Friday, January 16, 2009

देवभूमि हरिद्वार में आकार ले रहा है विश्व का सबसे बड़ा श्रीराम मंदिर

आपको ये जानकार सुखद आनंद औ आश्चर्य होगा कि देवभूमि हरिद्वार में विश्व का अद्वितीय श्रीराम मंदिर का निर्माण हो रहा है. ये मंदिर ह दृष्टिकोण से अनुपम होगा और आकार -प्रकार में दुनिया का सबसे बड़ा श्रीराम मंदिर होगा..इस मंदिर का निर्माण श्रीमठ ,पंचगंगा घाट,काशी के नियंत्रणाधीन जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्मारक सेवा न्यास के द्वारा हो रहा है..काशी का श्रीमठ -सगुण एवं निर्गुण राम भक्ति परम्परा और रामानंद सम्प्रदाय का एकमात्र मूल आचार्यपीठ है..इस अद्वितीय श्रीराम मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया है,श्रीमठ के वर्तमान पीठाधीश्वर और अनंतश्री विभूषित जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज ने..मंदिर का शिलान्यास सह भूमि पूजन कर्नाटक के उड्डपी स्थित पेजावर स्वामी जगद्गुरु मध्वाचार्य स्वामी श्रीविश्वेशतीर्थ जी महाराज के कर कमलों द्वारा 18 नवंबर 2005 को हुआ था..

श्रीराम मंदिर के संकल्पक जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज ने मंदिर निर्माण के उद्देश्यों पर समय-समय पर प्रकाश डाला है..आचार्यश्री के अनुसार अनादिकाल से अपने सम्पूर्ण विकास

के लिए मानवता को श्रीरामीय भावों की परमापेक्षा है,इसका कोई भी विकल्प न आज है न कभी होगा,इसे अपने-अपने साम्प्रदायिक चहारदीवारियों से निकलकर चिन्तनशील महानुभावों को स्वीकार करना हीं होगा.संसार के जो महामनीषी श्रीराम को परमेश्वर के रूप में स्वीकार नहीं करते वे भी उन्हें विश्व इतिहास का सर्वश्रेष्ठ मानव तो मानते हीं हैं..कल्पना और भौतिक विकास के इस चरमोत्कर्ष काल में भी विश्व के किसी भी जाति-सम्प्रदाय और धर्म के पास श्रीराम जैसा चरित्रनायक नहीं है.जबकि सभी को अपेक्षा है. वर्तमान संसार की अखिल संस्कृतियां श्रीराम संस्कृति की हीं जीर्ण-शीर्ण-विकृत और मिश्रित स्वरूप हैं..यह संस्कृति-अनुसंघान महानायकों की प्रबलतम भावना है..ऐसे श्रीराम का मंदिर कहां नहीं होना चाहिए,अर्थात सर्वत्र होना चाहिए. संसार के सभी क्षेत्रों,कालों एवं दिशाओं में होना चाहिए. तभी मानवता का पूर्ण विकास होगा..

स्वामी रामनरेशाचार्यजी महाराज कहते हैं कि इन्हीं भावों को ध्यान में रखकर श्रीसम्प्रदाय तथा सगुण एवं निर्गुण रामभक्ति परंपरा के मूल आचार्यपीठ श्रीमठ ,काशी ने हरिद्वार में अद्वितीय श्रीराममंदिर निर्माण का संकल्प श्रीरामजी की प्रेरणा एवं अनुकम्पा से किया है. श्रीसम्प्रदाय के परमाचार्य तथा परमाराध्य श्रीराम हीं हैं..

हरिद्वार में श्रीराम मंदिर क्यों--

इतिहास साक्षी है कि श्रीसम्प्रदाय के आचार्यो ने रामभक्ति -परम्परा का मुख्यतीर्थ अयोध्या को छोड़कर काशी को अपना मुख्यालय बनाया. आचार्यों की इस क्रांति ने रामभक्ति को अपूर्व तीव्रता प्रदान की और शैवों एवं वैष्णवों की कलंकभूता वैमनस्यता का समूलोच्छेद किया.अतएव हरिद्वार में श्रीराम मंदिर का निर्माण अव्यवहारिक तथा अमर्यादित नहीं है..हरिद्वार तो चारघामों में सुप्रतिष्ठित बद्रीधाम का द्वारभूत है..रामभक्ति स्वरूपा परम पावनी गंगा का प्रथम अवतरण स्थल तथा कुम्भ स्थल है..अतएव वहां तो हरि के अवतारों में पूर्णावतार भगवान श्रीराम का अतीव दिव्य मंदिर होना हीं चाहिए..

निर्माणाधीन श्रीराम मंदिर की विशेषताएं--

1.ये मंदिर श्रीसम्प्रदाय के मूल आचार्यपीठ श्रीमठ,काशी के द्वारा प्रकट हो रहा है ..श्रीसम्प्रदाय सगुण एवं निर्गुण रामभक्ति परंपरा का अनादिकाल से मुख्य प्रचारक एवं प्रसारक सम्प्रदाय है.

2.यह चार धामों में सुप्रतिष्ठित बद्रीधाम के द्वारभूत हरिद्वार में निर्मित हो रहा है..कुम्भ क्षेत्र में नासिक को छोड़कर कहीं भी श्रीराम का भव्य मंदिर नहीं है..

3.यह परमपावन मां गंगा के प्रथम अवतरण स्थल हरिद्वार में निर्मित हो रहा है..मां गंगा की राम-भक्ति से तुलना की गयी है.

  1. यह सनातन धर्म की मंदिर निर्माण की समस्त मान्यताओं से पूर्ण होगा.

  2. इस मंदिर की आराधना में पूर्ण वैदिक विधि एवं भावों का सर्वांश में पालन होगा.

  3. यह विश्व का सर्वाधिक ऊंचा जोधपुर के पत्थरों द्वारा निर्मित मंदिर होगा.

  4. यह मंदिर ,मंदिर के लिए होगा,मनोरंजन का साधन नहीं होगा.केवल आराधना और श्रीरामभाव का प्रसारक केन्द्र होगा..

  5. मंदिर का निर्माण ,जनता जनार्दन से एकत्रित पवित्र धन से होगा..क्योंकि रामराज्य की संस्थापना में आचार एवं धन की पवित्रता की श्रेष्ठतम भूमिका है.

  6. श्रीराम मंदिर की लम्बाई 193 फुट,चौड़ाई 102 फुट और ऊंचाई 175 फुट होगी..

  7. श्रीराममंदिर में 5 मुख्य शिखर, 85 इंडको(मुख् शिखर के साथ छोटी शिखर की आकृति) 24 तिल्लको तथा 104 सुसज्जित स्तम्भ होंगे..

  8. मंदिर के पीछे एक सुंदर तालाब भी होगा.

  9. श्रीरामजी के वन-विहार के लिए एक रमणीय उद्यान होगा..

  10. मंदिर के दोनों दिशाओं में पूर्ण सुसज्जित शिखर के साथ भण्डार मंदिर,शयन मंदिर, स्नान मंदिर एवं संग्रह मंदिर भी होंगे..

  11. मंदिर परिसर में कोई भी लौकिक प्रवृति नहीं होगी..परिसर पूर्णत श्रीराममय होगा..

  12. मंदिर की सभी दृष्टियों से प्रधानता होगी..

    ये राममंदिर ऋषिकेश चुंगी से गंगा की ओर जाने वाले सप्तऋषि पथ पर निर्मित हो रहा है..

    वास्तुकार---श्रीराजेश भाई बीनू भाई, सोमपुरा,बोरीवली बेस्ट,मुम्बई

  13. निर्माण स्थल—

    सप्तऋर्षि पथ, भूपतवाला, हरिद्वार, फोन- 01334-262452

Tuesday, January 13, 2009

स्वामी रामानंदाचार्य पर नई किताब- पायसपायी



इस धराधाम पर रामावतार के रूप में स्वामी रामानंद के प्रादुर्भाव होने के करीब सात सौ नौ वर्षों बाद रामानंद जी महाराज का वांग्मय अवतार हुआ है. इसे लिखा है हिंदी साहित्य जगत के मूर्धन्य विद्वान डॉ दयाकृष्ण विजयवर्गीय विजय ने. राजस्थान के कोटा निवासी डॉ विजय हिंदी के सिद्ध कवि और प्रसिद्ध लेखक है. विगत साठ वर्षों से उनकी लेखनी अविराम गति से चल रही है. जीवन के आठवें दशक की ये औपन्यासिक रचना निश्चित रूप से उनकी परिपक्वता और अनुभव की सघनता को मूर्तिमंत करती हैं. जगतगुरू रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य कहते हैं कि पायसपायी का प्राकट्य अपूर्व है. लेखक डॉ विजय की अद्भुत ज्ञानराशि, अनुपम अभिव्यक्ति क्षमता, हिंदी की व्यापक परिधि, औपन्यासिक जगत का विशिष्ट आकर्षण एवं आचार्य प्रवर के समान ही लेखक की राष्ट्रीय और मानवीय संवेदना इस ग्रंथ में अपूर्वता के साथ अभिव्यक्त हुई है. वैसे आचार्य प्रवर का संस्कृत कावात्मक अवतार श्री रामानंद दिग्विजय के रूप में पहले ही हो चुका है, जिसकी रचना जगदगुरू रामानंदाचार्य स्वामी स्वामी भगवदाचार्य जी महाराज ने की थी, जो रामभक्त परंपरा ही नहीं, अपितु संपूर्ण संस्कृत वांग्मय, हिंदी वांग्मय रूपी आकाश के अनुपम प्रकाशक थे. श्री आचार्य विजय नाम से चंपू काव्य के रूप में आचार्यश्री की जीवनगाथा प्रकट हो चुकी है, जिसके प्रणेता महामनीषी ख्यातिलब्ध रचनाकार गोस्वामी श्रीहरिकृष्ण शास्त्री थे. सुश्री अमिता शाह द्वारा भी हिंदी में काशी मार्तंड और शंखनाद के रूप में दो वांग्मय प्राकट्य आचार्यश्री का हो चुका है. इन ग्रंथों से पूर्व प्रसंग पारिजात में आचार्यश्री के संबंध में प्रमाणिक जानकारी पहले भी दी जा चुकी है.
पायसपायी में स्वामी रामानंद का सौमनस्य, साधुचरित्र, धर्म-आध्यात्म, तपश्चर्या और राष्ट्रीय चेतना की महत्ता को प्रमुखता के साथ प्रकट किया गया है. इस कृति में एक ऐसे महनीय व्यक्तित्व का आख्यान है, जिसकी प्रभविष्णुता से पूरा मध्यकाल आलोकित होता रहा है. उनकी प्रगतिशील, सर्वस्पर्शी जीवन दृष्टि, समन्वय की भावना, राष्ट्रीय एवं मानवीय चेतना तथा चमात्कारिक व्यक्तित्व तत्कालीन सम्राटों और संप्रदायों को निष्प्रभ कर दिया था. मुसलमान शासकों की हिंदुओं के प्रति क्रूर और प्रतिशोधी दृष्टि, राजाज्ञों की विसंगतियां, धर्म के नाम पर आडंबर, स्वामी जी के एक ही शंखनाद से इस उपन्यास में तिरोहित होते दिखाई देते हैं. इस प्रकार के विविध प्रसंगों की सर्जनाएं तथा स्थपनाएं उपन्यास की पठनीयता में रोचकता उत्पन्न करती है. औपन्यासिक तत्वों से भरपूर यह रचना एक प्रकार से स्वामी रामानंद का जीवन चरित ही है.
पायसपायी के लेखक के प्रेरणास्रोत रहे सारनाथ वाराणसी निवासी और संत साहित्य के मूर्धन्य विद्वान डॉ उदय प्रताप सिंह मानते हैं कि डॉ विजय ने इस पुण्य श्लोक पर लेखनी चलाकर स्वयं को जीवेम शरद: शतम कर लिया है. कहना न होगा कि आज भी शताधिक संप्रदायों और करोड़ों नागरिकों का जीवन स्वामी जी के उपदेशों और संदेशों से ही पाथेय ग्रहण कर जीवंत बना हुआ है. किसी रचना की सफलता का निकस उसके आलोकमय तथ्यों से ही निर्धारित होता है. आलोकमय जीवन का प्रतिमान उदात्त भाव के सृजन में खोजा जाना अपेक्षित है. इस दृष्टि से भी यह रचना बेजोड़ है. इस कृति की सबसे बड़ी विशिष्टता भाव एवं कथाशिल्प की समन्वयशीलता में परिलक्षित होती है. भाषा की सहजता एवं प्रवहनशीलता कथ्यों और संवादों की सार्थकता, अर्थवता, घटनाओं का संयोजन और लयात्मकता तथा स्वामीजी की वाणियों को विविध प्रसंगानुकूल संदर्भों से जोड़ने की अद्भुत निपुणता ने इस कृति को ऊंचाई प्रदान की है. रचना में पाठकीय संवेदना और कथारस की धारा समानांतर चलती है. संपूर्ण रचना पढ़ने के उपरांत मध्यकालीन भारतीय समाज का स्पष्ट चित्र उभरता है. इस बिंब में स्वामी रामानंदाचार्य का व्यक्तित्व और महत्व, धर्म-आध्यात्म का पारंपरिक प्रवाह और तत्कालीन शासन की विद्रूपताएं एकसाथ परिलक्षित होती हैं. साहित्य ऊंचाई के साथ ऐतिहासिक दस्तावेज के अनुच्छेद भी इस कृति में खोजी जा सकती है. स्वामी रामनरेशाचार्य जी के शब्दों में कहें तो डॉ विजय के इस अवदान के लिए हिंदी जगत इनका सर्वदैव ऋणी रहेगा. ऐसी सेवा की प्राप्ति परम प्रभू श्रीराम तथा आचार्यवर के विशेष अनुग्रह के बिना संभव नहीं.
पायसपायी के प्रकाशक
जगदगुरू रामानंदाचार्य स्मारक सेवान्यास
श्रीमठ पंचगंगा घाट, काशी वाराणसी
पुस्तक का मूल्य- 150 रुपये मात्र