Saturday, September 24, 2011

सनातन घर्म में उपनयन (जनेऊ) का महत्व

क्यों पहनते हैं जनेऊ ...

यज्ञोपवीत (जनेऊ) एक संस्कार है। इसके बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। यज्ञोपवीत धारण करने के मूल में एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि भी है। शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह कार्य करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कटि प्रदेश तक स्थित होती है। यह नैसर्गिक रेखा अति सूक्ष्म नस है। इसका स्वरूप लाजवंती वनस्पति की तरह होता है। यदि यह नस संकोचित अवस्था में हो तो मनुष्य काम-क्रोधादि विकारों की सीमा नहीं लांघ पाता। अपने कंधे पर यज्ञोपवीत है इसका मात्र एहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से परावृत्त होने लगता है। यदि उसकी प्राकृतिक नस का संकोच होने के कारण उसमें निहित विकार कम हो जाए तो कोई आश्यर्च नहीं है। इसीलिए सभी धर्मों में किसी न किसी कारणवश यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। सारनाथ की अति प्राचीन बुद्ध प्रतिमा का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उसकी छाती पर यज्ञोपवीत की सूक्ष्म रेखा दिखाई देती है। यज्ञोपवीत केवल धर्माज्ञा ही नहीं बल्कि आरोग्य का पोषक भी है, अतएव एसका सदैव धारण करना चाहिए। शास्त्रों में दाएं कान में माहात्म्य का वर्णन भी किया गया है। आदित्य, वसु, रूद्र, वायु, अगि्न, धर्म, वेद, आप, सोम एवं सूर्य आदि देवताओं का निवास दाएं कान में होने के कारण उसे दाएं हाथ से सिर्फ स्पर्श करने पर भी आचमन का फल प्राप्त होता है। यदि ऎसे पवित्र दाएं कान पर यज्ञोपवीत रखा जाए तो अशुचित्व नहीं रहता।
यथा-निवीनी दक्षिण कर्णे यज्ञोपवीतं कृत्वा मूत्रपुरीषे विसृजेत। अर्थात अशौच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ रखना आवश्यक है। अपनी अशुचि अवस्था को सूचित करने के लिए भी यह कृत्य उपयुक्त सिद्ध होता है। हाथ पैर धोकर और कुल्ला करके जनेऊ कान पर से उतारें। इस नियम के मूल में शास्त्रीय कारण यह है कि शरीर के नाभि प्रदेश से ऊपरी भाग धार्मिक क्रिया के लिए पवित्र और उसके नीचे का हिस्सा अपवित्र माना गया है। दाएं कान को इतना महत्व देने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस कान की नस, गुप्तेंद्रिय और अंडकोष का आपस में अभिन्न संबंध है। मूत्रोत्सर्ग के समय सूक्ष्म वीर्य स्त्राव होने की संभावना रहती है। दाएं कान को ब्रrासूत्र में लपेटने पर शुक्र नाश से बचाव होता है। यह बात आयुर्वेद की दृष्टि से भी सिद्ध हुई है। यदि बार-बार स्वप्नदोष होता हो तो दायां कान ब्रrासूत्र से बांधकर सोने से रोग दूर हो जाता है।
बिस्तर में पेशाब करने वाले लडकों को दाएं कान में धागा बांधने से यह प्रवृत्ति रूक जाती है। किसी भी उच्छृंखल जानवर का दायां कान पकडने से वह उसी क्षण नरम हो जाता है। अंडवृद्धि के सात कारण हैं। मूत्रज अंडवृद्धि उनमें से एक है। दायां कान सूत्रवेष्टित होने पर मूत्रज अंडवृद्धि का प्रतिकार होता है। इन सभी कारणों से मूत्र तथा पुरीषोत्सर्ग करते समय दाएं कान पर जनेऊ रखने की शास्त्रीय आज्ञा है।

Saturday, September 17, 2011

इंदौर चातुर्मास संपन्न

का इंदौर चातुर्मास संपन्न

जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी का इंदौर चातुर्मास आज संपन्न हो गया, गीता भवन इंदौर में चातुर्मास काल में महाराज जी के दर्शन के लिए देश और विदेश से भी भक्त पधारे। हिन्दू धर्माचार्यों में स्वामी जी का चातुर्मास बहुत महत्व रखता है, आम तौर पर चातुर्मास अत्यंत कठिन और पवित्र विधान है, स्वामी जी ने चातुर्मास की परंपरा को एक तरह से पुनर्जीवन दिया है. चातुर्मास काल में स्वामी जी का सानिध्य अत्यंत लाभकारी और उर्जावान हो जाता है. वे अपनी सम्पूर्ण उपस्थिति से राम भाव का संचार करते अनुभूत होते हैं. वे ऐसे महात्मा हैं, जिनके सामने अरबपति से लेकर गरीब तक सबका समान महत्व है. इस पावन काल में न केवल उनके भक्त बल्कि देश भर के विद्वान और संत महात्मा भी जुटते हैं, ऐसे ऐसे महत्मा जुटते हैं जिनके दर्शन आम दिनों में संभव नहीं. उनके तत्वावधान में केवल ब्राहमण सभा ही नहीं होती, स्वामी जी हरिजन बस्तियों में भी जाते हैं और अपने श्रीमठ की उपयोगिता एवं परम्परा का निर्वहन करते हैं.
इस बार चातुर्मास महोत्सव के महत्वपूर्ण आयोजन निम्नलिखित हैं
गुरु पूजन - व्यास पूजन महायज्ञ, सम्पूर्ण श्रावण मास में सामूहिक रुद्राभिषेक (सोमवार को विशेष ), रास्ट्रीय संत सम्मेलन, विद्वतजन गोष्ठी, धर्माचार्य सम्मेलन, स्थानीय देवी का विशेष पूजन, हरिजन बस्तियों में सम्मेलन, राम्भावाभिशिक्त महानुभावों का अभिनन्दन एवं प्रकाशन, बालक-बालिका एवं पौढ़ महानुभावों का संस्कार शिविर, भक्तों के घरों में पधरावनी महायज्ञ, परमाराध्य श्री रामजी का राजोपचार पूजन महायज्ञ, श्री राम को छप्पन भोग व भंडारा, गायक-वादक सम्मेलन, राम जी की गीता भवन परिक्रमा. अखंड श्री रामनाम संकीर्तन महायज्ञ, प्रवचन महायज्ञ - प्रतिदिन संध्या ५ से ७ बजे तक, संतों, भक्तों और आगंतुकों हेतु पवित्र भंडारा. इत्यादि. इसके अतिरिक्त चातुर्मास काल में पड़ी २२ से ज्यादा पावन तिथियों पर विशेष आयोजन भी चातुर्मास काल में हुए हैं.
वे २००९ में जयपुर में और २०१० में सूरत में चतुर्मास कर चुके हैं, दिल्ली में उन्होंने २००४ में चातुर्मास किया था. अगला चातुर्मास संभवतः इलाहाबाद या पटना में होगा.