने अनूठे अंदाज में गहराई से प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का समापन 102 साल के बुजुर्ग और प्राचीन गायकी के गवाह उस्ताद अब्दुल रशीद खां ने अपने रचित राग नर पंचम, सावनी विहाग तराना, ठुमरी, भजन आदि की प्रस्तुति से किया। गायन में उनकी एक अलग ही शैली नजर आ रही थी

श्रीमठ संगीत महोत्सव संपन्न

सुरसरि के तट पर सुरों की सरिता
( श्रीमठ संगीत महोत्सव का समापन)

वाराणसी। उत्तर और दखिण की दो संगीत धाराओं का मिलन गुरुवार की रात्रि में सुरसरि के तट पर हुआ। कश्मीर की वादियों में अखरोट की खूंटियों के स्नेहित स्पर्श से मुखर होने वाले साज संतूर से पं. शिव प्रसाद शर्मा ने सुरों की सरिता प्रवाहित की। तो इससे पहले कर्नाटक के पं. जयतीर्थ मेवुंडी ने कंठ संगीत के माध्यम से काशी के श्रोताओं को कायल किया।
यह सब हुआ श्रीमठ संगीत समारोह की समापन निशा में। गोजागरी पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय संगीत समारोह की अंतिम निशा में पं. शिवकुमार शर्मा के संतूर का जादू श्रोताओं के सिर चढ़ कर बोला। खिली चांदनी में नहाई रात में जब सुकोमल वाद्य संतूर पर पं. शिवकुमार शर्मा की अंगुलियों का जादू श्रोताओं के लिए यादगार बन गया। उन्होंने राग कौशिक कान्हड़ा से वादन की शुरुआत की। तीन बंदिशें और अंत में पहाड़ी धुन बजाई। एक बंदिश रूपक ताल में जबकि शेष दो रचनाएं तीन ताल में निबद्ध थीं। इससे पूर्व कर्नाटक के किरानिया गायक पं. जयतीर्थ मेवुंडी का गायन हुआ। उन्होंने अपने दादागुरु पं. भीमसेन जोशी द्वारा विरचित रागकलाश्री की अवतारण की। बंदिश के बोल थे धन धन भाग सुहाग तेरे...। इससे पूर्व विलंबित एक ताल में आज सुवन आए और द्रुत तीन ताल में बहुत दिन बीते सुना कर श्रोताओं को अपने वश में कर लिया। राग मिश्र पीलू में उस्ताद अब्दुल करीब खां साहब की बंदिश सोच समझ नाराद में आलापचारी और चैनदारी दोनों ही निखर कर सामने आई। उनके साथ सारंगी पर पं. संतोष मिश्र ने लहरा दिया तो तानपुरा पर सरोज शर्मा, तबला पर किशन राम डोहकर और हारमोनियम पर आशोक झा ने संगत की। जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज के सानिध्य में संपूर्ण आयोजन अपनी पूर्णता को प्राप्त हुआ।

अब घाट-घाट पर बजाने का मजा मिला-पं.शिवकुमार मिश्र

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वाराणसी। अब तक काशी के कई मंदिरों में बजाया। गंगा महोत्सव में घाट पर बजाया। अब श्रीमठ के आयोजन में शामिल होने के बाद मैं कह सकता हूं कि मैंने काशी के घाट-घाट पर संतूरवादन का सुख लिया है। यह अभिव्यक्ति है पं. शिवकुमार शर्मा की जो गुरुवार को पंचगंगा घाट स्थित श्रीमठ की ओर से आयोजित संगीत समारोह में सहभागिता करने आए थे। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत की ओर युवाओं का रुझान कम नहीं हुआ है। स्पीक मैके के आयोजनों की तेजी से विस्तृत होती शृंखला इस बात का एक उदाहरण है। ऐसे कई उदाहरण हमारे आसपास भरे पड़े हैं। हां इतना अवश्य है कि युवा पीढ़ी में धीरज की कमी है। कुछ कलाकारों को छोड़ दें तो अधिकतर में यह अभाव खटकता है। रातों रात छा जाने की तमन्नाओं को रियलिटी शो ने और भी परवान चढ़ाया है।

सौजन्य- अमर उजाला

: Friday, October 14, 2011

जबलपुर में श्रीराम महायज्ञ

रामभक्ति परंपरा और रामानंद सम्प्रदाय के एकमात्र मूल आचार्यपीठ श्रीमठ काशी यूं तो वर्षभर कोई न कोई मांगलिक आयोजन करते हीं रहता है। अभी काशी में तीन दिवसीय शरद सांस्कृतिक महोत्सव संपन्न हुए चंद दिन हीं बीते थे कि आचार्यश्री अब जबलपुर में होने जा रहे शतकोटि होमात्मक श्रीराम महायज्ञ की तैयारी में जुट गये हैं। जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामीश्री रामनरेशाचार्यजी महाराज के पावन सानिध्य में जबलपुर के जिलहरी घाट पर होने वाले इस महायज्ञ की तैयारियां अब अंतिम चरण में हैं। मां नर्मदा के तट पर 29 अक्टूबर से आरंभ होकर ये यज्ञ 4 नवम्बर को पूर्ण होगा। एक दिन पहले यानि 28 अक्टूबर को हीं भव्य शोभायात्रा का समायोजन किया गया है। कोटि होमात्मक श्रीराम महायज्ञ में भाग लेने के लिए देश भर से साधु-संत,प्रवचनकर्ता, याज्ञिक पंडित और श्रद्धालु आने वाले हैं। आयोजकों ने इस निमित्त खास प्रबंध किये हैं।
श्रीराम महायज्ञ में कोटि देवताओं का आवाहन किया जाएगा। सामूहिक भंडारे का कार्यक्रम अनवरत ढंग से चलेगा। संत पुरुषों के श्रीमुख से ज्ञानगंगा की रसधारा बहेगी। जबलपुर और उसके आसपास के श्रीराम भक्तों और रामानंदी वैष्णव संतों को इस आयोजन का इंतजार है। उन्हें देश भर से आने वाले संत-महात्माओं के दर्शन और पूजन का एक साथ लाभ प्राप्त होगा , साथ हीं यज्ञीय कर्मकांडों में शामिल होकर जीवन को परम धन्य बनाने का सुअवसर भी प्राप्त हो जाएगा। आइए हम इस यज्ञ के सफल आयोजन के लिए परम प्रतापी प्रभु श्रीराम का आह्वान करें और इस यज्ञ में तन-मन-धन से शामिल होकर अपने जीवन को सफल बनावें..

Friday, October 7, 2011

प्रभु श्रीराम

राम सिर्फ नाम नहीं



भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार राम सिर्फ एक नाम नहीं अपितु एक मंत्र है, जिसका नित्य स्मरण करने से सभी दु:खों से मुक्ति मिल जाती है। राम शब्द का अर्थ है- मनोहर, विलक्षण, चमत्कारी, पापियों का नाश करने वाला व भवसागर से मुक्त करने वाला। रामचरित मानस के बालकांड में एक प्रसंग में लिखा है-
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू।।

अर्थात कलयुग में न तो कर्म का भरोसा है, न भक्ति का और न ज्ञान का। सिर्फ राम नाम ही एकमात्र सहारा हैं।
कलियुग केवल नाम आधारा, सुमिरि- सुमिरि नर उतरही पारा

स्कंदपुराण में भी राम नाम की महिमा का गुणगान किया गया है-

रामेति द्वयक्षरजप: सर्वपापापनोदक:। गच्छन्तिष्ठन् शयनो वा मनुजो रामकीर्तनात्।।

एडम निर्वर्तितो याति चान्ते हरिगणो भवेत्।

अर्थात यह दो अक्षरों का मंत्र(राम) जपे जाने पर समस्त पापों का नाश हो जाता है। चलते, बैठते, सोते या किसी भी अवस्था में जो मनुष्य राम नाम का कीर्तन करता है, वह यहां कृतकार्य होकर जाता है और अंत में भगवान विष्णु का पार्षद बनता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जो शक्ति भगवान की है उसमें भी अधिक शक्ति भगवान के नाम की है। नाम जप की तरंगें हमारे अंतर्मन में गहराई तक उतरती है। इससे मन और प्राण पवित्र हो जाते हैं, बुद्धि का विकास होने लगता है, सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, मनोवांछित फल मिलता है, सारे कष्ट दूर हो जाते हैं, मुक्ति मिलती है तथा समस्त प्रकार के भय दूर हो जाते हैं।

Wednesday, October 5, 2011

संस्कृत प्रेमी मेरे आचार्य


संस्कृत का संरक्षण मेरा उद्देश्य-स्वामी रामनरेशाचार्य

बारह साल की उम्र में बिहार के भोजपुर जिले के अपने गांव परसिया छोड़कर साधु बने स्वामी रामनरेशाचार्य संस्कृत में निरंतर लुप्त हो रही हजारों साल पुरानी न्याय दर्शन, वैशेषिक और वैष्णव दर्शन की परंपरा को पुनर्जीवित करने में लगे हुए हैं। काशी की विद्वत परंपरा के विद्वान आचार्य बदरीनाथ शुक्ल से 10 वर्षो तक विद्याध्ययन करने के बाद रामनरेशाचार्य ने ऋषिकेश के कैलाश आश्रम में बिना किसी जाति-पांति व वर्ग का भेद किए हजारों विद्यार्थियों व साधुओं को न्याय दर्शन, वैशेषिक मिमांसा और वैष्णव दर्शन पढ़ाया। संस्कृत के दुर्लभ व लगभग अप्राप्त ग्रंथों का प्रकाशन कर रामनरेशाचार्य ने विलुप्त होते अनेक ग्रंथों को भी बचाया है।

अपने जीवन के छह दशक पूरे कर रहे रामनरेशाचार्य काशी में जगद्गुरू रामानंदाचार्य के मुख्य आचार्य पीठ "श्रीमठ" में 1988 से "जगद्गुरू रामानंदाचार्य" के पद पर अभिषिक्त होने के बाद भी अनेक देसी-विदेशी छात्रों को संस्कृत मे निबद्ध भारतीय दर्शन की जटिल शास्त्र प्रक्रिया को निरंतर सहज रूप से पढ़ा रहे हैं। देश के अनेक क्षेत्रों में संस्कृत विद्यालयों की स्थापना कर रामनरेशाचार्य विद्यार्थियों को सारी सुविधाएं भी निशुल्क ही उपलब्ध करवाते हैं। आदिवासी क्षेत्र में रामनरेशाचार्य ने संस्कृत की एक ऎसी अलख जगाई है कि वहां स्थापित विद्यालयों में हजारों छात्र समान रूप से बिना किसी भेद-भाव के संस्कृत पढ़ रहे हैं। संस्कृत भाषा के रक्षक-संरक्षक के रूप में स्वामीवर का नाम पूरी दुनिया में श्रद्धा से लिया जाता है।
साभार-पत्रिका

Tuesday, October 4, 2011

जगदगुरु स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी के कार्यक्रम

आगामी यात्रायें-
६ अक्टूबर को जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्यजी महाराज जोधपुर से चलकर सड़क मार्ग से जबलपुर पहुंचेगें, जहां के नर्मदा तट पर जिलहरी घाट स्थित प्रेमानंद आश्रम विशाल यज्ञ की तैयारी चल रही है। महाराजश्री वहां संभवतः ९ अक्टूबर तक विराजेंगे। तदुपरांत वाराणसी के लिए प्रस्थान करेंगे।
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श्रीमठ संगीत महोत्सवः
आगामी 11-12-13 अक्टूबर को काशी के प्रसिद्ध पंचगंगा घाट पर जगदगुरुजी के सानिध्य में शरद पूर्णिमा के पावन सुअवसर पर भव्य शास्त्रीय संगीत सभा का आयोजन होगा। जिसमें विख्यात शास्त्रीय संगीत गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र, राजन-साजन मिश्र सहित अन्य अनेक संगीतज्ञ भाग लेंगे।
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जबलपुर में श्रीराम महायज्ञः
२७ अक्टूबर को जगदगुरु
प्रेमानंदश्रम, जिलहरी घाट, जबलपुर पधारेंगे,
जहाँ २९ अक्टूबर को सत्मुख कोटि होमात्मक श्रीराम महायज्ञ प्रारंभ होगा, जो ४ नवम्बर तक चलेगा.
इस महायज्ञ के यज्ञाचार्य जयपुर के प्रकांड पंडित श्री उमाशंकर शास्त्री जी होंगे. महायज्ञ में बनारस, जयपुर सहित भारत के अनेक राज्यों के २०० से ज्यादा वैदिक एवं पौराणिक विद्वान पंडित भाग लेंगे.